Edited By ,Updated: 17 Mar, 2016 12:19 PM
श्रीलंका की पहाडिय़ों पर एक बौद्ध बहुल गांव था। वहां चोरियां बहुत होती थीं इसलिए वहां के लोगों का एक-दूसरे पर अविश्वास बढ़ता गया। एक
श्रीलंका की पहाडिय़ों पर एक बौद्ध बहुल गांव था। वहां चोरियां बहुत होती थीं इसलिए वहां के लोगों का एक-दूसरे पर अविश्वास बढ़ता गया। एक दिन की बात है कि एक किसान की दुधारू गाय चोरी हो गई तो लोगों का आक्रोश फूट पड़ा।
गांव में पंचायत बुलाई गई। चोर खोजने को लेकर विचार-विमर्श होने लगा। जल्द ही लोग एक-दूसरे पर दोष मढ़ते दिखाई देने लगे। ऐसी परिस्थितियों में गांव के एक धर्मगुरु बोले, ‘‘एक-दूसरे पर आरोप लगाने से कुछ नहीं होगा इसलिए यहां उपस्थित सभी लोग एक घंटे का मौन व्रत करें और कुछ सोचें।’’
मौन रहते हुए एक घंटा पूरा हो चुका था। एक युवक सिर झुकाकर उठा और उसने कहा, ‘‘मैंने ही गाय चुराई है और मैं दंड भुगतने के लिए तैयार हूं।’’
इस तरह वह थोड़ी देर मौन रहते हुए अपने किए गए कर्मों पर गौर करते और उसका प्रायश्चित करते। इस तरह उस गांव से ऐसी घटनाओं का होना बंद हो गया। जीवन की विभिन्न समस्याओं में मौन का प्रयोग बहुत कारगर सिद्ध होता है। मौन मन को एकाग्र करता है। इसके प्रयोग से अंतर्मन में स्थित सत्य और विवेक के उन आदर्शों को अपनाने में सहायता मिलती है जो शब्दों के कोलाहल में अमूमन दब जाते हैं।