‘आर.ओ. का इस्तेमाल भारतीयों की मजबूरी’

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2021 04:18 AM

r o the compulsion of indians

भारत इस समय पानी के मामले में दोहरी मुसीबत का सामना कर रहा है। एक तरफ भारत में पानी का संकट है और बड़ी संख्या में लोगों के पास पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है, दूसरी तरफ आर.ओ. का इस्तेमाल करके पानी को साफ करने में पर्यावरण का बहुत नुक्सान हो रहा है...

भारत इस समय पानी के मामले में दोहरी मुसीबत का सामना कर रहा है। एक तरफ भारत में पानी का संकट है और बड़ी संख्या में लोगों के पास पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है, दूसरी तरफ आर.ओ. का इस्तेमाल करके पानी को साफ करने में पर्यावरण का बहुत नुक्सान हो रहा है और पानी की बहुत बर्बादी हो रही है। 

एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक यदि पानी की बर्बादी नहीं रुकी तो भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत नुक्सान होगा और उसकी विकास दर शून्य से नीचे चली जाएगी। भारत में हर साल लगभग दो लाख लोग साफ पानी न मिलने से अलग-अलग बीमारियों के कारण मर जाते हैं। आगे भविष्य में पानी की समस्या बहुत विकराल रूप ले सकती है। इसलिए हमें अपनी विशाल जनसंख्या की प्यास बुझाने और पानी की बर्बादी को रोकने का कारगर उपाय करना ही होगा। 

‘ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड’ के अनुसार भारत में 1 लीटर पानी में टी.डी.एस. की मात्रा 500 मिलीग्राम या उससे कम है तो यह पानी पीने लायक होता है। किन्तु डब्ल्यू.एच.ओ. के मुताबिक 1 लीटर पानी में टी.डी.एस. का स्तर यदि 300 मिलीग्राम से कम हो तो वह सबसे उत्तम पेयजल होता है। 300 से 600 मिलीग्राम टी.डी.एस. वाला पानी अच्छा माना जाता है और 600 से 900 मिलीग्राम टी.डी.एस. वाला पानी ठीक-ठाक माना जाता है, लेकिन इससे ज्यादा टी.डी.एस. वाला पानी पीने के योग्य नहीं होता। 

हाल ही में एन.जी.टी. ने ऐसे आर.ओ. पर प्रतिबंध लगाने को कहा था जिनमें पानी साफ करने की प्रक्रिया के दौरान 80 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है और ऐसी जगहों पर भी आर.ओ. पर प्रतिबंध लगाने को कहा था, जहां 1 लीटर पानी में टी.डी.एस. की मात्रा 500 मिलीग्राम से कम है। एन.जी.टी. ने केवल ऐसे आर.ओ. की बिक्री को सही बताया है, जिनमें पानी साफ करने की प्रक्रिया के दौरान केवल 40 प्रतिशत पानी बर्बाद होता है क्योंकि आर.ओ. द्वारा बर्बाद किया गया पानी पर्यावरण और ग्राऊंड वाटर दोनों को नुक्सान पहुंचाता है। भारत में पीने के पानी की गुणवत्ता हर जगह अलग-अलग है इसलिए यह पता नहीं चल पाता कि आर.ओ. लगाने की कहां जरूरत है, कहां नहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि आर.ओ. लगाने की जरूरत वहीं है जहां पानी में टी.डी.एस. की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा हो। 

आर.ओ. का मतलब है ‘रिवर्स ऑस्मोसिस’, यह पानी को साफ करने की एक प्रक्रिया है, इसमें पानी को एक प्रकार के फिल्टर (मेम्बरेन) से गुजारा जाता है। इस प्रक्रिया में पानी में घुले इन कणों पर दबाव डाला जाता है और दबाव बढऩे पर पानी में घुले ये कण पानी से अलग होकर पीछे रह जाते हैं और इस प्रकार आर.ओ. से शुद्ध पानी पीने को मिलता है। किंतु इस प्रक्रिया में पानी की बहुत बर्बादी होती है। एक लीटर शुद्ध पानी उपलब्ध कराने में आर.ओ. 3 लीटर पानी बर्बाद करता है, इस प्रकार 75 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है और मात्र 25 प्रतिशत पानी पीने के लिए मिलता है। 

वर्तमान में भारत में आर.ओ. सिस्टम का बाजार लगभग 4200 करोड़ रुपए का है। सरकार आर.ओ. के गैर जरूरी इस्तेमाल पर प्रतिबंध तो लगाना चाहती है किंतु समस्या यह है कि भारत के अधिकतर शहरों में पीने के पानी की गुणवत्ता बहुत खराब है। पानी की गुणवत्ता के मामले में भारत दुनिया के 122 देशों में 120वें नंबर पर है। आर.ओ. का इस्तेमाल भारत के लोगों की मजबूरी बन गया है किंतु इसमें पानी की इतनी बर्बादी भी बहुत बड़ी ङ्क्षचता का विषय है। इसलिए आगे आने वाले समय में ऐसे आर.ओ. का निर्माण करना होगा जिनमें कम से कम पानी की बर्बादी हो।-रंजना मिश्रा
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!