Edited By ,Updated: 23 Oct, 2016 02:28 AM
अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व दीपावली आने वाला है। मिठाइयों, रोशनियों और खुशियों के इस त्यौहार पर लोग जी भर कर खरीदारी ...
अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व दीपावली आने वाला है। मिठाइयों, रोशनियों और खुशियों के इस त्यौहार पर लोग जी भर कर खरीदारी करने, रोशनी करने और पटाखे फोडऩे के अलावा अपने मित्रों और परिचितों के बीच उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं।
लेकिन उल्लास और उमंग के इस मौसम में हमारा ध्यान गरीबी की चक्की में पिस रहे अपने उन भाई-बहनों की ओर नहीं जाता जो वर्षों से रोशनी की एक किरण और खुशी के एक झोंके के लिए तरस रहे हैं। जरूरतमंद भाई-बहनों की इस व्यथा को समझते हुए महाराष्ट में ठाणे के युवाओं का एक समूह तथा मुम्बई के डिब्बा वाले आगे आए हैं।
त्यौहारों के मौसम में लोगों द्वारा अपने घरों की सफाई करने और कूड़ा-कर्कट निकालने की परम्परा से प्रेरित होकर ठाणे के युवाओं के एक समूह ने ‘रद्दी’ के नाम से एक अभियान शुरू किया है और इसके अंतर्गत उन्होंने घर-घर जाकर रद्दी इकठ्ठी करके उसकी बिक्री से मिलने वाली राशि से इस वर्ष दीवाली पर जरूरतमंदों की मदद करने का निर्णय लिया है।
अनेक समविचारक युवाओं को साथ लेकर यह अभियान शुरू करने वाले 17 वर्षीय प्रणव पाटिल का कहना है कि ‘‘हमारी कोई एन.जी.ओ. नहीं है इसलिए लोग हमें आॢथक सहायता तो नहीं देते परंतु हम घर-घर जाकर रद्दी इकठ्ठी करते हैं जो अच्छे भाव पर बिक जाती है।’’
‘‘पहले हम इस प्रकार इकठ्ठी की हुई रद्दी बेच कर ठाणे रेलवे स्टेशन पर मौजूद भिखारियों को खाना खिलाया करते थे लेकिन इस दीवाली पर हम एक नया प्रयोग करने जा रहे हैं और इकठ्ठी की हुई रद्दी की बिक्री से मिलने वाली रकम से अनाथालयों में रहने वाले बच्चों तथा वृद्धाश्रमों में रहने वाले बुजुर्गों के लिए नए कपड़े खरीद कर उन्हें भेंट करेंगे।’’
ठाणे के युवाओं की भांति ही मुम्बई में नौकरीपेशा तथा अन्य लोगों के लिए समयबद्ध टिफिन सेवा चलाने वाले विश्वविख्यात डिब्बा वाले भी इस दीवाली पर कुछ ऐसा ही करने जा रहे हैं।
मुम्बई के निकट पालघर, मोखाड़ा, तलासरी आदि में नंगे बदन जिंदगी बिताने वाले और भूखे पेट सोने के लिए मजबूर आदिवासी भाइयों को भरपेट भोजन उपलब्ध करवाने के लिए मुम्बई के डिब्बा वालों ने ‘रोटी बैंक’ योजना तो पहले से ही शुरू कर रखी थी, अब इन्होंने एक ‘कपड़ा बैंक’ योजना भी शुरू कर दी है ताकि वे रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर दीवाली मना सकें।
इसके लिए डिब्बा वालों ने बाकायदा ‘कपड़ा बैंक’ कायम करके साधन-सम्पन्न मुम्बई वासियों से उनके पुराने लेकिन अच्छी हालत में और साफ-सुथरे कपड़े देने का आह्वान किया है।
‘मुम्बई डिब्बा वाला एसोसिएशन’ के प्रवक्ता सुभाष तलेकर का कहना है कि ‘‘भोजन और कपड़ा प्रत्येक व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकता है तथा दशहरा-दीवाली के मौके पर शेष देश की भांति ही मुम्बईकर भी बड़े पैमाने पर नए कपड़ों और दूसरी चीजों की खरीदारी करते हैं।’’
‘‘इसलिए इन दिनों हमने टिफिन की सप्लाई के साथ-साथ अपने ग्राहकों को इस बात के लिए भी प्रेरित करने का अभियान शुरू किया है कि वे जरूरतमंदों के लिए अपने पुराने लेकिन साफ-सुथरे अच्छी हालत वाले कपड़े दान दें।’’
डिब्बा वालों की एसोसिएशन के सदस्य ही इस संबंध में दानी सज्जनों द्वारा बुलाने पर उनके घर जाकर कपड़े एकत्रित कर रहे हैं। इसके साथ ही कपड़े इकठ्ठी करने के लिए उन्होंने कई कलैक्शन प्वाइंट भी बनाए हैं।
त्यौहारों के इस मौसम में जरूरतमंदों के जीवन में खुशी के चंद रंग भरने के ये दोनों प्रयास सराहनीय हैं लेकिन इतना ही काफी नहीं है। आज भी देश में करोड़ों लोग रात को खाली पेट सोने को विवश हैं। अत: अन्य समाज सेवी संस्थाओं और एन.जी.ओ. को भी इस दिशा में आगे आना चाहिए।
इससे न सिर्फ लोगों को अपने घरों में पुरानी पड़ी अनावश्यक वस्तुओं की भीड़ से मुक्ति मिल सकेगी वहीं इन वस्तुओं को जरूरतमंद लोगों में बांटने से किसी सीमा तक उनकी जिंदगी में भी कुछ खुशी की किरणें जगमगा उठेंगी।