भारत की जनजातीय विरासत और वीरों का उत्सव

Edited By Updated: 15 Nov, 2025 03:29 AM

celebrating india s tribal heritage and heroes

एक दशक पहले, भारत में आदिवासी शब्द सुनते ही अक्सर अभावों, स्कूलों से वंचित दूर-दराज के गांवों, पानी के लिए मीलों पैदल चलने वाली माताओं और अवसरों की तलाश में जंगल छोडऩे वाले युवाओं की छवियां उभरती थीं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, यह कहानी...

एक दशक पहले, भारत में आदिवासी शब्द सुनते ही अक्सर अभावों, स्कूलों से वंचित दूर-दराज के गांवों, पानी के लिए मीलों पैदल चलने वाली माताओं और अवसरों की तलाश में जंगल छोडऩे वाले युवाओं की छवियां उभरती थीं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, यह कहानी अस्तित्व की कहानी से बदलकर सफलता की कहानी बन गई है। जिसे कभी भारत का ‘भूला हुआ सीमांत’ माना जाता था, वह अब विकास और गौरव के सबसे जीवंत इंजनों में से एक बन गया है। पहली बार, आदिवासी सशक्तिकरण एक नारा नहीं, बल्कि न्याय, सम्मान और अवसर से प्रेरित एक आंदोलन है। भगवान बिरसा मुंडा द्वारा संचालित उलगुलान आंदोलन यह सिद्ध करता है कि जनजातीय आंदोलन केवल अलग-अलग संग्राम नहीं थे बल्कि औपनिवेशक अत्याचार के विरुद्ध संगठित प्रतिप्रवाह थे।

हाशिए से मुख्यधारा तक : जब प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में पदभार संभाला था तब भारत में आदिवासी विकास एक सीमित ढांचे में संचालित होता था, केवल 4,498 करोड़ रुपए के बजट वाला एक मंत्रालय। पिछले एक दशक में, यह दृष्टिकोण एक राष्ट्रव्यापी मिशन में बदल गया है। आज, 42 मंत्रालय अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्य योजना के माध्यम से जनजातीय कल्याण में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं। इस योजना के तहत कुल जनजातीय-केंद्रित व्यय में 5 गुना वृद्धि हुई है जो 2014 में 24,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 2024-25 में 1.25 लाख करोड़ रुपए हो गया है। जनजातीय कार्य मंत्रालय का बजट तीन गुना बढ़कर 13,000 करोड़ रुपए हो गया है जो समावेशी विकास के प्रति सरकार की गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान ने भारत की जनजातीय विकास यात्रा में एक नए युग की शुरूआत की है। 79,156 करोड़ रुपए के परिव्यय और 17 मंत्रालयों के संयुक्त प्रयासों से, इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का लक्ष्य 2029 तक 63,843 जनजातीय-बहुल गांवों और 112 आकांक्षी जिलों को आवास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और कनैक्टिविटी में लंबे समय से चली आ रही कमियों को दूर करना है।केवल एक वर्ष में, इसका प्रभाव जनजातीय गढ़ में दिखाई दे रहा है:-
-4 लाख से अधिक पक्के घर बनकर तैयार 
हो चुके हैं।
-लगभग 700 छात्रावास बनाए जा रहे हैं।
-70 मोबाइल चिकित्सा इकाइयां अब दूर-दराज के इलाकों तक पहुंच रही हैं।
- 26,500 से अधिक गांवों में पाइप से पेयजल की सुविधा उपलब्ध है  जबकि 8,600 से अधिक घरों में बिजली कनैक्शन उपलब्ध हैं।
-लगभग 2,200 गांव अब मोबाइल नैटवर्क से जुड़ चुके हैं और 280 से ज्यादा आंगनवाड़ी केंद्र प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और पोषण को बढ़ावा दे रहे हैं। 
साथ ही, प्रधानमंत्री 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के उत्थान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सबसे दूरस्थ समुदाय भी पीछे न छूटें। 24,104 करोड़ रुपए के बजट के साथ, यह मिशन कई मोर्चों पर समावेशी प्रगति को गति दे रहा है :
-90,000 से ज्यादा पक्के घर बनाए गए हैं और 92,000 से ज्यादा घरों का विद्युतीकरण किया गया है।
- घर-घर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के 
लिए लगभग 700 मोबाइल चिकित्सा इकाइयों को मंजूरी दी गई है।

-लगभग 6,700 गांवों को पाइप से पानी की सुविधा मिल चुकी है और 1,000 आंगनवाड़ी केंद्र अब कार्यरत हैं। ये दोनों प्रमुख मिशन मिलकर मोदी सरकार के इस संकल्प को दर्शाते हैं कि कोई भी गांव दूर नहीं है और कोई भी समुदाय देश की प्रगति में भाग लेने के लिए छोटा नहीं है, जिससे विकसित भारत का सपना जमीनी स्तर पर साकार हो रहा है। 2013-14 में, आदिवासी बच्चों के लिए अवसर कम थे केवल 119 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय लगभग 34,000 छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे थे और सीमित वित्तीय सहायता के कारण कई लोगों के सपने अधूरे थे। एक दशक बाद, तस्वीर बिल्कुल अलग है। 2025 तक, भारत में 479 ई.एम.आर.एस. होंगे जो 1,38 लाख युवाओं के मस्तिष्क का पोषण करेंगे, जिनमें से कई देश के सुदूर कोनों से आए पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं। इस परिवर्तन में योगदान देते हुए, सरकार ने पिछले 10 वर्षों में 22,000 करोड़ रुपए से अधिक की छात्रवृत्तियां प्रदान की हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संसाधनों की कमी के कारण कोई भी आदिवासी छात्र पीछे न छूटे। आज, लगभग 30 लाख आदिवासी छात्र हर साल छात्रवृत्ति प्राप्त करते हैं।-सी.पी.राधाकृष्णन(उप-राष्ट्रपति)

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