अक्षय तृतीया 2020: जानिए इस तिथि से जुड़ी खास मान्यताएं

Edited By Updated: 16 Apr, 2020 06:14 PM

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हिंदू धर्म में ऐसे बहुत से त्यौहार आदि पड़ते हैं, जिन्हें बढ़े स्तर पर बहुत धूम धाम से मनाया जाता है।  इन्हीं में से एक है अक्षय तृतीया का पर्व, जिसे बेहद शुभ दिन माना जाता है।

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हिंदू धर्म में ऐसे बहुत से त्यौहार आदि पड़ते हैं, जिन्हें बढ़े स्तर पर बहुत धूम धाम से मनाया जाता है।  इन्हीं में से एक है अक्षय तृतीया का पर्व, जिसे बेहद शुभ दिन माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन किया जाने वाला प्रत्येक कार्य शुभ फल देता है। कुछ किंवदंतियों के अनुसार अक्षय तृतीया का ये दिन आवश्यक कार्यों के प्रारंभ के लिए बहुत शुभ होता है। बता दें इस पर्व को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस बार अक्षय तृतीया 26 अप्रैल को मनाया जाएगा। चलिए जानते हैं इसस जुड़ी खास बातें-
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन नारायण यानि श्री हरि विष्णु तथा उनकी संगिनी देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान है। मान्यता है इस दिन इनकी पूजा से मनवांछित फल प्राप्त होता है।

शास्त्रों में किए वर्णन के मुताबिक अक्षय तृतीया के पावन दिन ही विष्ण जी ने अपने छठें अवतार श्री परशुराम जी के रूप में अवतरण लिया था।

अक्षय तृतीया के दिन ही मां गंगा का धरती पर आगमन हुआ था।

कहा जाता है इस दिन पिंडदान का भी अधिक महत्व है। जो भी अपने पितरों को मोक्ष की कामना व शुद्ध भाव से इस दिन पिंडददान करता है उसके पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है।
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अक्षय तृतीया के पावन दिन पिंडदान करने से पितरो को मोक्ष प्रदान होता है। इस दिन पितृ पक्ष में किए गए पिंडदान करने का बहुत अधिक महत्व होता है।

हिंदू धर्म के चार प्रमुख धामों में से एक है बद्रीनाथ धाम। मान्यता है इस दिन यानि अक्षय तृतीया के दिन ही इसके कपाट खुलते हैं।

तो वहीं इसी दिन अक्षय तृतीया के शुभ दिन ही वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं। बता दें यहां साल में केवल एक बार इसी तिथि के दिन ही श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।
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श्रीकृष्ण के बाल्य काल के मित्र सुदामा भी अक्षय तृतीया के दिन ही उनसे मिलने पहुंचे थे।

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही द्वापर युग का समापन हुआ था, महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था तथा सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। इसके अलावा इसी दिन वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था।

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