Ram Navami: जनमानस के रोम-रोम में बसे श्रीराम, पढ़ें रामायण की कुछ खास झलकियां

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Apr, 2024 08:02 AM

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रामायण में वर्णन है- महर्षि वाल्मीकि ने मुनिश्रेष्ठ नारद से पूछा, ‘‘भगवन्! इस समय इस संसार में गुणी, शूरवीर, धर्मयज्ञ, सत्यवादी और दृढ़-प्रतिज्ञ

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Ram Navami Festival Celebration 2024: रामायण में वर्णन है- महर्षि वाल्मीकि ने मुनिश्रेष्ठ नारद से पूछा, ‘‘भगवन्! इस समय इस संसार में गुणी, शूरवीर, धर्मयज्ञ, सत्यवादी और दृढ़-प्रतिज्ञ कौन है? सदाचारी, सब प्राणियों का हित करने वाला, प्रियदर्शन, धैर्ययुक्त तथा काम-क्रोधादि शत्रुओं को जीतने वाला कौन है? मुझे यह जानने की प्रबल अभिलाषा है, महर्षि।’’

इस पर मुनिश्रेष्ठ नारद ने कहा, ‘‘महर्षि! आपने जिन गुणों का वर्णन किया है वे बहुत श्रेष्ठ और दुर्लभ हैं तथा उन सबका एक ही व्यक्ति में मिलना कठिन है, फिर भी आप द्वारा पूछे सभी गुणों से युक्त एक व्यक्ति हैं, जो इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए हैं और ‘राम’ नाम से जगद्विख्यात हैं। वे अति बलवान, धैर्ययुक्त, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान, प्रियवक्ता, धर्म के जानने वाले, सत्यवादी, प्राणियों के हित में तत्पर, वेदों के ज्ञाता, धनुर्वेद में कुशल, आर्य, प्रियदर्शन, गम्भीरता में समुद्र के समान, धैर्य में हिमालय के सदृश, पराक्रम में विष्णु के तुल्य, क्रोध में कालाग्नि जैसे, क्षमा में पृथ्वी सम, दान करने में कुबेर और सत्य बोलने में दूसरे धर्म के समान हैं।’’  

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रामायण में वर्णन के अनुसार, त्रेता युग में सूर्यदेव के पुत्र वंशज महाराज इक्ष्वाकु के कुल में अयोध्यापुरी के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। राजा दशरथ की 3 पत्नियां थीं - कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी परंतु उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुई। दुखी सम्राट ने जब अपनी यह अंतर्वेदना गुरु वशिष्ठ से कही तो उन्होंने शृंगी ऋषि को बुलाकर पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया।

वशिष्ठ जी ने यज्ञ पश्चात खीर दशरथ जी को समर्पित की और राजा ने सभी रानियों को बुलाकर वह वितरित की, जिसका सेवन कर सभी रानियां गर्भवती हुईं और राजा दशरथ को चार पुत्रों का सुख प्राप्त हुआ। वाल्मीकि रामायण में ऋषि लिखते हैं, जिस समय महा कान्ति वाले राजा दशरथ जी पुत्रेष्टि यज्ञ करने लगे, उसी समय विष्णु भगवान ने पुत्र बनकर उनके यहां अवतार लेने का निश्चय कर लिया।

इस प्रकार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। ‘राम’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘वह जो रोम-रोम में बसे’। भगवान श्रीराम अपने गुणों की वजह से ही मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। उन्होंने दया, सत्य, सदाचार, मर्यादा, करुणा और धर्म का पालन किया। भगवान श्रीराम ने समाज के लोगों के सामने सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया था, इसी कारण उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। भगवान श्रीराम की महानता अथाह है। उनके अद्वितीय शौर्य एवं पराक्रम से उन्होंने यज्ञरक्षा कर ऋषियों को भयहीन किया, उनका अनुपम बल ही खर-दूषण आदि का काल बना, वही शील के मूर्त स्वरूप हैं।
धनुष भंग करने का सामर्थ्य होने पर भी वह सभा में शांति से बैठे थे और गुरु आज्ञा मिलने पर ही आगे बढ़े। पितृभक्ति ऐसी कि पिता का वचन कभी मिथ्या न होने दिया, भले स्वयं कष्ट सहे, त्याग ऐसा कि जब कुछ ही समय में राजतिलक होना था, तब भी वल्कल पहनकर वनगमन करने में संकोच नहीं किया, वेद शास्त्रादि अनेकों ग्रंथों का ज्ञान, मातृभूमि के प्रति प्रेम इतना कि अपनी जन्मभूमि अयोध्या नगरी के बारे में कभी बुरे शब्द सुनना तक नहीं सहा।

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अनुजों से स्नेह ऐसा कि युगों तक उनके उदाहरण दिए जाते हैं, सीता माता से ऐसा प्रेम किया कि आज भी कई लोग संबोधन के रूप में सीताराम ही बोलते हैं, सत्यवादी ऐसे कि ‘रामो द्विर्नाभिभाषते’ (राम दो प्रकार से बात नहीं करते) आज प्रेरणा वाक्य है, शबरी को स्वयं नवधा भक्ति का उपदेश देकर सामाजिक सौहार्द के प्रतीक बने, सुग्रीव की कठिन समय में सहायता कर सच्चे मित्र होने का अर्थ समझाया, समाज में नारियों के सम्मान की शिक्षा दी।

भारत के संविधान की मूल प्रति में दीनदयाल भगवान के चित्र हैं। गांधीजी भी भगवान श्रीराम से ही प्रेरणा पाते थे और भारत में रामराज्य चाहते थे। स्वामी रामानंद जैसे महान समाज सुधारक संत ने भी सामाजिक पतन को रोकने के लिए रामनाम की महिमा का ही इस्तेमाल किया था। भगवान राम से प्रेरणा पाकर लोग समाजसेवा में अत्यधिक योगदान करते हैं। आज भी भगवान राम की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है। हिंदू जनमानस के लिए भगवान राम की प्रासंगिकता उतनी ही है, जितनी सागर में जल की, वनों में वृक्ष की अथवा ज्ञानी पुरुषों में विनम्रता की होती है। राम सबके लिए इस भारतवर्ष की पवित्र भूमि के हर कण में व्याप्त हैं।  

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम समस्त भारतीय साधना और ज्ञान-परम्परा के वागद्वार हैं, जिनका दृढ़चरित्र लोक-मर्यादा के कठोर अंकुश से अनुशासित और जन-जन के मन को ‘रस विशेष’ से आप्लावित कर सकता है, जो संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी है।        

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 —प्रभात झा
(पूर्व सांसद एवं पूर्व भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष)

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