सोमवार के दिन कर लें इस स्तुति का पाठ, आनंदमय हो जाएगा जीवन

Edited By Jyoti,Updated: 25 Mar, 2019 04:05 PM

ardhanarishwar stotram

अर्धनारीश्वर, ये भगवान शिव और देवी का संयुक्त अवतार है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के निर्माण के लिए भगवान शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक यानि अलग कर दिया था।

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अर्धनारीश्वर, ये भगवान शिव और देवी का संयुक्त अवतार है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के निर्माण के लिए भगवान शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक यानि अलग कर दिया था। बताया जाता है कि शिव स्वयं पुरुष लिंग के प्रतिनिधि हैं तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की प्रतिनिधि है। चूंकि शिव और शक्ति का एक हैं मतलब शिव नर भी हैं और नारी भी, इसलिए उन्हें अर्धनारीश्वर कहा जाता है।
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इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है कि ब्रह्मा ने सृजन का काम शुरू किया था उन्होंने पाया कि उनकी समस्त रचनाएं जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी जिस कारण उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। बहुत सोच-विचार करने के बाद भी वो किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाए तो अपनी समस्या के समाधान के लिए उन्होंने भगवान शंकर की कठोर तपस्या की। ब्रह्मा की इस कठीर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने समस्या के समाधान में अर्धनीरश्वर रूप में प्रगट हुए। यानि शरीर के आधे भाग से वह शिव थे तथा आधे से शिवा यानि शक्ति। कहा जाता है कि उन्होंने अपने इस स्वरूप से ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्ररेणा दी।
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ज्योतिष में भगवान शंकर के इस स्वरूप की पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है। तो चलिए आपको बताते हैं कि अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र के बारे में जिसका जाप करने से आपके जीवन की हर प्रॉबल्म का समाधान निकल आएगा और आपके जीवन के में केवल आनंद ही आनंद हो जाएगा। मान्यता है कि अर्धनारीनटेश्वर इस स्तुति को आराधना करने से हर तरह का सुख प्राप्त होता है। शिव महापुराण में वर्णन के अनुसार ‘शंकर: पुरुषा: सर्वे स्त्रिय: सर्वा महेश्वरी’ अर्थात– सभी पुरुष भगवान सदाशिव के अंश है और सारी स्त्रियां भगवती शिवा की अंशभूता हैं,उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से यह सम्पूर्ण चराचर जगत व्याप्त हैं।।
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अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र-
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।

धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।

कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारज:पुंजविचर्चिताय ।

कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।

चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय ।

हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।

विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय । 

समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।

मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय ।

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।

अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।

निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।

प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।

जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।

प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।

शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
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स्तुति का फल-
एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी । 
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि: ।।

ज्योतिष के अनुसार जो भी आठ श्लोकों का यह स्तोत्र अभीष्ट सिद्धि करने वाला है। जो जातक भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह संसार में सम्मानित होता है दीर्घजीवी बनता है। आठ श्लोकों का यह स्तोत्र अभीष्ट सिद्धि करने वाला हैं । जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होता है, दीर्घजीवी बनता है और अनन्त काल के लिए सौभाग्य एवं समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है।

इति आदिशंकराचार्य विरचित अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।

इस श्लोक का मतलब है कि शक्ति के साथ शिव सब कुछ करने में समर्थ हैं,परंतु शक्ति के बिना शिव स्पन्दन भी नहीं कर सकते। अत: ब्रह्मा,विष्णु आदि सबके आराध्य शिव-शक्ति को कोई भी पापी व्यक्ति प्रणाम या स्तवन (स्तुति पाठ) नहीं कर सकता। 
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