क्या पंजाब ने अपनी गलतियों से सीखा

Edited By Updated: 18 Jul, 2024 05:26 AM

has punjab learnt from its mistakes

पंजाब की हालिया घटनाएं मन में चिंता पैदा करती हैं। जो सूबा एक समय देश का सिरमौर था, वह आज नशाखोरी, मतांतरण, असहिष्णुता, हिंसा और अलगाववाद का शिकार है। इसके लिए बाहरी और आंतरिक तत्व दोनों जिम्मेदार हैं। जिन राजनीतिज्ञों पर इस स्थिति का दायित्व है, वे...

पंजाब की हालिया घटनाएं मन में चिंता पैदा करती हैं। जो सूबा एक समय देश का सिरमौर था, वह आज नशाखोरी, मतांतरण, असहिष्णुता, हिंसा और अलगाववाद का शिकार है। इसके लिए बाहरी और आंतरिक तत्व दोनों जिम्मेदार हैं। जिन राजनीतिज्ञों पर इस स्थिति का दायित्व है, वे या तो समस्या का हिस्सा हैं या फिर चुप हैं। जिस कांग्रेस ने अपनी नीतियों के कारण इसका खामियाजा सर्वाधिक भुगता, उसका शीर्ष नेतृत्व संकीर्ण ङ्क्षचतन में फंसकर इसे फिर प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से बढ़ावा देने में लगा है। 

पंजाब की जालंधर देहात पुलिस ने खडूर साहिब से खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल के भाई हरप्रीत सिंह सहित अन्य 2 आरोपियों को 4 ग्राम  क्रिस्टल मैथामेफटामाइन (आइस) के साथ बीते दिन गिरफ्तार किया था। उस समय हुई मैडीकल जांच में हरप्रीत और उसके साथी का डोप टैस्ट भी पॉजीटिव आया था। अदालत ने आरोपियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। इससे पहले 5 जुलाई को शिवसेना की पंजाब इकाई के नेता संदीप थापर पर निहंग-वेश में 3 लोगों ने जानलेवा हमला कर दिया था, जिसका वीडियो खूब वायरल हुआ। थापर पर व्यस्त सड़क पर दिन-दिहाड़े यह हमला उस समय किया गया, जब वे अपने सुरक्षाकर्मी के साथ स्कूटर पर बैठे थे। फिलहाल वे खतरे से बाहर हैं तो आरोपी पुलिस की गिरफ्त में हैं। 

यह मामला ठंडा हुआ नहीं था कि अमृतसर स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान (आई.आई.एम.) की बस में निहंग-वस्त्रधारी द्वारा तलवार लेकर घुसने, सुरक्षाकर्मी को पीटने और छात्रों को धूम्रपान करने पर कलाई काटने की धमकी देने का मामला सामने आ गया। इस घटना का भी वीडियो वायरल हो गया, जिसके बाद पुलिस आरोपी को गिरफ्तार करने को मजबूर हो गई। पूछताछ में आरोपी ने कहा कि गुरु नगरी में तंबाकू बेचने वालों और इस्तेमाल करने वालों को नहीं रहने देगा। नशाखोरी, असहिष्णुता और खालिस्तानी तत्वों का उभार आपस में गहरा ताल्लुक रखता है। यह उस खूनी अध्याय की यादें ताजा करता है, जिसका जिक्र एक गैर-राजनीतिक चश्मदीद, मुआसिर आई.पी.एस. अधिकारी और भारतीय खुफिया एजैंसी ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’  (रॉ) में 26 वर्ष जुड़े रहने के बाद विशेष सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए गुरबख्श सिंह सिद्धू ने अपनी पुस्तक ‘द खालिस्तान कांस्पीरेसी’ में किया है। उनका खुलासा इसलिए भी मायने रखता है, क्योंकि वे कांग्रेस के दिग्गज नेता दिवंगत सरदार स्वर्ण सिंह के दामाद भी हैं। 

अपनी पुस्तक में गुरबख्श लिखते हैं, ‘‘वर्ष 1977 के पंजाब (विधानसभा) चुनाव में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में अकाली दल-जनता पार्टी गठबंधन से कांग्रेस हार गई थी। इसके तुरंत बाद, मुझे पूर्व मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और संजय गांधी द्वारा जरनैल सिंह भिंडरावाले के समर्थन से अकाली दल के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों की जानकारी मिली।’’बकौल सिद्धू ज्ञानी जैल सिंह ने संजय गांधी को सलाह दी कि पंजाब में अकाली दल-जनता पार्टी गठबंधन सरकार को अस्थिर किया जा सकता है, यदि उनकी उदारवादी नीतियों पर एक उपयुक्त सिख संत द्वारा लगातार हमला किया जाए। इसके लिए कांग्रेस ने जरनैल सिंह भिंडरांवाले को चुना। प्रारंभिक असफलता के बाद कांग्रेसी प्रपंच ने पंजाब को अनियंत्रित अराजकता और रक्तपात की ओर धकेल दिया। 

कांग्रेस की विभाजनकारी राजनीति का परिणाम यह हुआ कि भिंडरांवाले ने अमृतसर स्थित श्री हरिमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) को अपना अड्डा बना लिया। चूंकि खालिस्तान की परिकल्पना विदेशी है और इसे अधिकांश भारतीय सिखों का समर्थन नहीं मिलता, इसलिए तब भिंडरांवाले के निर्देश पर निरपराध हिंदुओं के साथ देशभक्त सिखों को भी चिन्हित करके मौत के घाट उतारा जाने लगा।कालांतर में इंदिरा सरकार के निर्देश पर हुए ‘ऑप्रेशन ब्लू स्टार’ से  स्वर्ण मंदिर की मर्यादा भंग हो गई, जिससे श्रद्धालुओं को गहरा आघात पहुंचा। परिणामस्वरूप, 31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके 2 सिख अंगरक्षकों  सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने गोली मारकर हत्या कर दी। इसकी प्रतिक्रिया में हजारों निरपराध सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस प्रायोजित नरसंहार को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में न्यायोचित ठहराते हुए राजीव गांधी ने कहा था, ‘जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती थोड़ी हिलती है।’ यह ठीक है कि कांग्रेस के ‘ईको-सिस्टम’ ने खालिस्तान विमर्श को हवा दी, तो पाकिस्तान आज भी इसका सबसे पोषक बनकर पंजाब में नशाखोरी को भी बढ़ावा दे रहा है। 

पंजाब में ‘आप’ का शासन है, जिसका नेतृत्व भगवंत सिंह मान संभाल रहे हैं। उनका दामन ‘आप’ संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तुलना में अभी तक पाक-साफ है। अमृतपाल पर कानूनी कार्रवाई, मान सरकार के सहयोग से पूर्ण हो पाई है। वहीं केजरीवाल न केवल दिल्ली शराब घोटाले के आरोपी हैं और जेल में बतौर अभियुक्त बंद हैं, साथ ही उन पर खालिस्तानी चरमपंथियों के साथ सांठ-गांठ रखने का भी आरोप है। हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल ने केजरीवाल नीत ‘आप’ पर प्रतिबंधित खालिस्तानी संगठन ‘सिख्स फॉर जस्टिस’  से कथित रूप से राजनीतिक फंड लेने को लेकर जांच की सिफारिश की है। 

एक पुरानी कहावत है  ‘जो लोग अतीत को याद नहीं रखते, वे उसे दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं।’ क्या पंजाब ने अपनी गलतियों से सीखा? ऐसा प्रतीत होता है कि पंजाबी समाज का एक छोटा हिस्सा कनाडा में बसे उग्रवादियों से प्रेरणा लेकर और पाकिस्तान के समर्थन से आदरणीय सिख गुरुओं की कर्मभूमि को दोबारा विनाश की ओर धकेलना चाहता है।-बलबीर पुंजबलबीर पुंज 
    

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