Edited By ,Updated: 09 Aug, 2016 11:31 AM
श्रीचैतन्य महाप्रभु के एक भक्त थे श्री गंगाधर भट्टाचार्य जी। आपको सभी प्यार से चैतन्य दास कहते थे। एक बार आप श्रीनीलाचल में भगवान चैतन्य महाप्रभु जी के
श्रीचैतन्य महाप्रभु के एक भक्त थे श्री गंगाधर भट्टाचार्य जी। आपको सभी प्यार से चैतन्य दास कहते थे। एक बार आप श्रीनीलाचल में भगवान चैतन्य महाप्रभु जी के दर्शन करने के लिए गए। आप वहां जाकर श्रीचैतन्य महाप्रभु जी से कुछ कहते, इससे पहले ही श्रीमन् महाप्रभु जी ने कहा, 'जगन्नाथ जी तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे।'
वहां पर उपस्थित भक्तों को यह जानने की उत्सुकता हुई कि क्या इच्छा पूरी करेंगे तो श्रीमहाप्रभु जी ने बताया कि श्रीचैतन्य दास के हृदय में पुत्र की कामना हुई है। इसके यहां 'श्रीनिवास' नामक पुत्र रत्न जन्म लेगा, जो कि मेरा अभिन्न स्वरूप होकर सब का आनंद वर्धन करेगा। श्रीरूप आदि के द्वारा मैं भक्ति-शास्त्र प्रकाशित करवाऊंगा एवं श्रीनिवास द्वारा ग्रंथ-रत्नों का वितरण करवाऊंगा।
शुभ मुहूर्त में श्रीनिवास का जन्म हुआ। श्रीनिवास आचार्य के नीलाचल में रहकर श्रील गदाधर पंडित गोस्वामी जी से श्रीमद भागवत श्रवण की थी। स्वप्न में आपने श्रीचैतन्य महाप्रभु, श्रीनित्यानंद जी व श्रीअद्वैताचार्य जी की कृपा प्राप्त की थी।
आपने श्रीगोपाल भट्ट गोस्वामी जी से दीक्षा लेकर, श्रीजीव गोस्वामी जी के आश्रय में शास्त्रों का अध्ययन किया था। श्रीजीव गोस्वामी जी ने ही आपकी 'आचार्य' की पदवी प्रदान की थी।
आपने श्रीमद् भागवत पाठ व कीर्तन के द्वारा ही प्रचार कार्य किया था। आपके कीर्तन के विशेष सुर थे, जिनको सुनने मात्र से ही चित्त आकृष्ट और प्राण-मन मतवाले हो उठते थे। आपके सुरों के नाम थे 'मनोहर साही'।
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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