विपक्ष के बिना कोई लोकतंत्र नहीं

Edited By ,Updated: 14 Mar, 2023 05:55 AM

no democracy without opposition

हाल के विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद छोटे से राज्य नागालैंड में सभी दलों ने सत्ता में हिस्सेदारी पाने के लिए विपक्ष मुक्त सरकार का गठन किया।

हाल के विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद छोटे से राज्य नागालैंड में सभी दलों ने सत्ता में हिस्सेदारी पाने के लिए विपक्ष मुक्त सरकार का गठन किया। सभी दलों ने बिना शर्त सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन किया और सभी दल बिना किसी विपक्ष के सरकार में हैं। यह पहली बार नहीं है जब नागालैंड ने विपक्ष मुक्त सरकार चुनी है। 2015 और 2021 में भी ऐसी ही सरकारें थीं लेकिन यह पहली विधानसभा थी जहां निर्वाचित सदस्यों के शपथ लेने के पहले से ही कोई विपक्षी दल नहीं था।

हितधारकों ने नागा के राजनीतिक समाधान के लिए सभी वर्गों को एक साथ लाने की अपनी दलील में अपने फैसले को सही ठहराया। लम्बे समय तक उग्रवाद के कारण यह राज्य गंभीर विकास चुनौतियों का सामना कर रहा है। विपक्ष का यह पूर्ण अभाव लोकतंत्र की उथल-पुथल को उसके सबसे बुरे रूप में दर्शाता है। सत्ताधारी नैशनलिस्ट डैमोक्रेटिक प्रोग्रैसिव पार्टी (एन.डी.पी.पी.)- भाजपा गठबंधन ने दूसरे सीधे कार्यकाल के लिए सत्ता बरकरार रखी।

60 सदस्यीय सदन में भाजपा ने 12 सीटें जीतीं और उसकी सहयोगी एन.डी.पी.पी. को 25 सीटें मिलीं। जबकि निर्दलियों ने 4 और राकांपा ने 7 सीटें जीतीं। राज्य में पहले शासन करने वाली कांग्रेस ने वर्तमान या पिछली विधानसभा में अपना खाता नहीं खोला था। अफसोस की बात यह है कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस नॉर्थ ईस्ट से लगभग गायब हो रही है जहां पहले यह एक प्रमुख ताकत थी। ऐतिहासिक परिदृश्य को समझने के लिए देश में सबसे लम्बे समय तक चलने वाला नागा आंदोलन ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुआ और आजादी के बाद भी जारी रहा।

1997 में केंद्र ने सबसे बड़े विद्रोही समूह नैशनल सोशलिस्ट काऊंसिल ऑफ नागालैंड  (एन.एस.सी.-आई.एम.) के साथ युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता  में आने के बाद वार्ता को नवीनीकृत किया। इसके परिणामस्वरूप 3 अगस्त, 2015 को 6 दशक पुराने उग्रवाद को समाप्त करने के लिए नागा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। नागा शांति वार्ता के लिए सरकार के वार्ताकार आर.एन. रवि ने भारत सरकार की ओर से इस पर हस्ताक्षर किए।

मोदी की उपस्थिति में एन.एस. सी.एन. की ओर से अध्यक्ष लैफ्टिनैंट इसाक ऋषि और महासचिव थुईनागालैंड मुईवा ने हस्ताक्षर किए। दूसरी बार 2021 में एन.पी.एफ. और निर्दलीय एन.डी.पी.पी.-भाजपा गठबंधन में शामिल हो गए ताकि नागालैंड समस्या का सामूहिक समाधान निकाला जा सके और विपक्ष मुक्त सरकार बनाई जा सके। हालांकि परिस्थितियां भिन्न होने के कारण नागालैंड प्रयोग को अन्य राज्यों या केंद्र तक नहीं बढ़ाया जा सकता।

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने अपनी सेवानिवृत्ति से पहले राजस्थान विधानसभा को संबोधित करते हुए विधायी निकायों में विपक्ष के लिए कम होती जगह पर ङ्क्षचता व्यक्त की। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि कानूनों को विस्तृत विचार-विमर्श के बिना पारित किया गया और एक मजबूत जीवंत सक्रिय विपक्ष का आह्वान किया गया। एक बड़े प्रश्न के रूप में, राज्य विधानसभा के भीतर विपक्ष की घटती जगह के कई कारण हैं।

इनमें वंशवादी नेताओं की बढ़ती संख्या, विधायिका में बहस की कमी, एक अच्छी प्रतिकथा का अभाव और एक अवरोधक एजैंडे को अपनाना शामिल है। भाजपा अपने विस्तार को लेकर आक्रामक रही है। मोदी और अमित शाह ने पार्टी का विस्तार करने के लिए साहसपूर्वक काम किया। यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर भी मुख्य रूप से मोदी के सत्ता में आने के बाद पिछले एक दशक में विपक्ष की जगह को व्यवस्थित रूप से मिटा दिया गया।

इसके विपरीत मुख्य राजनीतिक दल कांग्रेस अपने क्षेत्र की रक्षा करने में असमर्थ होने के कारण अपने चुनावी प्रदर्शन में लगातार गिरावट पर है। वामदलों को भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ता है। क्षेत्रीय नेताओं को वह संख्या चाहिए थी जो इन राष्ट्रीय दलों के साथ गठजोड़ से ही आ सकती थी। इन सबसे ऊपर विपक्षी दलों को सत्ताधारी भाजपा को रोकने के लिए एक वैकल्पिक दृष्टि और एक आकर्षक पटकथा की आवश्यकता थी।

संविधान का मसौदा तैयार करते समय हमारे संस्थापकों ने विपक्ष की भूमिका सहित सभी पहलुओं पर गौर किया। आदर्श रूप से वास्तविक संसदीय लोकतंत्रों में सरकारों और विपक्ष के उन लोगों के प्रति समान दायित्व और जिम्मेदारियां होती हैं, जिन्होंने अपने हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना है। विपक्ष के बिना कोई लोकतंत्र नहीं है और सैद्धांतिक रूप से कम से कम यह उतना ही शक्तिशाली है जितना कि सरकार।

हालांकि शक्ति का दुरुपयोग करने की संभावना है जैसा कि एक कहावत है, ‘‘पूर्ण शक्ति पूरी तरह से भ्रष्ट करती है।’’ हालांकि लोकतंत्र की सफलता विपक्षी दलों की रचनात्मक भूमिका पर निर्भर करती है क्योंकि वे एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। वे सत्तारूढ़ दलों की छानबीन करते हैं और उन्हें चुनौती भी देते हैं और उनके कार्यों के प्रति जवाबदेह ठहराते हैं। जब लोग इसमें शामिल होते हैं तो विपक्ष मजबूत होता है। आज आम भारतीय ही सरकार के औपचारिक विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। विपक्ष की प्रभावशीलता सहित प्रश्न उठाने में निहित है। कोई भी विपक्षी दल, नागरिक समाज समूह या कोई भी संगठन जो मुद्दों से जुडऩा चाहता है, विपक्षी राजनीतिक का वाहन हो सकता है।-कल्याणी शंकर

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