महिलाओं को और सशक्त करने की जरूरत

Edited By Updated: 13 Sep, 2024 08:26 AM

there is a need to empower women more

कुछ चौंकाने वाले आंकड़े सांझा करके अपनी बात शुरू करूंगा। भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर सिर्फ 28 प्रतिशत है। 3 में से एक युवा शिक्षा, रोजगार या प्रशिक्षण में शामिल नहीं है, इस समूह में 95 प्रतिशत महिलाएं हैं। प्रबंधकीय पदों पर हर 5 पुरुषों में...

कुछ चौंकाने वाले आंकड़े सांझा करके अपनी बात शुरू करूंगा। भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर सिर्फ 28 प्रतिशत है। 3 में से एक युवा शिक्षा, रोजगार या प्रशिक्षण में शामिल नहीं है, इस समूह में 95 प्रतिशत महिलाएं हैं। प्रबंधकीय पदों पर हर 5 पुरुषों में से सिर्फ एक महिला है। ग्लोबल जैंडर गैप इंडैक्स 2023 में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है। नीति आयोग के एक सर्वेक्षण के अनुसार 18-49 वर्ष की आयु वर्ग की 10 में से 3 महिलाओं ने अपने पति से हिंसा का अनुभव किया है।

चुनाव घोषणापत्रों, संसद में भाषणों या आंतरिक प्रस्तावों में, हर राजनीतिक दल आपको बताएगा कि ‘महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की आवश्यकता है’। कहना आसान है, करना मुश्किल। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आप उन्हें वित्तीय स्वायत्तता, या यहां तक कि थोड़ी-सी भी वित्तीय स्वायत्तता कैसे प्रदान करेंगे जबकि अधिकांश महिलाएं श्रम शक्ति के दायरे से बाहर हैं, तो  प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डी.बी.टी.) की बात करें तो।

इस विषय पर आपके स्तंभकार ने जमीनी स्तर पर किए गए शोध से जो भी डाटा एकत्र किया है, वह एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है कि डी.बी.टी. के माध्यम से आने वाली आय का अधिकांश हिस्सा महिलाएं अपने विवेक से खर्च करती हैं। इन योजनाओं के माध्यम से कम आय वाले परिवारों को लक्षित करना विशेष रूप से फायदेमंद है क्योंकि ये परिवार अपनी आय का बड़ा हिस्सा भोजन और ईंधन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं पर खर्च करते हैं। 

यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे निचले 20 प्रतिशत परिवार अपनी आय का 53 प्रतिशत हिस्सा भोजन पर खर्च करते हैं, जबकि इसी वर्ग के शहरी परिवार 49 प्रतिशत खर्च करते हैं। उच्च खपत के इस स्वरूप को देखते हुए,डी.बी.टी.के माध्यम से प्रदान किया गया अधिकांश पैसा अर्थव्यवस्था में वापस चला जाता है। अब डी.बी.टी. की राजनीति की बात करते हैं। नहीं यह इतना आसान नहीं है। इस योजना को लागू करने से चुनाव जीतने की गारंटी नहीं मिलती।

जनवरी 2020 में शुरू की गई वाई.एस.आर.सी.पी. की जगन्नाना अम्मावोडी योजना जून 2024 में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रैड्डी के लिए जादू नहीं कर पाई। तेलंगाना में, कहानी अलग थी। के.टी.आर. की बी.आर.एस. को इस बात का अफसोस हो रहा होगा कि उनके पास ऐसी ही डी.बी.टी. योजना नहीं थी। कांग्रेस की महालक्ष्मी योजना, जिसे उनके अपने कर्नाटक (गृह लक्ष्मी) मॉडल से अनुकूलित किया गया था और 2023 में तेलंगाना विधानसभा में बड़ी जीत के बाद तेजी से पेश किया गया था, ने 18वीं लोकसभा में भरपूर चुनावी लाभ दिया।

आइए महाराष्ट्र और डी.बी.टी. की भूमिका पर नजर डालें। राज्य सरकार ने इस साल जून में बजट के दौरान लड़की बहन योजना की घोषणा की। अगस्त में पहली किस्त महिलाओं के बैंक खातों में पहुंच गई। दूसरी किस्त अक्तूबर के मध्य में लाभार्थियों तक पहुंचने की संभावना है। क्या यही मुख्य कारण है कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावों के साथ महाराष्ट्र चुनावों की घोषणा क्यों नहीं की गई? क्या लड़की बहन योजना एन.डी.ए. सरकार को सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त होगी? या बदलापुर में 2 बच्चों पर जघन्य और पाश्विक यौन उत्पीडऩ एक मुद्दा बनेगा? अपने स्तंभकार को इस साल के अंत में महा विकास आघाड़ी गठबंधन की जीत की घोषणा करने दें।

महाराष्ट्र के अलावा, असम और मध्य प्रदेश जैसे एन.डी.ए.शासित राज्य भी इसी तरह की योजनाएं चलाते हैं। महिलाओं के लिए डी.बी.टी. योजनाएं चलाने वाले विपक्षी राज्य हैं, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब। पश्चिम बंगाल में लक्ष्मीर भंडार है। अमत्र्य सेन के प्रतीची ट्रस्ट ने बंगाल की लक्ष्मीर भंडार योजना का विश्लेषण करते हुए कहा कि नकद प्रोत्साहनों से महिलाओं की वित्तीय निर्णय लेने की क्षमता बढ़ी है और परिवार में उनकी स्थिति में सुधार हुआ है।

अध्ययन में कहा गया है कि 5 में से 4 महिलाएं अपनी इच्छा से पैसा खर्च करती हैं और 10 में से 1 महिला अपने पति से बात करने के बाद पैसे को कैसे खर्च करना है, यह तय करती है। साथ ही, महिलाओं ने स्वयं बताया था कि परिवार में उनकी स्थिति में सुधार हुआ है, जिससे वास्तव में उन्हें सशक्त बनाया गया है। ये सभी योजनाएं पूरी तरह से राज्यों द्वारा प्रायोजित हैं। फिर केंद्र सरकार के तहत 53 मंत्रालय हैं जो 315 डी.बी.टी. योजनाएं चलाते हैं। इनमें से 13 महिला और बाल विकास मंत्रालय से संबंधित हैं। योजनाओं को लागू करने में मंत्रालय का रिकॉर्ड बहुत खराब है और डी.बी.टी. प्रदर्शन रैंकिंग में 53 मंत्रालयों में से यह 31वें स्थान पर है (प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को वित्तीय सहायता देती है)।

इस साल की शुरूआत में एक चुनावी भाषण में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रिकॉर्ड पर कहा, ‘‘हम (भाजपा) डी.बी.टी. योजना (लक्ष्मी भंडार) को बंद नहीं करेंगे। वास्तव में, हम सहायता को 100 रुपए तक बढ़ा देंगे।’’ केवल अमित शाह ही प्रभावित नहीं हैं। आई.एम.एफ. ने भारत की डी.बी.टी. योजनाओं को ‘लॉजिस्टिकल चमत्कार’ कहा है। तो क्या हमें राष्ट्रीय  स्तर पर इसके लागू होने का इंतजार करना चाहिए! यह, एक छोटे से तरीके से, इस कॉलम की शुरूआत में बताए गए आंकड़ों को बेहतर बनाने में मदद करेगा। -डेरेक ओ’ब्रायन(संसद सदस्य और टी.एम.सी. संसदीय दल (राज्यसभा) के नेता) (शोध श्रेय-धीमंत जैन)

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