Ahilyabai Holkar Birth Anniversary: जानें कौन थीं अहिल्याबाई होल्कर, जिन्होंने सनातन धर्म के लिए दिया था अपना अमर योगदान

Edited By Updated: 31 May, 2024 10:41 AM

ahilyabai holkar birth anniversary

भारत की संस्कृति और विरासत बहुत ही समृद्ध रही है, जिसको समाप्त करने के लिए कई विदेशी आक्रांताओं ने हमले

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Ahilyabai Holkar Birth Anniversary: भारत की संस्कृति और विरासत बहुत ही समृद्ध रही है, जिसको समाप्त करने के लिए कई विदेशी आक्रांताओं ने हमले किए। देश के शूरवीर योद्धाओं ने अपनी विरासत को बचाने में अपना जीवन लगा दिया। ऐसी ही होल्कर वंश की महारानी थीं अहिल्याबाई, जिन्होंने क्रूर मुगल शासक औरंगजेब द्वारा तोड़े हमारे आस्था के प्रतीक मंदिरों का पूरे भारत (श्रीनगर, हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ, प्रयाग, वाराणसी, पुरी, रामेश्वरम, सोमनाथ, महाबलेश्वर, पुणे, इंदौर, उडुपी, गोकर्ण आदि) में पुन: निर्माण करवाया। महिला सशक्तिकरण की मिसाल अहिल्याबाई को इनके ससुर ने सैन्य शिक्षा दी और पति खांडेराव होल्कर की मृत्यु पर इन्हें सती होने से रोक दिया। 

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अहिल्याबाई का जन्म 31 मई, 1725 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के चौंडी ग्राम में हुआ। इनके पिता मंकोजी राव शिंदे, अपने गांव के पाटिल थे। छोटी आयु में इनका विवाह इंदौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हार राव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था, जिससे अहिल्याबाई के पुत्र मालेराव और एक कन्या मुक्ताबाई का जन्म हुआ। अपने महान पिता के मार्गदर्शन में खंडेराव एक अच्छे योद्धा बन गए। मल्हार राव अपनी पुत्रवधू अहिल्याबाई को भी राजकाज की शिक्षा देते रहते थे। खांडेराव होलकर भरी जवानी में 1754 के कुम्भेर युद्ध में शहीद हो गए और 1766 में इनके ससुर स्वयं मल्हार राव होलकर को भी मृत्यु ने अपने आगोश में ले लिया। 

इसके एक साल बाद मालवा साम्राज्य की महारानी के तौर पर सत्ता संभालते ही इन्होंने प्रजा हितार्थ और जनकल्याण के प्रशंसनीय कार्य किए। अहिल्याबाई का मानना था कि धन, प्रजा व ईश्वर की दी हुई धरोहर स्वरूप निधि है, इसलिए उन्होंने लोगों के रहने और विश्राम के लिए मुख्य तीर्थस्थलों जैसे गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी के गंगा घाट, उज्जैन, नासिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास बहुत-सी धर्मशालाएं भी बनवाई। 

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भगवान शिव के प्रति उनके समर्पण भाव का पता इस बात से चलता है कि अहिल्याबाई राजाज्ञाओं पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नहीं लिखती थीं, बल्कि पत्र के नीचे केवल ‘श्री शंकर’ लिख देती थीं। इन्होंने सन् 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया। कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा मंदिर, गया में विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया। इन्होंने घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, भूखों के लिए अन्न क्षेत्र खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाए, मंदिरों में शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु विद्वानों की नियुक्ति की।  

रानी अहिल्याबाई अपनी राजधानी महेश्वर चली गई जहां उन्होंने 18वीं सदी का बेहतरीन और आलीशान अहिल्या महल बनवाया। पवित्र नर्मदा नदी के किनारे बनाए गए इस महल के इर्द-गिर्द बनी राजधानी की पहचान बनी टैक्सटाइल इंडस्ट्री। उस दौरान महेश्वर साहित्य, नृत्यकला, संगीत और कला के क्षेत्र में एक गढ़ बन चुका था। लगभग 28 वर्षों तक राज्य की चिंता का भार संभालने के बाद 13 अगस्त, 1795 को 70 वर्ष की आयु में वह महानिद्रा में सो गई। भारत सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों ने इनकी प्रतिमाएं बनवाई हैं और इनके नाम से कई कल्याणकारी योजनाओं को भी चलाया जा रहा है। इनके बारे में अलग-अलग राज्यों की पाठ्यपुस्तकों में अध्याय भी मौजूद हैं।

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