हत्या अखलाक की नहीं, एक ‘भरोसे’ की हुई है

Edited By ,Updated: 06 Oct, 2015 02:28 AM

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उस बूढ़ी मां का हाथ मेरे हाथ में था। उसके हाथ थरथरा रहे थे। उसकी आंखों में आंसू थे। दाहिनी आंख सूजी थी और वह रह-रह कर कह रही थी

(आशुतोष): उस बूढ़ी मां का हाथ मेरे हाथ में था। उसके हाथ थरथरा रहे थे। उसकी आंखों में आंसू थे। दाहिनी आंख सूजी थी और वह रह-रह कर कह रही थी कि वह अब यहां नहीं रहना चाहती। वह अखलाक की मां थी। उम्र 82 साल। उसके अन्य तीन बेटे और एक बेटी हमसे बातें कर रहे थे। बोलते-बोलते वह शांत हो जाती और फिर शून्य में निहारती। आसपास का शोर उसे बिल्कुल भी नहीं छू पाता। फिर उसके ठंडे  हाथों में गर्माहट लौटी और बोल पड़ी, ‘‘मेरा बेटा वापस ला दो।’’ मेरे पास उसके किसी भी सवाल का जवाब नहीं था क्योंकि मैं खुद भी सवालों से जूझ रहा था।

अखलाक का परिवार दो सौ सालों से उसी गांव में रह रहा था। अखलाक के भाई ने बताया कि उसके परदादा ने कहा था कि उनके पिता जी भी बिसहड़ा गांव में ही पैदा हुए थे। दो मुस्लिम परिवार वहां रहते थे और चारों ओर सैंकड़ों हिन्दू परिवार। उन्हें कभी भी डर नहीं लगा। रोजगार की तलाश में जब वह गांव से बाहर जाते तो पीछे गांव में महिलाएं अकेले रहती थीं। सुकून से। बिना तकलीफ के। बिना खौफ के। किसी ने कभी कुछ नहीं कहा। 
 
यह बात अखलाक के छोटे भाई ने ही बताई थी। उनका एक और भाई भी था जो नलका ठीक करता है। उसने कहा कि गांव में शायद ही कोई घर हो जिसका नलका उसने दुरुस्त न किया हो। वह सबको पहचानता है और सब उसको पहचानते हैं। फिर यह  हादसा कैसे? और क्यों हुआ? गांव में अखलाक की इज्जत थी। कोई उससे तू तड़ाक करके भी नहीं बोलता था। ऐसे में उसके बेटे को मार डालने का कोई तो कारण होना चाहिए  वह बूढ़ी मां मुझसे पूछती है। मैं फिर चुप रह जाता हूं। हालात ने मेरी जुबान पर ताला लगा दिया। मैं क्या जवाब देता? क्या कहता उस बूढ़ी मां को? क्या यह कहता कि यह मसला गौमांस परोसने और खाने का है ही नहीं? 
 
यह मसला किसी अखलाक को मारने का भी नहीं है क्योंकि दादरी से हजारों किलोमीटर दूर कर्नाटक और महाराष्ट्र में एक कालबुर्गी और एक गोविंद पंसारे की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उनके पहले डाभोलकर को भी सुला दिया गया था हमेशा के लिए। मेरे मित्र निखिल वागले और एक दूसरे साहित्यकार श्री भगवान को भी जान से मारने की धमकियां दी जा चुकी हैं। इनका कसूर इतना है कि इन्होंने कुछ ऐसी बातें कहीं जो कुछ दूसरे लोगों को पसंद नहीं आईं। बजाय इनसे तर्क करने, भारतीय परम्परा के अनुसार शास्त्रार्थ करने के उनको मार दिया गया। यानी सवाल यह है कि क्या हिन्दुस्तान में अब किसी को यह हक नहीं है कि वह क्या खाएगा और क्या बोलेगा? और अगर किसी को मेरे विचार ठीक नहीं लगे या किसी को मेरा भोजन पसंद नहीं आया तो मुझे गोली मार दी जाएगी या फिर भीड़ आकर मेरा कत्ल कर देगी। 
 
हर समाज में इस तरह के लोग होते हैं। मुझे हैरानी नहीं होती जब कोई कैबिनेट मंत्री खुलेआम ऐसी  हत्याओं को सही ठहराने की कोशश करता है या यह कहा जाए कि जिन लोगों ने गौमांस खाया है उनके खिलाफ मुकद्दमा दर्ज किया जाना चाहिए, उनके खिलाफ कार्रवाई हो। श्रीराम सेना से लेकर बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद, सनातन संस्था के लोग इस तरह की बातें करते हैं। हैरानी तब होती है जब एक हफ्ता बाद भी देश के प्रधानमंत्री इतने संवेदनशील मसले पर चुप्पी साधे रहते हैं। जंतर-मंतर पर एक किसान की आत्महत्या के 15 मिनट के अंदर ही ट्विटर पर अपनी राय रखने वाले प्रधानमंत्री अभी तक कुछ नहीं बोले हैं। 
 
मेरे लिए यह सवाल महत्वपूर्ण है। देश आश्वस्त होना चाहता है कि क्या ये घटनाएं अपवाद हैं? क्या कोई इस बात की गारंटी देगा कि आगे किसी की खाने की वजह से हत्या नहीं होगी? यह सवाल सिर्फ अखलाक के परिवार के आंसू पोंछने का नहीं है? यह सवाल भारत के सर्वधर्म सम्भाव की परम्परा में यकीन रखने वाले सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों की उस आशंका को शांत करने का है जो आश्वस्त होना चाहते हैं कि अभी भी देश में लोकतंत्र है,  सब धर्मों का सम्मान करने की मानसिकता जीवित है, अपराधियों को खुली छूट नहीं मिली हुई  है और कानून का शासन है।
 
मैं यहां किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहा हूं। इतना जरूर कहना चाहता हूं कि पिछले कुछ सालों से इस देश को पाकिस्तान बनाने की कोशिश की जा रही  है। राजनीति में धर्म को घुसेड़ा जा रहा है। हर छोटी-सी बात पर लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होने लगी हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही तरफ से कुछ लोग धर्म की आड़ लेकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। ये लोग नहीं जानते कि अपनी सत्ता को बनाए  रखने के लिए जिया-उल-हक ने राजनीति में धर्म की एंट्री करने दी। सत्ता और सेना दोनों का इस्लामीकरण किया गया और कुछ सालों के बाद क्या हुआ? एक तालिबान पाकिस्तान में पैदा हो गया और एक तालिबान अफगानिस्तान में। दोनों मुल्क तबाह हो गए। दोनों का अस्तित्व खतरे में है। दोनों के टुकड़े होने को हैं। भला किसका हुआ? चंद लोगों का, लेकिन सजा पूरे मुल्क ने झेली। हिन्दुस्तान को पाकिस्तान बनाने की तिजारत बंद होनी चाहिए।
 
पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बना था परन्तु हिन्दुस्तान हिन्दुत्व के नाम पर नहीं बना था, सर्वधर्म सम्भाव के नाम  पर  बना था। गांधी जी की सभा में रोज रघुपति राघव राजा राम की धुन बजती थी। नफरत नहीं, प्रेम का संदेश दिया जाता था। सब धर्मों के लोगों को जोडऩे की बात होती थी। धर्म विशेष के नाम पर लोगों को उकसाने और नफरत बांटने का व्यापार नहीं होता था इसलिए आजादी के बाद दो मुल्क बने। एक आज तक खड़ा नहीं हो पाया है और भारत आज दुनिया के  अग्रणी देशों में है। उसके लोकतंत्र और संविधान से लोक रश्क करते हैं।
 
हिन्दुस्तान के मुसलमानों के पास पाकिस्तान जाने का विकल्प था। उन्होंने हिन्दुस्तान में रहने का फैसला किया क्योंकि उनको इस मुल्क से मोहब्बत थी। कुछ लोग आज भी इनकी देशभक्ति की  परीक्षा लेना चाहते हैं। यह बंद होना चाहिए। इन्हें किसी के सर्टीफिकेट की आवश्यकता नहीं है।
 
भारत संविधान से चलेगा। संविधान हिन्दुस्तान के ‘यकीन’  का नाम है। एक ‘भरोसे’ का नाम है भारत का संविधान। किसी भी धर्म, धर्म ग्रंथ, किसी पंडित, पुजारी या मौलाना, पादरी को यह इजाजत नहीं दी जा सकती कि वह संविधान से छेड़छाड़ करे। अगर ऐसा करने दिया गया तो यह देश को तोडऩा होगा। उस ‘यकीन’ को तोडऩा होगा, उस ‘भरोसे’ को तोडऩा होगा जिसके तहत एक फिरके ने भारत विभाजन के समय हिन्दुस्तान में रहने का फैसला किया था, जिसके तहत इस देश में  बोलने की आजादी है, लोकतंत्र है। ऐसे में उस अखलाक के भाई को जवाब देना होगा जो मेरी आंखों में झांककर कहता है, ‘‘मेरे भाई का कत्ल नहीं, एक भरोसे का कत्ल हुआ है।’’ और मैं उसकी आंखों में देखता रह जाता हूं।       
 
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