कोश्यारी के फिर से सक्रिय होने का समय

Edited By Updated: 26 Jun, 2022 06:24 AM

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महाराष्ट्र की घटनाओं के राजनीतिक परिणाम को लेकर कोई संदेह नहीं है: उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया है और नेतृत्व परिवर्तन के लिए स्थिति परिपक्व है (भले ही अगली सरकार

 महाराष्ट्र की घटनाओं के राजनीतिक परिणाम को लेकर कोई संदेह नहीं है: उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया है और नेतृत्व परिवर्तन के लिए स्थिति परिपक्व है (भले ही अगली सरकार में कुछ चेहरे समान हों)। हालांकि, यह कानूनी परिणाम है जो अभी भी अपना खेल खेल रहा है। एकनाथ शिंदे और उनके लोगों का दल वास्तव में सरकार कैसे बनाएगा? क्या यह एक साधारण फ्लोर टैस्ट के जरिए होगा, या किसी अन्य जटिल कार्रवाई से? 

जो भी हो, महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, यह तय करने में 2 लोग महत्वपूर्ण होंगे। एक है (कार्यवाहक) विधानसभा अध्यक्ष, नरहरि जिरवाल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से (और इसलिए पार्टी ने उद्धव के नेतृत्व वाले महाराष्ट्र विकास अघाड़ी, या एम.वी.ए. में निवेश किया है) और दूसरे हैं राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, जो यह देखने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे कि मामला उन तक पहुंचे। 

कोश्यारी सितम्बर 2019 में राजभवन आने के समय से ही एक उदासीन पर्यवेक्षक से अधिक रहे हैं। उन्हें उत्तराखंड की राजनीति से उखाड़े जाने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन वह 75 वर्ष के हो गए थे। यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आलाकमान के लिए एकदम सही बहाना था कि उन्हें राज्य इकाई से बाहर निकालने के लिए कहा जाए, जहां उन्होंने अपने पीछे राजनीतिक विनाश के निशान छोड़े हैं। 

चूंकि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में एक प्रचारक थे, कोश्यारी भाजपा की राजनीति में सक्रिय रहे हैं, खासकर जब वह कुमाऊं में छात्र नेता चुने गए थे और बाद में 1975 के आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में उनकी भूमिका के लिए जेल गए थे। वह 1977 में अल्मोड़ा और फतेहगढ़ जेल से बाहर आए, लेकिन 1997 में उन्हें पहला औपचारिक राजनीतिक ब्रेक मिला, जब वह यू.पी. विधान परिषद के सदस्य बने (उत्तराखंड का गठन नहीं हुआ था)। 

उन्होंने महसूस किया कि उत्तराखंड के राजनीतिक नेतृत्व पर उनका दावा है, जब 2000 में इसका गठन हुआ। लेकिन उनको और उनके अनुयायियों को झटका देते हुए, यह नित्यानंद स्वामी थे, जो हरियाणा में पैदा हुए थे, लेकिन उत्तरांचली होने का दावा किया क्योंकि वह राज्य में पले-बड़े थे, जिन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था। एक ‘बाहरी’ के खिलाफ तुरंत एक अभियान शुरू हुआ और हालांकि कोश्यारी ने स्वामी की सरकार में मंत्री (ऊर्जा, सिंचाई और कानून) पद स्वीकार कर लिया, यह बुरे अनुग्रह के साथ था (उन्होंने अपने समर्थकों के साथ, शुरू में शपथ लेने का बहिष्कार किया)। सरकार का हिस्सा होने के बावजूद स्वामी को बाहर निकालने का उनका अभियान अथक था। एक साल बाद, दिल्ली को हथियार डालने पड़े और कोश्यारी को स्वामी की जगह देनी पड़ी। 

लेकिन कई कारणों से यह कदम भाजपा के लिए अनुकूल नहीं रहा। एक साल बाद, पार्टी चुनाव हार गई, ऐसे राज्य में पहली बार, जहां भाजपा के पास प्रशासन पर अपनी मुहर लगाने का हर मौका था। कोश्यारी ने खुद को विपक्ष के नेता और राज्य भाजपा इकाई के प्रमुख के रूप में पाया। 2007 में, जब फिर से चुनाव आए, जो भाजपा ने जीत लिए, लेकिन कोश्यारी को छोड़ कर बी.सी. खंडूरी (‘खंडूरी है जरूरी’ प्रसिद्धि प्राप्त) को राज्य में शीर्ष पद दिया गया। यह वास्तव में स्तब्धकारी था और फिर खंडूरी को बाहर निकालने के लिए एक अभियान शुरू हुआ। 

अब तक आलाकमान के पास पर्याप्त दलील थी और कोश्यारी को उनको कपकोट विधानसभा सीट से इस्तीफा देकर राज्यसभा जाने के लिए कहा गया। इसने एक और संकट पैदा कर दिया क्योंकि राज्य में भाजपा का बहुमत बेहद कम था। लेकिन अंतिम फैसला राजनाथ सिंह का ही था, क्योंकि वह यह कभी नहीं भूल सकते थे कि कोश्यारी 2002 में पार्टी को जीत की ओर नहीं ले जा सके। 

संसद में जाने के बावजूद कोश्यारी उत्तराखंड की राजनीति में अपनी रुचि नहीं छोड़ सके। खंडूरी एक दिन भी चैन से नहीं बिता सके। जब 2009 के चुनावों में भाजपा कांग्रेस से सभी 5 लोकसभा सीटें हार गई, तो खंडूरी ने इस्तीफा दे दिया और कोश्यारी के सहयोगी रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ मुख्यमंत्री बने। अनुयायियों को सदा के लिए अनुचर मानना एक भूल है। अंतत: खंडूरी और कोश्यारी ने हाथ मिलाया और मिल कर निशंक को हटाने की मांग की। 2012 के विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले, खंडूरी मुख्यमंत्री के रूप में लौटे, जबकि कोश्यारी दिल्ली में ही रहे। 

हालांकि, युद्ध के घोड़े को संतुष्टि नहीं थी। उन्होंने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और नैनीताल लोकसभा सीट जीती। 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुए, भाजपा ने 70 सदस्यीय विधानसभा में 57 सीटें जीतीं। एक बार फिर कोश्यारी को दरकिनार कर दिया गया और त्रिवेंद्र सिंह रावत, जो कभी उनके शिष्य थे, को तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के आशीर्वाद से मुख्यमंत्री बनाया गया। इस पर कोश्यारी ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह 2019 का चुनाव नहीं लड़ेंगे और आलाकमान ने ‘खतरे’ को रचनात्मक रूप से देखा और सी. विद्यासागर का कार्यकाल समाप्त होने पर उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया। 

महाराष्ट्र में, कोश्यारी ने जैसा उन्हें पसंद था, वैसा ही किया। राज्यपाल के कोटे के माध्यम से राज्य विधानमंडल के उच्च सदन में नामांकन के लिए 2020 में कोश्यारी को भेजे गए राज्य मंत्रिमंडल द्वारा अनुशंसित 12 नामों को राजभवन ने अभी मंजूरी देनी है। राज्यपाल को चुनाव कराने के लिए राजी करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ी। उच्च सदन में 9 रिक्तिया थींं, जिनमें से 1 मुख्यमंत्री के विधायिका के निर्वाचित सदस्य बनने के लिए थी। इसके बिना उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता था।इसलिए, हमें यह देखना होगा कि क्या राजभवन एम.वी.ए. की तुलना में शिवसेना-भाजपा गठबंधन के प्रति अधिक दयालु है? किसने क्या कहा, इस बहस को भुला दिया जाएगा, लेकिन राजभवन की हरकतें हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो जाएंगी।-अदिति फडणीस

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