Chanakya Niti- जब आचार्य चाणक्य के दर्शन करने विदेश से आया राजा...

Edited By Updated: 22 Oct, 2022 01:40 PM

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रे चंद्रगुप्त! अब तो तुम सचमुच ही सम्राट बन चुके हो। आज तुम मेरी एक इच्छा पूरी करो।’’ चाणक्य ने अपनी लम्बी चोटी की गांठ संभालते हुए कहा।

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Chanakya Niti formula- रे चंद्रगुप्त! अब तो तुम सचमुच ही सम्राट बन चुके हो। आज तुम मेरी एक इच्छा पूरी करो।’’ चाणक्य ने अपनी लम्बी चोटी की गांठ संभालते हुए कहा।

‘‘गुरुदेव! आप भी बहुत ही मीठी चुटकी लेते हैं। सारा साम्राज्य आपके इशारे पर नाचता है। हम सब आपके अधीन हैं। कहिए क्या आज्ञा है। हमें उसको पूरा करने पर गर्व होगा।’’ चंद्रगुप्त ने नम्रतापूर्वक निवेदन किया।

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‘‘वत्स चंद्रगुप्त! तुम्हारा सितारा बुलंद रहे। आज तुम इस देश के शिखर पर हो, पर मेरे जीवन की सार्थकता तुम्हारे इस राजमहल में नहीं, किसी सरिता या सरोवर के किनारे वन या निर्जन में मेरी पर्ण कुटिया में है। कदाचित तुम्हें यह स्मरण ही होगा कि मैं जब यहां आया था तब अपना मृगचर्म, कम्बल, लोटा और डंडा तुम्हारे पास जमा करवा दिया था। मुझे अब वह अमानत वापस करवा दो और मुझे विदा करो ताकि मैं अपनी कुटिया आबाद कर सकूं।’’ चाणक्य ने गम्भीरता से कहा।

सम्राट चंद्रगुप्त के पास कोई उत्तर नहीं था। चाणक्य जैसे डंडा फटकारते आए थे, वैसे ही बड़ी तेजी के साथ राजमहल से अपनी कुटिया लौट गए।

उधर एक दिन यूनानी शासक सेल्यूकस के दरबार में किसी अनुभवी दरबारी ने पूछा, ‘‘सम्राट सिकंदर तो कहीं परास्त नहीं हुए। वह भारत की शक्ति देख कर सिंधु के तट से वापस लौट गए थे पर आप कैसे हार गए।’’

सेल्यूकस ने कहा, ‘‘यह सब हमारे जमाता चंद्रगुप्त के अप्रतिम शौर्य के कारण हुआ।’’

‘‘आपका सोचना सही नहीं है सम्राट, इस हार का कारण था वहां का राजगुरु चाणक्य। उस त्यागी, तपस्वी, तेजस्वी ब्राह्मण ने सारे भारतवर्ष को संगठित करके विभिन्न मोर्चों पर लगा रखा था। वह राष्ट्र का वेतनभोगी रक्षक नहीं, अपितु समर्पित भाव से जीने वाला असली रक्षक है।’’

‘‘हमें उस महापुरुष के दर्शन करने चाहिएं।’’

‘‘हां करने ही चाहिएं, फिर आपको तो उनकी दर्शन यात्रा से कई लाभ होंगे।’’

‘‘तो फिर तैयारी कीजिए।’’

देखते ही देखते सेल्यूकस का दल भारत यात्रा पर चल दिया। पर्यटन स्थलों को देखते हुए जब वे पाटिलपुत्र पहुंचे तब हेलेना और चंद्रगुप्त ने उनका शाही ढंग से स्वागत किया। पर वे चकित थे कि तमाम अधिकारियों में चाणक्य कौन है। ‘‘हम उनके दर्शन के लिए ही इस यात्रा पर निकले हैं।’’

चंद्रगुप्त बोले, ‘‘महाराज, आज तो मेरे पिता तुल्य हैं। आपसे क्या छिपाऊं। यह शायद ही संभव हो। कारण यह है कि अब तो वह अपनी कुटिया में जा चुके हैं। उनकी पूर्व अनुमति के बिना कोई भी वहां नहीं जा सकता, राजा भी नहीं।’’

‘‘तो फिर अनुमति मंगवा लीजिए।’’

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‘‘यही तो परेशानी है। उन्होंने अनुमति नहीं दी तो फिर स्थिति अजीब हो जाएगी। एक बार प्रस्ताव अस्वीकार हो जाने पर फिर अनुमति नहीं मांगी जा सकती। हां, दोबारा मैं अनुमति का आग्रह कर सकता हूं। यह अपवाद है।’’ ‘‘ठीक है आप परेशान क्यों हैं, जो कुछ भी स्थिति बनेगी हम उससे निपट लेंगे। वह इंकार करेंगे नहीं और यदि कर भी दिया तो हम अपमानित महसूस नहीं करेंगे।’’

फिर भारत सम्राट चंद्रगुप्त और यूनान सम्राट सेल्यूकस दोनों एक ही रथ पर सवार होकर चले। चाणक्य की पर्ण कुटिया से कुछ दूरी पर रथ रोक दिया गया ताकि किसी प्रकार का शोर उनकी कुटिया तक न पहुंचे। चाणक्य को सूचना भेजी गई और अनुमति भी  मिल गई। सेल्यूकस चकित था कि यह कैसा सम्राट है? सेल्यूकस को मिलना था इसलिए वहां पर क्या कहते। कुटिया में चाणक्य ने चंद्रगुप्त और सेल्यूकस का बड़े आत्मीयता भरे वातावरण में अभिनंदन किया। उनकी कुशलता पूछी और शुभाषीश दिया। फिर सेल्यूकस से पूछा, ‘‘यूनान सम्राट, आपने कैसे इस गरीब ब्राह्मण की कुटिया पर इतनी दूर से पधारकर इसे पवित्र किया?’’

सेल्यूकस ने अपनी यात्रा का उद्देश्य बताया तो प्रसन्न होकर चाणक्य बोले, ‘‘आप हमारे अतिथि हैं और अतिथि देवता होते हैं। आपने सही-सही बात कह कर मुझ गरीब ब्राह्मण की आत्मा प्रसन्न कर दी। वैसे यात्रा के दौरान आप जहां भी ठहरे, उसकी मुझे पूरी जानकारी है।’’

चाणक्य से यात्रा के दौरान हुई घटनाओं, चर्चाओं, भोजन, शयन आदि की व्यवस्था का पूरा विवरण सुनकर सेल्यूकस चकित रह गया।

उसे चकित देख कर चाणक्य बोले, ‘‘आप हमारे अतिथि हैं इसलिए पूज्यनीय भी, मित्र भी हैं, फिर भी हैं तो आप हमारे देश के लिए विदेशी ही।’’

सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त से कहा, ‘‘मैं गुरु चाणक्य के दर्शन से धन्य हो गया, अब शेष क्या रहा समझने और जानने के लिए। जिस मनीषी की खुली निगाहें राष्ट्र के चप्पे-चप्पे पर लगीं हों, वह राष्ट्र एकता के धागे में बंधा कैसे नहीं रहेगा।’’

सेल्यूकस ने आचार्य चाणक्य को साष्टांग प्रणाम करके उनकी पगधूलि को ललाट पर लगा कर विदा ली। चाणक्य उन्हें विदा करके अपनी पर्णकुटी में लौट गए।

सेल्यूकस अति प्रसन्न मन से चंद्रगुप्त से बोले, ‘‘सम्राट आप धन्य हैं कि ऐसा त्यागी, विवेकी, तपस्वी और चौकन्ना अप्रतिम देशभक्त आपका रक्षक है और धन्य है वह भारत भूमि जहां पर ऐसे महाविश्व मानव का जन्म हुआ।’’ इसके बाद सेल्यूकस वापस यूनान लौट गया।

यूनान में वह दरबारी अपनी सत्यधारणा पर प्रसन्न था। सेल्यूकस ने उसे पुरस्कार देकर कहा, ‘‘तुम्हारे कारण ही मैं आचार्य चाणक्य के दर्शन कर पाया। राष्ट्र की सही रक्षा कैसे की जानी चाहिए, यह भी उनसे ही सीख पाया।’’

सेल्यूकस बड़ा खुश था सही रक्षक के दर्शन करके, जिसके लिए राष्ट्रहित ही सर्वोपरि था।

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