Bhagavad Gita Jayanti: विचार करें, क्या सच में जगत कल्याण का संदेश देती है श्रीमद्भगवद्गीता

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Nov, 2024 08:38 AM

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Bhagavad Gita Jayanti 2024: महाभारत के युद्ध में अर्जुन के जीवन में यह परम सौभाग्यशाली क्षण आया कि उसने सर्वलोकाध्यक्ष सर्वेश्वर भगवान श्री कृष्ण जी से आत्म कल्याण के लिए अपने सभी संशयों के निवारणार्थ वे सभी प्रश्न पूछे, जिनकी कामना बड़े-बड़े ज्ञानी...

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Bhagavad Gita Jayanti 2024: महाभारत के युद्ध में अर्जुन के जीवन में यह परम सौभाग्यशाली क्षण आया कि उसने सर्वलोकाध्यक्ष सर्वेश्वर भगवान श्री कृष्ण जी से आत्म कल्याण के लिए अपने सभी संशयों के निवारणार्थ वे सभी प्रश्न पूछे, जिनकी कामना बड़े-बड़े ज्ञानी पुरुष करते हैं। अर्जुन विषाद और शोकाकुल है। अपने भक्त की दयनीय स्थिति को देख कृपा निधान गोविन्द ने सम्पूर्ण वेद, पुराण, शास्त्र आदि धर्म ग्रन्थों के सारगर्भित रहस्य बड़ी ही सहजता से अपने सखा नर रूप अर्जुन को समझा दिए। प्रभु ने ज्ञान, कर्म, भक्ति, वैराग्य, संन्यास तथा त्याग का मर्म इतनी सरलता से अर्जुन को समझाया कि सम्पूर्ण विश्व इस अद्भुत ज्ञान से आश्चर्यचकित हो गया। इस ज्ञान को सम्पूर्ण जगत श्रीमद्भगवद्गीता जी के रूप में जानता है।

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ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था इसीलिए यह तिथि श्री गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है और इस एकादशी को ‘मोक्षदा एकादशी’ कहते हैं। भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर, मानव मात्र को गीता के ज्ञान द्वारा जीवनाभिमुख बनाने का चिरन्तन प्रयास किया। भगवद् गीता का उपदेश मानवीय संबंधों में आत्मीयता का संदेश देता और विश्व बंधुत्व की भावना को प्रोत्साहित करता है। अत: गीता का उपदेश सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए है।

जहां गुरु रूप में स्वयं श्री भगवान हों, वहां शिष्य का कल्याण निश्चित है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन मोहग्रस्त हो गए। जब अज्ञानता के महाअंधकार में डूबे तथा अपराधबोध से ग्रस्त अर्जुन को धर्म युक्त कर्त्तव्य मार्ग का कोई निश्चित साधन नहीं सूझा तब उन्होंने श्री भगवान को ही अपना गुरु धारण कर लिया और उनसे निश्चित कल्याणकारी मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु प्रार्थना की।

भारतीय संस्कृति इसलिए महान है क्योंकि इसने अपनी ज्ञान परम्परा को सदैव आगे बढ़ाया है। सृष्टि के आदि काल से ही भगवान के भगवद्गीता के सनातन विधान को संपूर्ण मानवजाति तथा सृष्टि संचालन के कार्य में लगे ऋषियों-मुनियों तथा देवताओं ने अपनाया। श्रीभगवान् स्वयं ही गीता जी के विषय में वैष्णवीयतन्त्रसार में कहते हैं :

गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम्। गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम्॥

हे अर्जुन ! गीता मेरा हृदय है, गीता मेरा उत्तम तत्व है, गीता मेरा अत्यंत तेजस्वी और अविनाशी ज्ञान है, गीता मेरा उत्तम स्थान है, गीता मेरा परमपद है, गीता मेरा परम गोपनीय रहस्य है और मेरी यह गीता श्रद्धालु जिज्ञासुओं के लिए अत्युत्तम गुरु है।

सर्वलोकाधिपति सर्वेश्वर भगवान के इस सनातन विधान की आज्ञा का अनुसरण करते हुए जिन्होंने लोक कल्याण की भावना से तथा कर्त्तव्य भाव से कर्म करते हुए इस संसार की व्यवस्था को चलाने में अपना सहयोग प्रदान किया, वे दैवीय संपदा से युक्त कहलाए तथा जिन्होंने इसका प्रतिकार करते हुए अन्याय और अत्याचार से मानवजाति को प्रताड़ित किया, वे आसुरी संपदा से युक्त कहलाए। 

हिरण्याक्ष हिरण्यकशिपु तथा रावण जैसे असुरों ने अपने आसुरी स्वभाव से संसार के लोगों को त्रस्त किया। देवताओं से उनके लोक तथा उनके यज्ञ भाग छीन कर सृष्टि की कार्य व्यवस्था को बाधित किया। छीनना उनका स्वभाव रहा है। आज भी विश्व में यही हो रहा है, शक्तिशाली कमजोर से छीन रहा है, चाहे वह देश हो या पूंजीपति।

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तब इस संसार में लोक कल्याण की भावना तथा शांति, प्रेम और सद्भावना से युक्त धर्म की व्यवस्था बनाए रखने के लिए तथा अपने भक्तों के प्रेमवश भगवान को भगवान श्री राम तथा भगवान श्री कृष्ण जी के रूप में अवतार लेना पड़ता है।

भगवान श्री कृष्ण जी ने इस बात की घोषणा महाभारत के युद्ध में करते हुए कहा कि

‘‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥’’

हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूं अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं।

भगवद् गीता ब्रह्म विद्या है, योग शास्त्र है, तथा भगवान श्री कृष्ण तथा अर्जुन का संवाद है। इसमें 18 अध्याय योग के रूप में वर्णित हैं। भगवद्गीता महाभारत के भीष्म पर्व के अध्याय 25वें से अध्याय 42 तक हैं।

मानव कल्याण के उद्देश्य से अधर्म, अन्याय तथा अनीति को जड़ से मिटाने के लिए पालनहार गोविंद भगवान ने अर्जुन के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जाति को यह उपदेश दिया।

भगवद्गीता में उच्च और नीच मनुष्य विषयक भेद ही नहीं है, क्योंकि गीता ब्रह्मस्वरूप है, अत: उसका ज्ञान सबके लिए समान है। आज हम विश्व में समानता एवं सामाजिक समरसता का भाव लाना चाहते हैं, तो संपूर्ण मानवजाति को भगवद्गीता के शाश्वत सिद्धांतों का अनुसरण करना होगा। भगवद्गीता के शाश्वत सिद्धांत यह घोषणा करते हैं कि ‘अद्वेष्टा सर्वभूतानां’ सबमें द्वेष भाव से रहित होकर रहो। ‘मैत्र: करूण एव च’ सबके प्रति मित्रता एवं करूणा का भाव रखो।

‘सर्वभूत हिते रता:’

सदैव प्राणीमात्र के कल्याण की भावना से कार्य करते रहो। यही भगवद् गीता का सम्पूर्ण विश्व के प्राणीमात्र को संदेश है।  

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