Kundli Tv- यहां जानें क्या है अहोई अष्टमी की व्रत कथा

Edited By Jyoti,Updated: 31 Oct, 2018 01:07 PM

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जिस तरह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। ठीक उसी तरह कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी व्रत का त्योहार मनाया जाता है।

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जिस तरह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। ठीक उसी तरह कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी व्रत का त्योहार मनाया जाता है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन महिलाएं अपनी संतान की सुख-समृद्धि के लिए पूजन करती हैं। इसके अलावा जिन्हें संतान की प्राप्ति नहीं होती उनके लिए ये व्रत बहुत लाभदायक माना जाता है। हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अहोई माता देवी गौरी का स्वरूप है। करवा चौथ की ही तरह इस दिन भी महिलाएं पूरा दिन व्रत करती है और शाम को अहोई माता की पूजा कर शाम को तारे को अर्घ्य देकर व्रत को पूरा करती हैं। 
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पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक अहोई माता की एक कथा भी प्रचलित है। आइए जानते हैं अहोई व्रत कथा-

एक साहूकार के सात बेटे, सात बहुएं और एक बेटी थी। बेटी की भी शादी हो चुकी थी और वह दीपावली पर अपने मायके आई हुई थी। दीपावली की साफ़-सफ़ाई के दौरान घर को लीपने के लिए सातों बहुएं अपनी ननद के साथ जंगल से मिट्टी लाने गईं। जंगल में मिट्टी खोदते हुए साहुकार की बेटी के हाथ से साही (मिट्टी में घर बनाकर रहनेवाला जीव) के बच्चे मर जाते हैं क्योंकि जहां वह खुरपी से मिट्टी खोद रही थी, उस जगह पर साही ने अपना घर बना रखा था, जिसमें उसके सात बच्चे थे। खुरपी लगने से उन बच्चों की मृत्यु हो जाती है। तभी वहां साही आ जाती है और अपने बच्चों को मरा हुआ देखकर दुख और क्रोध में साहुकार की बेटी को शाप देती है कि जिस तरह तुमने मेरे बच्चे मारकर मुझे नि:संतान कर दिया है, ऐसे ही तुम्हारे बच्चे नहीं होंगे, मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी। साहूकार की बेटी के कोई संतान नहीं थी और उसकी सभी भाभियों के बच्चे थे। इस पर वह अपनी सातों भाभियों से विनती करने लगती है कि मेरी जगह आप अपनी कोख बंधवा लीजिए। लेकिन उसकी कोई एक भाभी भी इसके लिए तैयार नहीं होती। 
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सबसे छोटी भाभी से अपनी ननद का दुख देखा नहीं जाता और वह उसकी जगह अपनी कोख बंधवा लेती है। घर जाकर उन्हें लगता है कि इस तरह साही का शाप भी हो गया और उनकी ननद की गृहस्थी भी बच गई। लेकिन जिस भाभी ने अपनी कोख बंधवाई थी, कुछ ही दिन में उसके बच्चों की मृत्यु हो जाती है। वह एक ज्ञानी पंडित को बुलाकर इसका कारण पूछती है तो पंडित उसे सुरही गाय की सेवा करने के लिए कहते हैं। वह सुरही गाय की सेवा में पूरे मन से जुट जाती है। 
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इससे खुश होकर सुरही गाय उसे साही के पास ले जाती है।सुरही गाय साही से विनती करती है कि वह छोटी बहू को अपने शाप से मुक्त कर दे। साही को छोटी बहू के बच्चों की मृत्यु के बारे में सुनकर बहुत दुख होता है, साथ ही वह उसके द्वारा सुरही गाय की सेवा देखकर भी खुश होती है। इसके बाद साही छोटी बहू को अपने शाप से मुक्त कर देती है। फिर सुरही गाय और साही दोनों उसे सौभाग्यवती रहने और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं। इनके आशीर्वाद से छोटी बहू की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं और उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है। 
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