अडानी का साइलो बंद करने से नुक्सान किसका हो रहा ?

Edited By vasudha,Updated: 19 Apr, 2021 10:57 AM

who is going to suffer the loss of adani silo

तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ देश के किसानों द्वारा आंदोलन शुरू किया गया है। इस आंदोलन के तहत ही किसानों द्वारा मोगा के निकट अडानी समूह द्वारा निर्मित साइलो का घेराव भी किया गया तथा वहां अनाज की हर तरह की आवाजाही बंद...

मोगा, 18 अप्रैल (विशेष): तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ देश के किसानों द्वारा आंदोलन शुरू किया गया है। इस आंदोलन के तहत ही किसानों द्वारा मोगा के निकट अडानी समूह द्वारा निर्मित साइलो का घेराव भी किया गया तथा वहां अनाज की हर तरह की आवाजाही बंद की गई है। यह साइलो भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) द्वारा अपनी भंडारण क्षमता को बढ़ाने के लिए पब्लिक प्राइवेट भागीदारी (पी.पी.पी.) के तहत बनवाया गया है। यहां भंडारण के बदले एजैंसी को समय के हिसाब से करोड़ों रुपए अडानी समूह को अदा करने पड़ते हैं। अब जब पिछले करीब 4 महीने से किसानों ने इस साइलो को घेर कर हर तरह की गतिविधि को बंद किया हुआ है तो वहां सवाल यह पैदा होता है कि इसका नुक्सान किसको हो रहा है। अडानी समूह को या सरकारी एजैंसी को?

 

जिक्र योग्य है क भारतीय खाद्य निगम ने पी.पी.पी. मोड पर 2 लाख मीट्रिक टन क्षमता वाले स्टील साइलो का निर्माण अडानी एग्रो लॉजिस्टिक लिमिटड द्वारा जिला मोगा के गांव डगरू में करवाया गया है। यह साइलो किसानों की उपज को जहां लाने के लिए बेहतर सड़क नैटवर्क के साथ तथा जहां से अनाज को दूसरे राज्यों में भेजने के लिए रेल सुविधा के साथ जुड़ा हुआ है। अनाज को खराब होने से रोकने के लिए तुरंत सुरक्षित जगह पर शिफ्ट करने के लिए इसकी जरूरत रहती है, जिस कारण साइलो के यार्ड में पूरा रेल हैड तैयार करवाया गया है। हर वर्ष लगभग 1,00,000 मीट्रिक टन गेहूं साइलो से निकाल कर दूसरी जगहों पर भेजा जाता है तथा सीजन में 1,00,000 मीट्रिक टन नई गेहूं साइलो में भरी जाती है।

 

किसानों द्वारा साइलो के बाहर लगाए गए लगातार धरने के कारण इस वर्ष सिर्फ 40,000 टन गेहूं ही साइलो से बाहर भेजी जा सकी। इस धरने के कारण साइलो में खरीद प्रक्रिया अभी भी पूरी तह ठप्प पड़ी है। यदि धरना इसी तरह जारी रहा तो साइलो में तकरीबन 40,000 मीट्रिक टन की जगह बची रहेगी लेकिन इस खाली जगह के लिए सरकारी एजैंसी को 10 करोड़ रुपए तक का किराया/ खर्च देना ही पड़ेगा। इसके अलावा आगामी समय दौरान मोगा क्षेत्र में 1,00,000 मीट्रिक टन की स्टोरेज स्पेस की कमी सामने आएगी, जिस कारण किसानों की फसलों को खुले आसमान तले स्टोर करना पड़ेगा। इससे अनाज के खराब होने के साथ-साथ राज्य की खरीद एजैंसियों को करोड़ों रुपए का नुक्सान होगा। जगह की कमी का यह दबाव आगामी धान की सप्लाई में भी रुकावट डालेगा, जो एजैंसियों के नुक्सान में और वृद्धि करेगा।

साइलो की सुविधा बंद होने से किसानों को भी मुश्किल पेश आएगी क्योंकि मंडियों में और भीड़ बढ़ेगी। क्योंकि जो 1,00,000 मीट्रिक टन भंडारण साइलो में हो जाना था वह अब नहीं हो सकेगा तथा किसानों को मंडियों में जाना पड़ेगा, जिस कारण खरीद में देरी होने के साथ-साथ किसानों के परेशानी भी झेलनी पड़ सकती है। इसलिए किसानों को देश की आर्थिकता और उनकी फसल की संभाल से जुड़े इस मुद्दे पर भी ध्यान देना चाहिए।

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