प्रशांत किशोर की बात गलत साबित करने आगे आएं कांग्रेस नेता

Edited By Updated: 08 Dec, 2021 04:26 AM

congress leaders should come forward to prove prashant kishor wrong

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा है कि कांग्रेस 90 प्रतिशत चुनाव हार चुकी है। इसलिए अब इसे यू.पी.ए. का नेतृत्व करने का अधिकार नहीं है। खैर बात एक पेशेवर रणनीतिकार ने कही है

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा है कि कांग्रेस 90 प्रतिशत चुनाव हार चुकी है। इसलिए अब इसे यू.पी.ए. का नेतृत्व करने का अधिकार नहीं है। खैर बात एक पेशेवर रणनीतिकार ने कही है तो दूर तक जाएगी ही। इस संदर्भ में एक सवाल और उठता है कि कांग्रेस यू.पी.ए. का नेतृत्व नहीं कर सकती तो फिर कौन? यह प्रश्र प्रशांत किशोर जी के दिमाग में भी होगा लेकिन इसका जवाब उनके पास भी शायद नहीं है। 

28 दिसम्बर को अपना 136वां जन्म दिन मना रही कांग्रेस पार्टी, जो भारत के कोने-कोने में वजूद में है, जन-जन के दिमाग में है। उसे आज इस तरह की बातें सुनने को मिलें तो कांग्रेस के कत्र्ता-धत्र्ताओं को कष्ट तो होगा ही। उन लोगों को यह भी समझना होगा कि आखिर इस तरह की बातें हो रही हैं तो क्यों? 

मैं बिना किसी लाग-लपेट के बता दूं कि कांग्रेस में बड़े नेता विद्वान और अनेकों प्रकार की डिग्रियां लिए हुए हैं, मगर वे जमीन से जुड़े नहीं हैं। बयान देना जानते हैं परंतु जनता के बीच आकर संघर्ष करने और बोलने का माद्दा ज्यादातर नेताओं के पास नहीं है। 2014 में हार कर ऐसा लगा कि कांग्रेस के नेता विश्राम पर चले गए हैं। उनकी सोच रही होगी कि चलो थोड़ा आराम करें। जनता परेशान होकर जल्दी ही सत्ता उन्हें सौंप देगी। जैसे कि सत्ता पर उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो। 

वे नरेंद्र मोदी जी का चायवाले के रूप में उपहास उड़ाते रहे और मोदी जी अपनी जड़ें मजबूत करते गए। एक बेहतर वक्ता और जमीन से जुड़ी बातें करके वह लोगों के दिलों में घर कर गए और कांग्रेस के नेता अपनी अटपटी और दंभी शैली में उलझे रह गए। जो संघर्ष उन्हें करना चाहिए था, वे नहीं कर पाए। क्षेत्रीय दल प्रदेशों में भाजपा को इसलिए हराते रहे क्योंकि उन्होंने लोगों के लिए संघर्ष करना नहीं छोड़ा। यही कारण रहा कि अधिकतर राज्यों में भाजपा का रथ क्षेत्रीय दलों ने रोका। गलतियां सबसे होती हैं, कमियां सबमें होती हैं, किन्तु कांग्रेस के नेता भाजपा की कमियों को जनता के सामने ला ही नहीं सके। क्यों? क्योंकि उनकी सोच थी कि जनता जब भाजपा की सरकार से परेशान हो जाएगी, उन्हें खुद-ब-खुद सत्ता सौंप देगी जैसा कि हमारे साथ पहले भी होता रहा है। 

अब उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में जहां फिलहाल कांग्रेस के लिए सत्ता दूर की कौड़ी है, मगर प्रियंका गांधी की शैली और मेहनत के कारण कम से कम यह तो लगने लगा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस भी है। इसी तरह की मेहनत और इच्छा शक्ति कांग्रेस के नेताओं को पूरे देश में दिखानी होगी। लोगों के बीच जाना होगा उनके लिए संघर्ष करना होगा। केवल कैमरों के सामने नहीं, सच में उन्हें जनता से जुडऩा होगा क्योंकि 2024 अब दूर नहीं है और यह भी सच है कि अन्य सरकारों की तरह भाजपा सरकार में भी अनगिनत कमियां हैं, उन्हें अभी तक सिर्फ मोदी जी का आभामंडल ही ढंके हुए है। 

एक बात मैं और कहना चाहूंगा कि चुनाव प्रचार का समय हो या महत्वपूर्ण मुद्दे, राहुल गांधी और सोनिया गांधी के अलावा अन्य नेता दूर क्यों रहते हैं? क्या सच में गांधी परिवार नहीं चाहता कि उनके अलावा कोई आगे आए या फिर कांग्रेस के नेताओं की ही गांधी परिवार की जिम्मेदारी बांटने में दिलचस्पी नहीं है? अक्सर चुनाव के मौकों पर हम देखते हैं कि कांग्रेस के अनेकों दिग्गज, जैसे कि कपिल सिब्बल, चिदम्बरम, गुलाम नबी आजाद और एक अच्छे वक्ता नवजोत सिंह सिद्धू हैं, लेकिन केंद्र के चुनाव में ये और अनेक नामचीन नेता प्रचार से गायब रहते हैं। 

मेरा मानना है कि जो बात प्रशांत किशोर जी ने कही है, उसे गलत साबित करने के लिए कांग्रेस के नेता आगे आएं। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व दूरगामी नीतियां बनाए और जो लोग, जी हां आज भी बहुत ऐसे लोग हैं जो कांग्रेस की दिल से सेवा करके उनके माध्यम से देश की सेवा करने की भावना मन में लिए बैठे हैं, उनको निचले पायदान से उठा कर पार्टी की सेवा में लगाना है और कांग्रेस के नेताओं को अपने कार्यकत्र्ताओं का सम्मान करने की भी जरूरत है क्योंकि कार्यकत्र्ता ही पार्टी की शक्ति होते हैं। मेरे विचार से अगर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व तक ये बातें पहुंचें तो कोई वजह नहीं कि कांग्रेस पार्टी चुनाव में बेहतर न कर सके और इस तरह के सवालों का उसे सामना करना पड़े।-वकील अहमद 
 

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