ड्रोनों की दुनिया और सुरक्षा के लिए खतरे

Edited By Updated: 02 Jan, 2022 05:34 AM

threats to the world and security of drones

तेजी से गुजरे 3 वर्षों के बाद आज मानव रहित हवाई प्रणालियों का वैश्विक बाजार 21.47 अरब डालर को छू गया है। अमरीकी प्रीडेटर ड्रोन्स का इस्तेमाल 1100 से अधिक हवाई हमलों के लिए किया गया है। तुर्की के बैरख्तर टी.बी.-2 ने सैंकड़ों की संख्या में सीरियाई...

तेजी से गुजरे 3 वर्षों के बाद आज मानव रहित हवाई प्रणालियों का वैश्विक बाजार 21.47 अरब डालर को छू गया है। अमरीकी प्रीडेटर ड्रोन्स का इस्तेमाल 1100 से अधिक हवाई हमलों के लिए किया गया है। तुर्की के बैरख्तर टी.बी.-2 ने सैंकड़ों की संख्या में सीरियाई बख्तरबंद वाहनों को नष्ट किया है तथा अजरबैजानी बलों ने इसराईली कामीकेज ड्रोन्स का इस्तेमाल नागार्नो काराबाख संघर्ष में अमरीकी सेना के खिलाफ किया। आज ड्रोन विश्व भर में सैन्य सशस्त्रागार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। कृत्रिम समझ तथा सटीक मार्गदर्शन के साथ इनमें होने वाले विकास के कारण भविष्य में इनकी मारक क्षमता में और सुधार होगा। 

आतंकवादी हमलों के लिए ड्रोन्स का इस्तेमाल भारत के लिए उल्लेखनीय तौर पर एक नई सुरक्षा चुनौती है। जून 2021 का हमला, जिसमें नीची उड़ान भरने वाले ड्रोन्स का इस्तेमाल जम्मू वायुसेना केंद्र पर 2 इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसिज (आई.ई.डी.) गिराने के लिए किया गया, इस उभरते हुए खतरे का स्पष्ट संकेत है। यह हमला न महज इसलिए महत्वपूर्ण था कि भारत में किसी सुरक्षा संस्थान पर हमला करने के लिए पहली बार ड्रोन्स का इस्तेमाल किया गया बल्कि इसलिए भी क्योंकि भारतीय रक्षा प्रणालियां इन्हें लेकर सतर्क नहीं थीं। 

भारत के लिए एक खतरा
हमले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थानों की चिंता को देखते हुए कम से कम यह कहा जा सकता है कि वे ड्रोन के हमले को देखते हुए अब जाग रहे हैं। हालांकि तथ्य यह है कि भारत में ड्रोन का खतरा नया नहीं है। 2019 से लेकर 300 से अधिक बार ड्रोन देखे जा चुके हैं। जून 2020 में सीमा सुरक्षा बल (बी.एस.एफ.) ने एक ड्रोन मार गिराया जो एक राइफल, 2 मैगजीनें तथा कुछ ग्रेनेड ले जा रहा था। यहां तक कि इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग परिसर के ऊपर एक ड्रोन मंडराते देखा गया जब भारत ने अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष मनाने के संबंध में अन्य देशों के कूटनीतिज्ञों को आमंत्रित किया था। राजस्व खुफिया निदेशालय (डी.आर.आई.) ने 2019 में अत्याधुनिक 85 चीनी ड्रोन जब्त करके ड्रोन तस्करी का भांडा फोड़ किया जिनकी कीमत लगभग 10,000 करोड़ रुपए थी। आज ये खतरे न केवल सीमा पार से आ रहे हैं बल्कि यहां तक कि नक्सली भी अब कथित तौर पर भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ अपनी कार्रवाइयों में ड्रोन तैनात कर रहे हैं। 

ड्रोन ही क्यों
अब ड्रोन ही आतंकवादियों तथा विद्रोहियों के लिए हथियार के तौर पर चुनाव हैं? ये महंगे नहीं हैं। इन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सकता है अथवा सामान्य उपकरण जोड़ कर असैंबल किया जा सकता है। आधुनिक ड्रोन, जो 9/11 हमले के बाद अमरीकी महंगे प्रीडेटर ड्रोन जैसे हैं, आसानी से उपलब्ध नहीं। यही कारण है कि अमरीका ने अपने प्रीडेटर तथा रिपर यू.सी.ए.वीस के निर्यात पर कड़ा नियंत्रण रखा है। वे केवल करीबी सैन्य सहयोगियों को उपलब्ध हैं। हालांकि चीन, इसराईल तथा तुर्की ने अपने खुद के यू.सी.ए.वीस विकसित करने शुरू कर दिए हैं जिनका वे व्यापक तौर पर निर्यात भी कर रहे हैं। भारत की मानव रहित हवाई प्रणालियों का बाजार करीब 86.60 करोड़ डालर का है। अर्थात ड्रोन देश में बड़ी संख्या में उपलब्ध हैैं तथा संभवत: किसी के भी द्वारा कहीं भी और किसी भी समय उन्हें सशस्त्र बनाया जा सकता है। 

ड्रोन की राडार से बचने की क्षमता, कम रफ्तार तथा छोटे आकार के कारण यह युद्ध क्षेत्रों में लाभकारी साबित होते हैं और इन्हीं कारणों से इनकी पहचान करना कठिन होता है। पारम्परिक राडार प्रणालियां उडऩे वाली छोटी चीजों का पता लगाने के लिए नहीं हैं और यहां तक कि यदि उन्हें इसके लिए तैयार भी किया जाता है तो वे किसी पक्षी को ड्रोन समझ सकती हैं। यहां तक कि स्वार्म ड्रोन्स को ट्रैक करना और भी कठिन है क्योंकि नन्हें ड्रोन लहरों की तरह एक के बाद एक हमला करते हैं। आस्ट्रेलिया की ड्रोन शील्ड इस समस्या को सुलझाने के लिए एक प्रयास है। यह आक्रमणकारी ड्रोन की वीडियो फीड में रेडियो फ्रीक्वैंसी में व्यवधान डालती है तथा उसी स्थान पर लैंड करने तथा संचालक के पास लौटने को बाध्य करती है। 

भारत की प्रतिक्रिया एंटी ड्रोन प्रणालियों के लिए घरेलू शोध तथा विकास ‘नवजात चरण’ में है। रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) ने ‘एंटी ड्रोन सिस्टम’ का विकास किया है, उनका इस्तेमाल केवल राष्ट्रीय दिवसों के दौरान वी.आई.पीज की सुरक्षा के लिए किया जाता है। यदि भारत को चुनौती स्वीकार करनी है तो इसे ऐसी प्रणालियों के लिए फास्ट ट्रैक अनुसंधान तथा विकास विकसित करने की जरूरत है जो संचालनात्मक तौर पर व्यापक इस्तेमाल के लिए तैनात की जा सके। फिर एक चुनौती तकनीक की रणनीतिक तैनाती तथा सरकार द्वारा खर्च किए जाने वाले धन की है। इसके अतिरिक्त एक समस्या सेना द्वारा 21वीं शताब्दी के खतरों का सामना करने के लिए रोबोटिक्स, कृत्रिम समझ, साइबर तथा इलैक्ट्रानिक युद्ध जैसी भविष्य की तकनीकों पर पर्याप्त ध्यान न देने की बजाय प्रमुख प्लेटफाम्र्स पर अधिक ध्यान दिया जाना है।-मनीष तिवारी

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