‘अड़ियल चीन क्यों हटा पीछे’

Edited By ,Updated: 22 Feb, 2021 03:44 AM

why stubborn china withdraws

सीमा पर 9 महीनों से जारी गतिरोध में कमी लाने के लिए हाल ही में भारत और चीन की सेनाओं के बीच सहमति बनी और कई इलाकों से दोनों ने अपने कदम पीछे हटाने शुरू कर दिए हैं। पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी तट से भारत और चीन के सैनिकों...

सीमा पर 9 महीनों से जारी गतिरोध में कमी लाने के लिए हाल ही में भारत और चीन की सेनाओं के बीच सहमति बनी और कई इलाकों से दोनों ने अपने कदम पीछे हटाने शुरू कर दिए हैं। पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी तट से भारत और चीन के सैनिकों तथा सैन्य साजो-सामान को पीछे हटाने का काम पूरा होने के बाद इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर शनिवार को दोनों सेनाओं के वरिष्ठ कमांडरों के बीच 10वें दौर की एक उच्च स्तरीय वार्ता हुई है। 

बेशक सीमा पर जांबाज भारतीय सैनिकों ने अपनी दिलेरी और ऊंची चोटियों पर समय रहते कब्जा करके चीन के कई मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया परंतु अब इन हालात में उठने वाले सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये हैं कि चीन ने अचानक से यह सीमा विवाद शुरू ही क्यों किया था? सीमा विवादों में बेहद अडिय़ल रवैया अपनाने के लिए जाना जाने वाला चीन आखिर 9 महीने बाद पीछे हटने के लिए क्यों सहमत हो गया और अब आगे क्या होगा? इन सवालों के कुछ स्पष्ट जवाब तो दिए नहीं जा सकते परंतु भारत को लेकर चीन की सोच तथा नीति पर चीन के एक संगठन ‘चाइना एकैडमी ऑफ मिलिट्री साइंसेज’ द्वारा प्रकाशित पेपर से इसके कई कारणों की जानकारी मिल सकती है। 

इस पेपर के अनुसार चीन की यह सोच रही है कि भारत तेजी से एक क्षेत्रीय शक्ति बनता जा रहा है और दक्षिण-पूर्व एशिया में हिन्द महासागर के साथ लगते देशों पर उसका प्रभुत्व स्थापित हो रहा है। साथ ही भारतीय नौसेना के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी चीन चिंतित है। ऐसे में हो सकता है कि चीन भारत की सेना को उसकी उत्तरी सीमा पर इसलिए घेरना चाहता हो ताकि भारत मजबूर हो जाए और वह अपनी नौसेना पर अधिक ध्यान न दे सके और अपना सारा पैसा व सैनिक उत्तरी सीमा पर केंद्रित रखे जोकि हुआ भी। दूसरा कारण यह हो सकता है कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कमजोर दिखाना चाहते थे, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के साथ किया था जो 1962 तक पहुत शक्तिशाली थे परंतु 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद उनकी पहले वाली स्थिति नहीं रही थी। 

तीसरा कारण कोरोना महामारी की वजह से उनके देश में नागरिकों में निराशा फैली हुई थी और सरकार से नाराजगी भी थी। ऐसे में हो सकता है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने देशवासियों में देशभक्ति की भावना का संचार करने तथा सीमा पर विवाद व युद्ध की कगार पर देश को पहुंचाने की स्थिति पैदा की हो। अब हम यदि भारत और चीन के बीच हुई संधि की बात करें कि उनमें कोई भी अपनी ओर से आगे नहीं बढ़ेगा और जिन भी बातों पर सहमति बनी है उन्हीं का पालन किया जाएगा परंतु हम यह बात नहीं भूल सकते कि पहले भी दोनों देशों में ऐसी संधियां हुईं परंतु चीन ने अक्सर उनका पालन नहीं किया। जैसे कि राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकार के समय भी दोनों देशों में संधियां हुईं परंतु एक ही झटके में चीन ने उन्हें तोड़ दिया। 

मानना होगा कि ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधियों में गारंटी नहीं दी जा सकती है कि संबंधित देश हर हालत में उनका अनुसरण करेंगे। ये संधियां केवल आपसी विश्वास पर टिकी होती हैं और इस समय दोनों देशों के बीच विश्वास की भारी कमी है। हालांकि, अच्छी बात यह है कि आखिर दोनों देशों में सीमा विवाद को लेकर संधि हुई तो सही। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि चीन के साथ सीमा पर शुरू हुए इस गतिरोध के आने वाले समय में दूरगामी परिणाम होने वाले हैं। जैसे कि सारी सेना को भारत अब चीन सीमा से नहीं हटा सकता। कई दुर्गम इलाके ऐसे हैं जहां गर्मियों में तो सिपाही तैनात रहते हैं परंतु सर्दियों में उन इलाकों को खाली छोड़ दिया जाता था परंतु अब सर्दियों में भी वहां सैनिकों को तैनात रखना होगा ताकि ऐसे हालात दोबारा न बनें क्योंकि न जाने चीन कब दोबारा ऐसा कर बैठे। 

ऐसा नहीं है कि चीन के पास संसाधनों या पैसे की कमी हो इसलिए वह पीछे हटा है, चीन के पीछे हटने का एक कारण भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर जगह समर्थन मिलना भी बताया जाता है। जैसे कि क्वाड जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों से लेकर ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित सभी प्रमुख देश भारत के पक्ष में बोल रहे थे। यहां तक कि जब यूरोप भी खुल कर चीन के विरुद्ध नहीं बोल रहा था। ऐसे में यदि चीन का मकसद भारत की छवि को नुक्सान पहुंचाना था तो वह नहीं हो सका। न तो ऐसा धरातल पर हो सका क्योंकि भारतीय सेना कैलाश रेंज तथा कठोर चुनौतियों से भरपूर और रणनीतिक महत्ता वाली 6-7 चोटियों पर चीन के सामने मजबूती और आक्रामकता से डटी रही, न ही चीन भारत की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचा सका, इसके विपरीत भारत का अंतर्राष्ट्रीय समर्थन बढ़ गया। 

बेशक चीन अपने ऐसे मकसदों में कामयाब न हो सका हो परंतु भारत में कोई भी इस बात से अब इंकार नहीं कर सकता कि हमें पहले की तुलना में कहीं अधिक सतर्कता के साथ अपनी सीमाओं पर नजर रखनी होगी क्योंकि चीन में जब भी कोई आंतरिक विरोध बढ़ेगा तो वह फिर से अपने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए भारतीय सीमा पर विवाद छेड़ सकता है। वैसे भी अरुणाचल प्रदेश पर भी उसकी नजर रही है।

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