‘टिड्डियों’ के हमले का जलवायु परिवर्तन से है संबंध

Edited By Updated: 31 Jan, 2020 06:10 AM

locust  attack is related to climate change

इतना तो स्पष्ट है कि आस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग जिसने कि वहां की धरती को जला कर रख दिया, वन्य प्राणियों तथा लोगों को मार दिया और घरों तक को राख कर दिया, का जलवायु परिवर्तन से संबंध है। यह सब कुछ गर्मी के स्तर के बढऩे के कारण सम्भव हुआ है। इसने...

इतना तो स्पष्ट है कि आस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग जिसने कि वहां की धरती को जला कर रख दिया, वन्य प्राणियों तथा लोगों को मार दिया और घरों तक को राख कर दिया, का जलवायु परिवर्तन से संबंध है। यह सब कुछ गर्मी के स्तर के बढऩे के कारण सम्भव हुआ है। इसने भूमि को शुष्क कर दिया है। नतीजतन सूखा पड़ा है और इसने आग के लिए भूमिका तैयार की है। जहां एक ओर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आग पर लगा है, वहीं विश्व के अन्य हिस्सों में बुरी मानवीय त्रासदी भी अपना खेल खेल रही है। इसका भी जलवायु परिवर्तन से संबंध है। 

दिसम्बर माह में राजस्थान तथा गुजरात के खेतों में टिड्डी दल के झुंडों ने हमला कर दिया। इससे फसलें तबाह हो गईं और किसानों की पूंजी भी तहस-नहस हो गई। अभी इसका अंदाजा नहीं कि आखिर कितना नुक्सान हुआ है मगर दोनों राज्यों की सरकारों ने दिल्ली के आकार से भी तीन गुणा बड़े क्षेत्र पर कीटनाशक दवाइयों का स्प्रे किया है। आस्ट्रेलियाई आग की तरह यही तर्क दिया जा सकता है कि टिड्डियों का हमला एक आम बात है और इस पर विवाद क्यों? 

हमले का कारण बेमौसमी बारिश
जांच में यह पाया गया है कि टिड्डियों के हमले का कारण बेमौसमी बारिश है। केवल भारत में ही नहीं बल्कि लाल सागर तट से लेकर अरबी प्रायद्वीप ईरान तथा राजस्थान में भी यही कारण है। यह कीट बड़ी तेजी से बढ़ता और आप मानो या न मानो, एक औसतन टिड्डी झुंड में 80 लाख जीव होते हैं। वे एक दिन में इतना भोजन खा लेते हैं जितना 2500 लोगों या फिर 10 हाथियों के लिए पर्याप्त है। पहले प्रजनन अवधि में टिड्डियां 20 गुणा बढ़ती हैं, दूसरे में 400 गुणा तथा तीसरे प्रजनन के दौरान 16000 गुणा। साधारण तौर पर इसका मतलब यह है कि यदि इनके प्रजनन की अवधि और बढ़ जाए तो ये और भी अधिक संख्या में बढ़ जाएंगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि टिड्डी दल हमें अकाल की याद दिलाता है। 

तबाही का दायरा भी बढ़ा
इस वर्ष ये जीव अधिक बढ़े हैं तथा इनकी तबाही का दायरा भी बढ़ा है। मगर सोचने वाली बात यह है कि आखिर ऐसा क्यों है? इनके कई कारण हैं जिनकी जांच की आवश्यकता है। पहला यह है कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत तथा पश्चिम राजस्थान में बेमौसमी बारिश हुई थी। भारत का यह रेगिस्तान क्षेत्र टिड्डियों के प्रजनन के लिए माकूल नहीं। इन्हें पैदा होने के लिए नमी वाली तथा हरित भूमि चाहिए। मगर पिछले वर्ष बारिश समय से पूर्व ही हो गई। इसीलिए यह समाचार है कि टिड्डियों का हमला पहले ही मई 2019 में हो गया था। इस बात को नकार दिया गया। उसके बाद मानसून बढ़ गया। बरसात जारी रही और यह कीट जोकि पश्चिम एशिया तथा अफ्रीका में प्रवास कर जाता है, ने यहीं पर रुक कर प्रजनन किया है। दूसरी बात यह है कि मई 2018 में चक्रवात मेकूनू तथा उसके बाद अक्तूबर 2018 में चक्रवात लुबान के चलते अरबी प्रायद्वीप में जमकर बारिश हुई, जिससे रेगिस्तान में झीलें बन गईं। ऐसे हालात भी प्रजनन के लिए बेहतर थे। यह क्षेत्र पहले से ही गरीबी तथा युद्ध से त्रस्त है और इसने तबाही झेली। उसके बाद पिछले वर्ष जनवरी में लाल सागर तट में भारी बारिश हुई, जोकि बेमौसमी भी थी। वर्षा होने की 9 माह की विस्तृत अवधि ने इस कीट को और पनपने का मौका दिया है। 

टिड्डियों पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि इनकी गिनती के बढऩे का कारण यह है कि यह क्षेत्र ज्यादा खाद्य पदार्थ पैदा नहीं कर सकता। लगातार चक्रवात तथा हवाओं का रुख भी बदल गया। टिड्डियां हवा के रुख के साथ मुड़ती हैं। आम तौर पर ये मानसून की हवाओं के साथ भारत का रुख करती हैं। 2019 में वैज्ञानिकों ने कहा कि टिड्डियां लाल सागर पार कर अफ्रीका, उसके बाद फारस की खाड़ी और फिर ईरान पहुंचेेंगी। सर्दियों में ये आराम की अवस्था में रहती हैं। यहीं से इन्होंने अपना रास्ता पाकिस्तान तथा भारत के लिए चुना। 

इस वर्ष नुक्सान बहुत ज्यादा हो गया और किसान अपंग बन कर रह गया
जनवरी-फरवरी 2020 में जब टिड्डियां गुजरात से वापस लौटीं और उसके बाद राजस्थान से पाकिस्तान और फिर ईरान की ओर बढ़ गईं। राजस्थान में मानसून की अवधि बढऩे के कारण तीसरी पीढ़ी के कीट का प्रजनन हुआ था। यही कारण है कि इस वर्ष नुक्सान बहुत ज्यादा हो गया और किसान अपंग बन कर रह गया। यहां पर काफी प्रमाण मिले हैं कि बेमौसमी बारिश तथा चक्रवातों की तीव्रता का ङ्क्षलक जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है। इन बातों को समझने के लिए राकेट साइंस की जरूरत नहीं। ग्रीन हाऊस की गैसों को कोई सीमा नहीं बांध सकती। मौसम में बदलाव के कारण कीट संक्रमण का वैश्वीकरण हुआ है। हम आस्ट्रेलिया में लगी आग को तो जानते हैं मगर टिड्डियों के हमले की पृष्ठभूमि को नहीं जानते। हम इसमें कोई संबंध नहीं स्थापित कर रहे। हम अपने लोगों का दर्द समझ सकते हैं। अफ्रीका से लेकर एशिया तक जलवायु के जोखिम वाले भविष्य में ये लोग रह रहे हैं।-सुनीता नारायण

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