पुरुष-महिला वेतन समानता और भारत

Edited By Updated: 04 Nov, 2025 04:08 AM

male female pay equality and india

बहुत साल पहले मैं एक टी. वी. प्रोग्राम में गई थी। उसका विषय था, महिला -पुरुष  वेतन में असमानता। यह कार्यक्रम दर्शकों के बीच था। इसमें उस समय की महिला मामलों से संबंधित मंत्री भी आई हुई थीं। बातचीत के दौरान मंत्री बोलीं कि वह चाहती हैं कि घर में रहकर...

बहुत साल पहले मैं एक टी. वी. प्रोग्राम में गई थी। उसका विषय था, महिला -पुरुष  वेतन में असमानता। यह कार्यक्रम दर्शकों के बीच था। इसमें उस समय की महिला मामलों से संबंधित मंत्री भी आई हुई थीं। बातचीत के दौरान मंत्री बोलीं कि वह चाहती हैं कि घर में रहकर घर संभालने वाली और बच्चों को पालने वाली महिलाओं को भी वेतन मिले। वेतन देगा कौन? इस पर वह बोलीं कि महिला का पति। 

उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि अगर एक रिक्शा वाला 2000 रुपए महीना कमाता है तो उसे अपनी पत्नी को आय का आधा भाग  यानी कि 1000 रुपए महीना देना चाहिए। तब इस लेखिका तथा अन्य कई लोगों ने उनसे कहा था कि कायदे से उन्हें रिक्शे वाले की आय बढ़ाने के बारे में पहले सोचना चाहिए। उसके बाद आय के बंटवारे की बात हो। बहुत से विशेषज्ञ कहते रहते हैं कि घर में रहने वाली महिलाओं को भी वेतन मिलना चाहिए। इसके मुकाबले क्यों न ऐसा हो कि घर में रहने वाली महिलाएं भी आत्मनिर्भर हों। उनकी आय तो बढ़े ही, घर की आय भी बढ़े।

इसके अलावा महिला और पुरुषों के वेतन में असमानता भी खूब दिखाई देती है। संगठित क्षेत्र के मुकाबले यह असमानता असंगठित क्षेत्र में बहुत ज्यादा है। इसे दूर करने के प्रयास भी बहुत सफ ल नहीं होते। महिलाएं असंगठित क्षेत्र में पुरुषों से कम मेहनत नहीं करती हैं लेकिन उनकी आय कम होती है। न जाने क्यों यह मान लिया जाता है कि किसी भी काम को करने में पुरुषों का जितना श्रम लगता है, महिलाओं का नहीं। और यह हालत दुनिया भर में है। लेकिन जैसे-जैसे स्त्रियां मजबूत हो रही हैं, पढ़-लिख रही हैं, घर से बाहर निकल रही हैं, स्थितियां भी बदल रही हैं। हाल ही में ग्लोबल पेरोल एंड कम्प्लाइंस की एक रिपोर्ट आई है। इसमें बताया गया है कि भारत में महिला और पुरुषों का वेतन समान है। इस रिपोर्ट में 150 देशों के महिला-पुरुष कर्मचारियों के बारे में अध्ययन किया गया। उनके रोजगार की शर्तों को देखा गया। इसमें 10 लाख अनुबंधों का अध्ययन किया गया। 

दुनिया भर की 35,000 कम्पनियों के डाटा का विश्लेषण किया गया। इसी में बताया गया कि वेतन में भेदभाव का सबसे ज्यादा अंतर कनाडा और फ्रांस में देखा गया। क्या आश्चर्य नहीं होता कि कनाडा और फ्रांस  पहली दुनिया यानी कि विकसित दुनिया के देश कहलाते हैं। और इस बात पर इतरा कर दुनिया को तमाम मानवाधिकारों के उपदेश भी देते रहते हैं। जबकि हमें तीसरी दुनिया का देश कहा जाता है। इस हिसाब से तो हम तीसरी दुनिया के ही देश भले। फ्रांस का वह नारा-‘लिबर्टी, इक्वैलिटी, फैटर्निटी’ एक तरफ तो सबकी बराबरी की बात करता है  लेकिन और मामलों में तो बराबरी छोडि़ए वेतन के मामले में ही महिला-पुरुष में भेदभाव है। यह भेदभाव दुनिया के दादा अमरीका में भी है। स्त्रीवाद  का दुनिया को पाठ पढ़ाने के मामले में फ्रांस  और अमरीका अपने  को दुनिया का दादा समझते हैं मगर वास्तविकता कुछ और होती है। 

अमरीका या यूरोप में देखा गया है कि आज भी वहां बच्चों को पालने और घर चलाने की जिम्मेदारी स्त्रियों की ही है। बहुत सी जगहों पर देखती रही हूं कि महिला एक बच्चे को गोद में उठाए हुए है, एक बच्चा इधर-उधर दौड़ रहा है, तीसरा बच्चा प्रैम में है। 4-5 बच्चे भी दिखाई देते हैं। कई दृश्य ऐसे भी होते हैं जिनमें किसी पार्क में या किसी एयरपोर्ट पर पतिदेव बड़े आराम से कोई किताब पढ़ रहे हैं या मोबाइल पर कोई फिल्म देख रहे हैं और पत्नी 3-4 बच्चों को संभाल रही है। कोई बच्चा झूला झूल रहा है तो कोई कुछ खाना चाहता है , कोई गोद में सो ही गया है। ऐसे ही किसी रेस्तरां में मां ही हैं जो बच्चों को खिलाती नजर आती हैं। और स्त्री अधिकारों के मामलों में ठुकाई के लिए किस देश को चुना जाता है, हमारे जैसे देश को। 

यदि हम स्त्री-पुरुष वेतन के मामले में तमाम विकसित कहे जाने वाले देशों को पीछे छोड़ चुके हैं तो इससे यही बात साबित होती है कि जमीनी स्तर पर हम महिलाओं को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। यह दिखाई भी देता है। कुछ दशक पहले तक महिलाओं की बड़ी संख्या काम-काज करती शहरों में ज्यादा दिखाई देती थी। हालांकि गांवों में काम करने वाली महिलाओं की संख्या भी कोई कम नहीं थी। ये महिलाएं खेतों और घरों में काम करती थीं। लेकिन अब बड़ी संख्या में महिलाएं खेती, किसानी और घर के कामों से अलग बहुत से काम गांवों और छोटे शहरों में कर रही हैं। ये काम ऐसे हैं जिनके बारे में पहले कभी सोचा नहीं गया था कि इन्हें महिलाएं भी कर सकती हैं। जैसे कि ऑटो या ई-रिक्शा चलाना। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें उन्हें अपने परिवार वालों का सहयोग मिल रहा है। ससुराल वाले और पति भी सहयोग कर रहे हैं क्योंकि महिलाएं आत्मनिर्भर होकर पैसे घर ला रही हैं। यही असली तस्वीर है, जिसे पश्चिमी देशों को अपने-अपने चश्मों को उतारकर जरूर देखना चाहिए।-क्षमा शर्मा              
 

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