देवभूमि हिमाचल प्रदेश में नशे की लत में फंसाते विदेशी तस्कर

Edited By Updated: 22 Apr, 2022 03:41 AM

foreign smugglers implicated in drug addiction in devbhoomi himachal pradesh

महामारी की तरह फैलती जा रही नशे की लत की शिकार देवभूमि हिमाचल प्रदेश की युवा पीढ़ी अपना स्वास्थ्य तबाह कर रही है। यहां स्थानीय तस्करों के साथ-साथ विदेशी नशा तस्करों का धंधा लगातार बढ़ता जा रहा है तथा प्रदेश के शहरों से लेकर

महामारी की तरह फैलती जा रही नशे की लत की शिकार देवभूमि हिमाचल प्रदेश की युवा पीढ़ी अपना स्वास्थ्य तबाह कर रही है। यहां स्थानीय तस्करों के साथ-साथ विदेशी नशा तस्करों का धंधा लगातार बढ़ता जा रहा है तथा प्रदेश के शहरों से लेकर गांवों तक नशा पहुंचने लगा है। पुलिस के अनुसार हिमाचल में खतरनाक नशों के कारोबार में नाइजीरियन सबसे बड़े तस्करों के रूप में उभरे हैं। वर्ष 2017 से 2021 के बीच प्रदेश में नशा तस्करी में गिरफ्तार 72 विदेशियों में से 36 नाइजीरियन थे। 

इसके अलावा 15 अन्य दूसरे अफ्रीकी देशों से, 14 यूरोपियन , 4 अमरीकी, 2 मध्य-पूर्व  के देशों से संबंधित निकले और मात्र एक नशा तस्कर किसी एशियाई देश से सम्बन्धित था। अभी 5 अप्रैल को ही हिमाचल पुलिस दिल्ली से 2 अफ्रीकी नागरिकों को गिरफ्तार करके लाई और उनके कब्जे से नशीला पदार्थ बरामद किया। यहां नशे के कारोबार की जड़ें काफी गहरी हैं। इसकी सप्लाई करने वाले अधिकांश नाइजीरियन दिल्ली से काम कर रहे हैं और कुछ वर्षों में ही इन्होंने कोकीन जैसे महंगे नशों के अधिकांश व्यापार पर कब्जा कर लिया है। 

यही नहीं, बिक्री के लिए इन्होंने स्थानीय नशा तस्करों का एक विशाल नैटवर्क कायम कर लिया है जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं। पुलिस के हाथों पकड़े जाने से बचने के लिए ये मोबाइलों में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे बताए जाते हैं जिससे उनकी लोकेशन पकड़ में नहीं आती। समय के साथ-साथ नशे की किस्में भी बदल रही हैं। पहले लोग चरस, अफीम व पोस्त का ज्यादा नशा करते थे पर कुछ वर्षों से सर्वाधिक खतरनाक नशा चिट्टा व सिंथैटिक नशों के इस्तेमाल के मामले बहुत बढ़ गए हैं। दिल्ली से धंधा चला रहे नाइजीरियन आमतौर पर चिट्टा हिमाचल प्रदेश में भेज रहे हैं। इसी तरह पुलिस ने 2020 में 13, 2021 में 12, 2022 में अब तक 6 नेपालियों को चरस व अन्य नशों की तस्करी करते हुए पकड़ा है। नेपाली चरस व अन्य नशों की खेप एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने के धंधे में भी शामिल हैं। कई नेपाली खुद भी जंगलों में चरस बना कर बेचते हैं। 

चिट्टा सर्वाधिक घातक और महंगा नशा है जो प्रति 10 ग्राम, 4,000-5,000 रुपए तक बिकने के कारण इसे खरीदने के लिए पैसे जुटाने की खातिर कई नशेड़ी अपने घरों में चोरी करने के अलावा स्वयं नशा तस्कर बनने के साथ-साथ दूसरों को भी नशों के जाल में फंसा रहे हैं। स्थिति की गंभीरता का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रदेश के ग्रामीण इलाकों मुख्य रूप से शिमला, कांगड़ा, ऊना, सिरमौर और सोलन तक के गांवों में चिट्टïा पहुंच गया है। इसके अलावा कुल्लू, मंडी, चंबा और सिरमौर जिले अफीम तथा भांग की खेती के लिए बदनाम हैं और इसे रोकने के दशकों से किए जा रहे प्रयास सफल नहीं हो पाए हैं।  प्रदेश में बड़ी मात्रा में हैरोइन, चरस, भुक्की, कोकीन, अफीम, चिट्टा जैसे नशीले पदार्थों की बरामदगी स्पष्ट संकेत दे रही है कि यह राज्य अब ‘उड़ता पंजाब’ की भांति ‘उड़ता हिमाचल’ बनता जा रहा है। 

हिमाचल के कुछ इलाके पहले ही ‘ड्रग टूरिज्म’ के लिए बदनाम हैं और देश-विदेश से नशों के शौकीन लोग हिमाचल के कुछ इलाकों में इसलिए घूमने आते हैं क्योंकि वहां पर सब तरह का नशा आसानी से मिल जाता है। इस बुराई को रोकने के लिए प्रदेश की पुलिस ने ‘ड्रग फ्री हिमाचल’ एप जारी किया है तथा एस.एम.एस. द्वारा भी अभियान चला रही है। इसके अलावा नशा तस्करों पर सभी जिलों में ‘रजिस्टर 29’ प्रणाली लागू की है तथा 22 मामलों में तस्करों की 12 करोड़ रुपए की सम्पत्ति जब्त की है।

बेशक हिमाचल सरकार अपनी ओर से नशा नियंत्रण के लिए प्रयास कर रही है परन्तु जिस रफ्तार से प्रदेश में नशों का धंधा फैल रहा है उसे देखते हुए इन प्रयासों में और तेजी लाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही समूचे उत्तरी सीमा के क्षेत्र में इस बुराई पर रोक लगाने के लिए एक संयुक्त नीति बनाने की जरूरत है जिसमें हिमाचल प्रदेश अपने पड़ोसी राज्यों पंजाब के अलावा जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के प्रशासन के साथ गहरा तामलमेल बना कर इसे रोकने का प्रयास करे।—विजय कुमार

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