जीवन और विचारधारा के हर पहलू पर राजनीति हावी

Edited By ,Updated: 04 Feb, 2023 03:34 AM

politics dominates every aspect of life and ideology

क्या राहुल गांधी अपनी बहुचॢचत ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद राजनीतिक रूप से मजबूत हुए हैं? मुझे यकीन नहीं है। मैं समझता हूं कि उनके दिमाग में कोई राजनीतिक एजैंडा नहीं था। वास्तव में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि उनकी यात्रा का कोई राजनीतिक और चुनावी...

क्या राहुल गांधी अपनी बहुचॢचत ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद राजनीतिक रूप से मजबूत हुए हैं? मुझे यकीन नहीं है। मैं समझता हूं कि उनके दिमाग में कोई राजनीतिक एजैंडा नहीं था। वास्तव में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि उनकी यात्रा का कोई राजनीतिक और चुनावी उद्देश्य नहीं है। उन्होंने कथित तौर पर यह कहा था कि उनका एकमात्र उद्देश्य प्रेम, बंधुत्व, साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता का संदेश फैलाना था। राहुल की ओर से इस तरह के लक्ष्य निश्चित रूप से प्रशंसनीय हैं। 

श्रीनगर के मध्य में लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद राहुल ने कहा, ‘‘भारत के लोगों से किया गया वायदा पूरा हो गया है।’’ मुझे उनके वायदों की प्रकृति के बारे में निश्चित नहीं है। हालांकि अपनी यात्रा के अंत में एक प्रैस वार्ता में उन्होंने कई मुद्दों पर बात की। इन मुद्दों में जम्मू और कश्मीर की राज्य के तौर पर बहाली और विधानसभा चुनावों से लेकर सीमा रेखा पर चीनी आक्रमण जैसी बातें शामिल थीं। तिरंगे के प्रतीकात्मक फहराने और कश्मीर के साथ उनके पारिवारिक संबंध के बावजूद राहुल धारा 370 की बहाली के संवेदनशील मुद्दे पर अप्रतिबंधित दिखे। 

कहा जाता है कि राहुल गांधी की यात्रा ने 135 दिनों में लगभग 4000 किलोमीटर की दूरी तय की थी। यह अपने आप में युवा कांग्रेसी नेता के लिए बेहद प्रशंसनीय है। इसने उन्हें उन लोगों की नजरों में खड़ा कर दिया है जो उनके धैर्य, दृढ़ संकल्प और शारीरिक सहनशक्ति की सराहना करते हैं। अपनी स्थिति को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने ‘नफरत के बाजार में प्यार की दुकानें’ खोली हैं। उन्होंने राजनीति के एक वैकल्पिक दृष्टिकोण के बारे में भी बात की। राहुल ने राजनीति की अपनी वैकल्पिक दृष्टि का ब्यौरा नहीं दिया। वह शायद जानते हैं कि भारतीय राजनीति चुनावी लड़ाई के लिए एक कठिन खेल है। यह कोई रहस्य नहीं है कि भारत में जीवन और सोच के हर पहलू पर राजनीति हावी है। चुनावी राजनीति की मंथन प्रक्रिया राजनेताओं की शक्ति और व्यवहार पैट्रन के लिए विषम संयोजन है। इस कवायद में संवेदनशील लोग राजनीतिक खेल के उतार-चढ़ाव को या तो समझ नहीं पाते या पचा नहीं पाते। 

भारतीय राजनीतिक परिदृश्य निश्चित रूप से जटिल है। यहां तक कि राजनीतिक विज्ञान और लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली में कुछ सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत सिद्धांत भारत की राजनीतिक जटिलताओं में महत्वपूर्ण जांच और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन की कसौटी पर खरे नहीं उतर सकते। उदाहरण के तौर पर लालू प्रसाद यादव का मामला ही ले लें। बिहार की जाति की राजनीति ने एक जमीनी उत्पाद पर लालू लगभग 15 वर्षों तक हावी रहे। उनकी पत्नी मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के माध्यम से संचालित उनके छद्म शक्ति के खेल में इसके बारे में काफी रूढि़वादी स्पर्श था। इस प्रक्रिया में उन्होंने शासन के पश्चिमी सिद्धांतों, लोकतांत्रिक मानदंडों और स्वच्छ राजनीति पर आधारित भारत के अभिजात वर्ग को झटका दिया। 

पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के लिए ऐसे बुलंद विचारों का कोई फायदा नहीं था। जाने-अनजाने में क्या सही है और क्या गलत इस पर देहाती राजनीति का अपना ब्रांड विकसित करने के लिए लालू ने जोर दिया। भारत में आमतौर पर जमीनी स्तर पर राजनीतिक खेल ऐसे ही खेले जाते हैं। अपनी 135 दिनों की यात्रा के दौरान राहुल केवल 12 बड़ी जनसभाओं को संबोधित कर पाए। ऐसा कहा जाता है कि उनकी प्राथमिकता ‘भाजपा के नफरत के बाजार में प्यार की दुकान’ खोलने के एकमात्र उद्देश्य के साथ लोगों के साथ नुक्कड़ सभाएं करना था। यह उनके व्यक्तिगत राजनीतिक दृष्टिकोण का हिस्सा था। मुझे नहीं लगता कि भाजपा नफरत का कोई बाजार पालती है। वह तो हिंदू उन्मुख राजनीति के अपने ब्रांड को बढ़ावा देती है लेकिन देश को एक साथ रखने की दृष्टि खोए बिना। 

पंजाब में राहुल गांधी ने सिख धर्म के आध्यात्मिक केंद्र अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के सम्मान में अपनी पगड़ी लहराई। मुझे यकीन नहीं है कि राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंदू केंद्रित राष्ट्रवाद की तुलना में राजनीति के धर्म निरपेक्ष ब्रांड के बारे में स्पष्ट थे या नहीं। राहुल के सामने कांग्रेस को गरीबों की समर्थक और धर्मनिरपेक्ष इकाई के रूप में पेश करने के लिए कड़ी चुनौती है। उनके समर्थकों का कहना है कि युवा कांग्रेस नेता का एक उद्देश्य पार्टी को वैचारिक रूप से धर्मनिरपेक्ष तर्ज पर फिर से खड़ा करना है। एक फ्रांसीसी राजनीतिक वैज्ञानिक के अनुसार, ‘‘बहुत सारे ङ्क्षहदू अब इस बात पर विचार करने को तैयार नहीं हैं कि धर्म निरपेक्षता एक अच्छी चीज है या नहीं।’’ खैर, भारतीय धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता का नजरिया जटिल हो गया है। मुझे लगता है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता उदार और सर्व समावेशी है। 

राहुल गांधी को अपने पिता और पूर्वजों तथा भगवद् गीता सहित प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथों से आगे देखना और सीखना है। मेरा मानना है कि राहुल सबसे पहले अपनी राजनीतिक कवायद भारत जोड़ो की बजाय गुटबाजी से ग्रस्त कांग्रेस जोड़ो से शुरू कर सकते थे। राहुल को मैं शुभकामनाएं देता हूं।-हरि जयसिंह
 

Trending Topics

India

248/10

49.1

Australia

269/10

49.0

Australia win by 21 runs

RR 5.05
img title img title

Everyday news at your fingertips

Try the premium service

Subscribe Now!