क्या आप से भी लोग बात तो करते हैं पर प्रभावित नहीं होते?

Edited By ,Updated: 12 Aug, 2015 09:19 AM

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एक साधु ऊंची पहाडिय़ों की ओट में जाते हुए सूरज की लालिमा और पास ही झरने के गिरते जल में पड़ते हुए उसके प्रतिबिंब का नजारा देख कर आनंद लेता रहा। वह विश्राम के लिए पास की एक कुटिया में पहुंचा जिसमें एक विद्वान चिंतक रहते थे।

एक साधु ऊंची पहाडिय़ों की ओट में जाते हुए सूरज की लालिमा और पास ही झरने के गिरते जल में पड़ते हुए उसके प्रतिबिंब का नजारा देख कर आनंद लेता रहा। वह विश्राम के लिए पास की एक कुटिया में पहुंचा जिसमें एक विद्वान चिंतक रहते थे। साधु ने उनसे कुटिया में विश्राम करने की अनुमति मांगी। चिंतक ने सहर्ष स्वीकृति दे दी। साधु ने चिंतक से कहा-आप धन्य हैं, ऐसे मनोरम स्थल पर आपका निवास है जहां प्रकृति अठखेलियां करती है।
 
चिंतक ने कहा-यहां से पांच मील दूर पहाड़ी पर इससे भी अधिक सुंदर स्थान है। आप उसे देखें।
 
साधु ने पूछा-आपने तो वह स्थान देखा होगा। यह बताएं कि उसे देखने का उचित समय कौन-सा होगा? 
 
चिंतक ने कहा-मैं तो आज तक उस स्थान पर गया नहीं, सिर्फ सुना है। मैं तो अध्ययन में ही लगा रहता हूं।
 
साधु ने कहा-जो व्यक्ति कुदरत की खुली किताब देखने का समय नहीं निकाल सकता, वह जीवन के प्रति अति निराश कहा जाएगा। आपने ज्ञान का चश्मा लगाकर प्रकृति के उपहारों से अपने को वंचित कर दिया है। चिंतक को जैसे किसी ने झकझोर दिया हो। 
 
बोले-उस पहाड़ी पर जाने का उपयुक्त समय है अमावस्या की रात।
 
मैं बिना कंदील के ही वहां जाऊंगा, आप चाहें तो मेरे साथ चल सकते हैं। कहकर साधु सोचता रहा कि यह कैसा चिंतक है जिसने प्रकृति की छटा से अपना परिचय ही नहीं किया। उधर चिंतक सोचता रहा कि मुझे आज इस साधु ने झकझोर दिया। मुझे आज अपनी असफलता का आभास हो रहा है। लोग मुझसे बात तो करते हैं पर प्रभावित नहीं होते। वह साधु के पास आया और बोला, मैं भी आपके साथ चलूंगा।
 
साधु ने कहा-मैंने सुना है कि यदि एक कदम रखने की जगह दिखती हो तो उसके सहारे पूरी पृथ्वी की परिक्रमा की जा सकती है। अंधेरा मन का होता है। मन पक्का होना चाहिए, कदम अपने आप उठने लगते हैं। दोनों ही रात के अंधेरे में चल पड़े। भोर हुई। आसमान में लालिमा छा गई। कल-कल करता हुआ नदी का जल और उसमें पड़ती हुई सुबह के सूरज की किरणें, पक्षियों का कलरव। अद्भुत, अति सुंदर, चिंतक चिल्ला उठा, नाच उठा, गा उठा।
 
साधु से बोला-तुम मेरे गुरु हो, तुमने मुझे अलौकिकता के दर्शन कराए हैं। मेरा चिंतन निरर्थक था। 
 
साधु ने कहा-मेरे जाने के बाद विचार करना। 
 
अपने मित्र स्वयं बनो। अपने आसपास को जानो। प्रकृति से बड़ी कोई पाठशाला नहीं। दूसरे की चाल देखने से पहले अपनी चाल देखो। 
 

खलील जिब्रान ने कहा है, ‘‘मैं कूड़ा-कर्कट हूं और मैं ही आग हूं। मेरी आग मेरे कूड़े को जलाकर भस्म कर दे तो मैं अच्छा जीवन जी पाऊंगा।’’ 

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