भारत के सबसे उम्रदराज मैराथन धावक का सड़क हादसे में हुआ निधन, छाया मातम

Edited By Updated: 15 Jul, 2025 10:53 AM

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पंजाब में जालंधर के पास सोमवार को एक दर्दनाक सड़क हादसे में 114 वर्षीय फौजा सिंह का निधन हो गया। फौजा सिंह दुनिया के सबसे उम्रदराज मैराथन धावक माने जाते थे। वे उम्र के इस पड़ाव पर भी रोजाना की तरह सैर के लिए निकले थे लेकिन एक तेज रफ्तार कार ने उनकी...

नेशनल डेस्क: पंजाब में जालंधर के पास सोमवार को एक दर्दनाक सड़क हादसे में 114 वर्षीय फौजा सिंह का निधन हो गया। फौजा सिंह दुनिया के सबसे उम्रदराज मैराथन धावक माने जाते थे। वे उम्र के इस पड़ाव पर भी रोजाना की तरह सैर के लिए निकले थे लेकिन एक तेज रफ्तार कार ने उनकी जिंदगी छीन ली। फौजा सिंह के परिवारवालों ने बताया कि वे हमेशा की तरह सोमवार को भी दोपहर के समय चाय पीने के बाद टहलने निकले थे। उनका घर नेशनल हाईवे के बिल्कुल पास है। वे अक्सर हाईवे के दूसरी ओर स्थित ढाबे तक सैर करते थे जहां उन्होंने अपनी जमीन किराए पर दी हुई थी। सामान्य दिन की तरह जब फौजा सिंह सड़क पार कर रहे थे तभी एक तेज रफ्तार कार ने उन्हें टक्कर मार दी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार कार इतनी तेज थी कि टक्कर के बाद फौजा सिंह करीब पांच से छह फीट हवा में उछल गए और फिर ज़मीन पर गिरे जिससे उनके सिर में गंभीर चोटें आईं।

स्थानीय युवाओं ने पहुंचाई मदद

घटना के तुरंत बाद गांव ब्यास पिंड के कुछ युवकों ने उन्हें सड़क पर घायल अवस्था में देखा। पास ही से गुजर रहे पंचायत सदस्य गुरप्रीत सिंह ने भी सहायता की और अपनी कार में बैठाकर उन्हें जालंधर के श्रीमन अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल पहुंचने पर फौजा सिंह होश में थे और डॉक्टरों से बातचीत भी कर रहे थे। अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें तुरंत भर्ती कर इलाज शुरू किया। एक्स-रे में उनकी बाईं पसलियां टूटी पाई गईं और रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट आई थी। सिर की चोट के लिए टांके लगाने की तैयारी भी की जा रही थी। अस्पताल में दो घंटे तक इलाज चला और लग रहा था कि वे ठीक हो जाएंगे लेकिन शाम करीब साढ़े छह बजे उनका निधन हो गया।
जिस कार ने फौजा सिंह को टक्कर मारी वह बिना रुके फरार हो गई। हादसे के बाद आसपास के लोगों ने तुरंत मदद की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। फिलहाल पुलिस फरार चालक की तलाश में है और हिट एंड रन केस दर्ज कर लिया गया है।

गांव की शान थे फौजा सिंह

गांव ब्यास पिंड के लोग उन्हें “बुजुर्ग एथलीट” कहकर सम्मान देते थे। 114 साल की उम्र में भी वे जिस ऊर्जा से चलते थे वह आज के युवाओं के लिए भी प्रेरणा थी। उनका जीवन अनुशासन, स्वास्थ्य और समर्पण का प्रतीक था। वे कई अंतरराष्ट्रीय मैराथन में भाग ले चुके थे और 90 की उम्र के बाद दौड़ना शुरू किया था। फौजा सिंह की मौत न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी क्षति है। वे इस बात का प्रतीक थे कि उम्र केवल एक संख्या होती है। उन्होंने यह साबित किया था कि अगर हौसला और जज़्बा हो तो किसी भी उम्र में फिट और सक्रिय रहा जा सकता है।

 

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