जानें, सदाचार और संयम से कैसे मिलती है सच्ची सफलता

Edited By Updated: 22 Aug, 2025 06:02 AM

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Best Motivational Story: ज्ञानीजन समझाते हैं कि भोगों की ओर प्रवृत्ति करना उचित नहीं है। भोग पतन की दलदल में फंसाते हैं। आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा रूपी पांचों इन्द्रियों के भोग सांप के शरीर की तरह सुन्दर, चिकने, मनमोहक और प्रिय मालूम देते हैं परंतु...

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Best Motivational Story: ज्ञानीजन समझाते हैं कि भोगों की ओर प्रवृत्ति करना उचित नहीं है। भोग पतन की दलदल में फंसाते हैं। आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा रूपी पांचों इन्द्रियों के भोग सांप के शरीर की तरह सुन्दर, चिकने, मनमोहक और प्रिय मालूम देते हैं परंतु स्पर्श करते ही वे डंस कर प्राणान्त कर देते हैं। इन भोगों से स्नेह बंधन जोड़ने वाले व्यक्ति अनंत दुखों से भरे संसार की अधोगति में डेरा डालते हैं और पापों की डोरी में ऐसे बंध जाते हैं कि अनंतकाल तक फिर छूटना मुश्किल हो जाता है।

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मानव जीवन नियंत्रित, आत्म संयमित होना चाहिए। अनियंत्रित जीवन में स्वाभाविक शक्तियों की स्थापना नहीं हो सकती। काम-भोग मनुष्य को पतन के मार्ग पर धकेलते जाते हैं। सदाचार जीवन रूपी वृक्ष का सर्वाधिक सुंदर पुष्प है तथा प्रतिभा-प्रतिष्ठा सफलता इसके भिन्न-भिन्न फल हैं। सभी दैवी शक्तियां भी सदाचारी के सम्मुख नतमस्तक हो जाती हैं क्योंकि वह इंद्रियों को नियंत्रित करने के श्रमसाध्य और जनसाधारण के लिए दुष्कर कार्य को भी संभव कर दिखाता है।

संयम में स्वास्थ्य रहता है और स्वास्थ्य उत्तम जीवन की आधारशिला है। शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए काम-विकार रूपी रोग का इलाज कर उसे मिटाना परम आवश्यक है। काम-वासना रूपी कांटे को निकाले बिना सुख के राजमार्ग पर आगे बढ़ना संभव नहीं है। काम के रोग का शिकार व्यक्ति इस लोक में शरीर का नाश करता है और पाप कर्मों का बंधन करके अगले भवों (जन्मों) को भी दुखपूर्ण बना लेता है इसलिए मानसिक निरोगता के लिए काम विकार रूपी रोग का उपचार जरूरी है।

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मोह से बुद्धि में जड़ता आ जाती है। मोह साधना करने के लिए नाकाबिल बनाता है। परिग्रह के प्रति आसक्ति रखने वाला शुभ की प्राप्ति नहीं कर सकता। मोह उचित-अनुचित में भेद नहीं करने देता। जिस प्रकार कांच के टुकड़े में प्रतिबिम्ब देखकर उसे दूसरा पक्षी मान कर बाज उसे खाने के लिए टूट पड़ता है, और इससे होने वाली अपनी मुंह की हानि का ध्यान नहीं करता, उसी प्रकार मानव का भटका हुआ मन राम भक्ति रूपी देव गंगा को त्याग कर ओस के कणों से अपनी तृप्ति करना चाहता है।

मोह के कारण व्यक्ति भले-बुरे की परख नहीं कर पाता और अनिर्णय का शिकार हो जाता है। मन में हमेशा अंधियारा रहता है और उत्साह का दीपक नहीं जगता। मनुष्य एक प्रकार की तन्द्रा में रहता है जिसमें न तो जागने का लक्षण होता है और न ही निद्रा का। जड़ता तथा निर्बुद्धि मोहग्रस्त व्यक्ति को घेर कर रखती है इसलिए मन की निरांगता के लिए मोह के चंगुल से निकल कर सिर्फ कर्तव्य समझकर अपने दायित्व निभाए जाएं और सुख के दीए को मोह की आंधी में बुझने से बचाएं।

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