दिल्ली निवासियों की गिरफ्तारी: अदालत ने कहा, उप्र पुलिस ने दस्तावेजों की जालसाजी की

Edited By Updated: 19 Jan, 2022 08:45 AM

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नयी दिल्ली, 18 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के पुलिस कर्मियों द्वारा ‘‘दस्तावेजों की पूरी जालसाजी’’ की गई, जिन्होंने स्थानीय पुलिस को सूचित किए बिना यहां दो निवासियों को गिरफ्तार किया और उन्हें दो दिनों...

नयी दिल्ली, 18 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के पुलिस कर्मियों द्वारा ‘‘दस्तावेजों की पूरी जालसाजी’’ की गई, जिन्होंने स्थानीय पुलिस को सूचित किए बिना यहां दो निवासियों को गिरफ्तार किया और उन्हें दो दिनों तक अवैध हिरासत में रखा।

न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई जांच के अनुसार, दोषी अधिकारियों के कॉल डेटा रिकॉर्ड से पता चला है कि गिरफ्तार किए गए दो व्यक्तियों को दिल्ली से उत्तर प्रदेश के शामली ले जाया गया, जहां उन्हें दो दिनों के बाद गिरफ्तार दिखाया गया और परिवारों के बीच ‘‘बातचीत’’ की विफलता के बाद जेल भेज दिया गया। ये दोनों व्यक्ति उस लड़के के भाई और पिता थे, जिसने एक लड़की के परिवार की इच्छा के विपरीत उससे शादी की थी।
न्यायाधीश ने कहा कि जांच में "ढिलाई" "जालसाजी" के समान नहीं थी जो एक अपराध है और यदि यह समय पर हस्तक्षेप नहीं किया गया होता, तो गिरफ्तार किए गए दो व्यक्ति जेल में बंद होते।

अदालत ने कहा, ‘‘6 से 8 तारीख (सितंबर 2021 के) तक, वे (गिरफ्तार व्यक्ति) अवैध हिरासत में थे। उन्हें ले जाने के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई थी। यह दस्तावेजों की पूरी जालसाजी है। ए से जेड तक, हर दस्तावेज जाली है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘उन्हें दिल्ली पुलिस को बताना चाहिए था। वे लोगों को (हिरासत में) नहीं डाल सकते हैं और जहां चाहें वहां गिरफ्तारी नहीं दिखा सकते हैं।’’
याचिकाकर्ता दंपति ने यह दावा करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था कि उन्होंने लड़की के परिवार की इच्छा के विपरीत पिछले साल जुलाई में अपनी मर्जी से शादी की और अब उन्हें बार-बार धमकियां मिल रही हैं।

सुनवायी के दौरान, यह पता चला कि लड़के के पिता और भाई को उत्तर प्रदेश पुलिस ले गई थी और एक महीने से अधिक समय तक यह पता नहीं चला था कि वे कहा हैं।
दिल्ली पुलिस ने तब अदालत को सूचित किया था कि लड़के के परिवार के सदस्यों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने आईपीसी की धारा 366 के तहत लड़की की मां द्वारा की गई शिकायत के संबंध में गिरफ्तार किया था। उनके यहां आने के बारे में स्थानीय पुलिस थाने को जानकारी नहीं दी गई थी।
न्यायमूर्ति गुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि जब प्राथमिकी में ही पता चला कि लड़की बालिग है, तो संबंधित उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारियों को लड़के के परिवार के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पहले उसकी इच्छा का पता लगाना चाहिए था।

अतिरिक्त महाधिवक्ता, उत्तर प्रदेश, गरिमा प्रसाद ने अदालत को सुनिश्चित किया कि दोषी अधिकारियों को बख्शा नहीं जाएगा और उचित कार्रवाई की जाएगी।

अदालत ने मामले को बंद कर दिया और कहा कि एएजी द्वारा अपनाए गए रुख को देखते हुए, मामले में और कोई आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है।

इसने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई जांच की भी सराहना की और याचिकाकर्ता लड़के के परिवार को संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ कानून का सहारा लेने की स्वतंत्रता दी।



यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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