Edited By ,Updated: 09 Nov, 2023 04:58 AM
हम समय-समय पर लिखते रहते हैं कि नेताओं को हर बयान सोच-समझ कर ही देना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार अपनी पार्टी के सभी सदस्यों को यह सलाह दे चुके हैं, ताकि अनावश्यक विवाद पैदा न हों, परंतु लगता है कि किसी पर भी इसका असर नहीं हुआ।
हम समय-समय पर लिखते रहते हैं कि नेताओं को हर बयान सोच-समझ कर ही देना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार अपनी पार्टी के सभी सदस्यों को यह सलाह दे चुके हैं, ताकि अनावश्यक विवाद पैदा न हों, परंतु लगता है कि किसी पर भी इसका असर नहीं हुआ। इन दिनों जब देश के 5 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम तथा तेलंगाना में चुनावों की प्रक्रिया चल रही है, नेताओं द्वारा विवादास्पद बयान देने का सिलसिला जारी है।
2 नवम्बर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में अलवर में एक चुनावी रैली में भाषण देते हुए तिजारा नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष संदीप दायमा (भाजपा) ने सिख भाईचारे बारे कथित तौर पर यह कह कर विवाद खड़ा कर दिया कि ‘‘देखिए यहां कितनी मस्जिदें, गुरुद्वारे बन गए हैं। भविष्य में यह हमारे लिए नासूर बन जाएंगे। इसलिए हमारा कत्र्तव्य है कि इस नासूर को उखाड़ कर फैंक दें।’’ इन दिनों जब चुनाव जीतने के लिए भाजपा सिख और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रही है, संदीप दायमा के उक्त बयान से सिख समुदाय भड़क उठा है।
हालांकि बाद में संदीप दायमा ने इस बयान के लिए माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मैं हाथ जोड़कर सिख समाज से माफी मांगता हूं। मुझे पता ही नहीं चला कि यह गलती कैसे हुई। मैं सोच भी नहीं सकता कि मैं उस सिख समुदाय के लिए गलती कर सकता हूं, जिसने हमेशा हिंदू और सनातन धर्म की रक्षा की है।’’ बाद में उन्होंने एक गुरुद्वारे में सेवा भी की। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने दायमा के माफीनामे का वीडियो सोशल मीडिया के मंच ‘एक्स’ पर शेयर किया और कहा, ‘‘माफी मांगने पर भाजपा नेता को भी शर्म आनी चाहिए क्योंकि मुसलमानों के धार्मिक स्थलों के विरुद्ध बोलना भी गुरुद्वारे जितना ही निंदनीय है।’’
और अब 7 नवम्बर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (जद यू) ने जातीय गणना पर सदन में चर्चा के दौरान जनसंख्या नियंत्रण बारे यह टिप्पणी करके विवाद खड़ा कर दिया कि, ‘‘जब शादी होती है तो पुरुष रोज रात में (इशारा)...है न। उसी में बच्चा पैदा हो जाता है लेकिन जब लड़की पढ़ी होगी तो उसे पता होता है कि वह ...ठीक है, लेकिन अंत में बाहर...।’’ नीतीश कुमार के उक्त बयान से बवाल मच गया। भाजपा एम.एल.सी. निवेदिता सिंह उनके भाषण के दौरान ही सदन का बहिष्कार कर बाहर निकल ग$ईं। पत्रकारों से वार्ता के दौरान उन्होंने रोते हुए कहा कि ‘‘मुख्यमंत्री ने देश की करोड़ों महिलाओं का अपमान किया है। उन्हें सदन में इस तरह नहीं बोलना चाहिए।’’
जहां राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने इसके लिए उन्हें नोटिस जारी किया है, वहीं नीतीश कुमार के सहयोगी दलों के नेताओं द्वारा उनके पक्ष में बोलने के बावजूद यह विवाद इतना बढ़ा कि 8 नवम्बर को विधानमंडल के दोनों सदनों के अंदर व इनके बाहर नीतीश के माफी मांगने के बावजूद विपक्ष उनके त्यागपत्र की मांग पर अड़ गया। नीतीश ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘यदि मेरी बात से किसी को तकलीफ हुई हो तो मैं अपनी बात वापस लेता हूं,भले ही मेरा आशय कोई अपराध करना नहीं था और खुद अपनी निंदा करता हूं तथा दुख प्रकट करता हूं।’’‘‘आपने (विपक्षी सदस्यों ने) कहा है कि मुख्यमंत्री शर्म करें, मैं न सिर्फ शर्म कर रहा हूं, बल्कि इसके लिए दुख प्रकट कर रहा हूं और मैं इन सारी चीजों को वापस लेता हूं। मैं महिलाओं का पक्षधर रहा हूं। आप जो मेरी निंदा कर रहे हैं मैं आपका अभिनंदन करता हूं।’’
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भूतल परिवहन मंत्री, कृषि मंत्री और रेल मंत्री रह चुके नीतीश कुमार बिहार के सर्वाधिक लम्बे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री हैं और आठवीं बार मुख्यमंत्री बने हैं। हालांकि वह जनसंख्या नियंत्रण को लेकर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे परंतु शब्दों के चयन में चूक से यह विवाद पैदा हुआ। जुबान से निकले हुए शब्द तो वापस नहीं आ सकते, परंतु ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार ने स्वयं अपनी ङ्क्षनदा करते हुए दिल से माफी मांग ली है, अत: उन्हें माफ कर देना चाहिए। अतीत में तो ऐसे अनेक नेता हुए हैं जिन्होंने आपत्तिजनक बयान देकर माफी भी नहीं मांगी।—विजय कुमार