चाणक्य नीति सूत्र: जनपद के लिए ग्राम का त्याग कर देना चाहिए

Edited By Updated: 04 Jan, 2022 06:54 PM

chanakya niti in hindi

आचार्य चाणक्य ने अपने नीति सूत्र में मानव जीवन से जुड़ी कई बातों के बारे में बताया। इन्होंने अपने नीति शास्त्र में मानव जीवन के स्वभाव से लेकर उसके जीवन में होने वाली हर घटना से जुड़ी नीतियां

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आचार्य चाणक्य ने अपने नीति सूत्र में मानव जीवन से जुड़ी कई बातों के बारे में बताया। इन्होंने अपने नीति शास्त्र में मानव जीवन के स्वभाव से लेकर उसके जीवन में होने वाली हर घटना से जुड़ी नीतियां बताई गई है। आज हम आपको हमेशा की तरह एक बार फिर चाणक्य नीति श्लोक अर्थ के साथ बतान जा रहे हैं। जो मानव जीवन के विभिन्न विभिन्न पहलुओं से जुड़ी हुई है। 

चाणक्य नीति श्लोक-
प्रायेण हि पुत्र: पितरमनुवर्तन्ते।

आदर्श पिता बनिए
भावार्थ : प्राय: पुत्र पिता का ही अनुगमन करता है इसलिए पिता को सर्वप्रथम अपना आचरण शुद्ध रखना चाहिए और पुत्र के स मुख एक आदर्श पिता का रूप रखना चाहिए।

चाणक्य नीति श्लोक-
दुर्गते: पितरौ रक्षति सपुत्र:।

सुपुत्र के गुण
भावार्थ : गुणी पुत्र माता-पिता की दुर्गति नहीं होने देता। वृद्धावस्था में जब मां-बाप शरीर से अशक्त हो जाते हैं तब हर कोई उनकी सेवा करने से कतराने लगता है लेकिन सुपुत्र उनकी सेवा श्रवण कुमार की भांति ही करता है। वह उनका सहारा बन जाता है।


चाणक्य नीति श्लोक-
ग्रामार्थ कुटु बस्त्यज्यते।

अधिक लोगों के हित सर्वोपरि
भावार्थ : ग्राम के लिए कुटु ब (परिवार) को त्याग देना चाहिए। यदि व्यक्ति के सामने पूरे ग्राम का हित स मुख है तो अपने परिवार के स्वार्थ को छोड़ देना चाहिए।

चाणक्य नीति श्लोक-
जनपदार्थ ग्रामं त्यजेत्।

जनपद के लिए ग्राम का त्याग कर देना चाहिए।
भावार्थ : यदि जनपद (जिला) का हित स मुख हो तो ग्राम के हित को त्याग देना चाहिए। भाव यही है कि अधिक लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए कम लोगों के लाभ को छोड़ देना ही श्रेष्ठ है।
 

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