Dahi Handi: इस जगह से हुई थी श्री कृष्ण के प्रिय दही की शुरुआत

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Sep, 2023 08:31 AM

dahi handi

हिंदू धर्म में हर वर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी पर मनाए

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Janmashtami Special Dahi Handi: हिंदू धर्म में हर वर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी पर मनाए जाने वाले खेलों में से एक है दही हांडी। दही का अर्थ है दही और हांडी का अर्थ है दूध उत्पाद से भरे मिट्टी के बर्तन से। महाराष्ट्र में दही हांडी को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। त्योहारों के अलावा दही हमारे खान-पान का अहम हिस्सा है। दही के बहुत से फायदे बताए जाते हैं, इसमें कोई शक भी नहीं। कृष्ण भगवान तो माखनचोर और दही चोर के तौर पर मशहूर हुए ही लेकिन सवाल यह है कि दही की शुरुआत कहां से हुई ? तो चलिए आपकी शंका को दूर करने के लिए जानते हैं कि दही की शुरुआत कहां से हुई ?

Beginning of curd setting दही जमाने की शुरुआत
कहा जाता है कि दही पूर्वी यूरोपीय देश बुल्गारिया की देन है। यहां दही कई रूपों में खाया जाता है। यहां कोई भी भोजन दही के बिना अधूरा है। बहुत से बुल्गारियाई लोगों का दावा है कि अब से 4,000 साल पहले घुमक्कड़ जाति के लोगों ने दही जमाने की तरकीब खोज निकाली थी। ये खानाबदोश अपने छोटे बच्चों के साथ एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते थे। ऐसे में इनके पास दूध को बचा कर रखने का कोई तरीका नहीं था। लिहाजा उन्होंने दूध को जमाकर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इस काम के लिए वे जानवरों की खाल का इस्तेमाल करते थे। दूध को एक निश्चित तापमान पर रखा जाता था, जिससे दूध में उसे जमाने वाले जीवाणु पैदा हो जाते थे।

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Discovery of curd bacteria दही के बैक्टीरिया की खोज
बुल्गारिया में दही जमने के लिए जरूरी बैक्टीरिया की एक खास नस्ल मिलती है। यहां का माहौल भी दही जमाने के लिए बेहद अनुकूल है। बुल्गारिया के एक वैज्ञानिक ने ही सबसे पहले दही जमने के तरीके पर रिसर्च की थी। वह बुल्गारिया के ट्रेन इलाके  का रहने वाला था। वैज्ञानिक का नाम था स्टामेन ग्रीगोरोव। बुल्गारिया के इस वैज्ञानिक के नाम पर ट्रेन इलाके में दही म्यूजियम भी बनाया गया है, जो दुनिया में अपनी तरह का एक ही है। ग्रिगोर स्विट्जरलैंड की जेनेवा यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। वह अपने गांव से दही की एक हांडी लेकर गए और वहां रिसर्च की, जिससे दही जमने के पीछे जो बैक्टीरिया है, उसकी खोज हुई। इसे नाम दिया गया लैक्टोबैसिलस बुल्गारिकस।

Secret of longevity लंबी उम्र का राज
ग्रिगोरोव की रिसर्च को आधार बनाते हुए रूस के नोबेल पुरस्कार विजेता बायोलॉजिस्ट एली मेचनिकॉफ ने बुल्गारिया के किसानों की लंबी उम्र का राज जाना। दरअसल बुल्गारिया के किसान खूब दही खाते थे। उनकी उम्र भी काफी हुआ करती थी। बुल्गारिया के रोडोप पर्वत पर जितने लोग रहते थे, उनमें ज्यादातर की उम्र 100 साल से ज्यादा थी। जिंदगी के 100 साल पूरे करने वाले लोगों की सबसे बड़ी आबादी पूरे यूरोप में यहीं पर पाई जाती थी।
जैसे ही लोगों के बीच यह बात आम हुई कि दही खाने वालों की उम्र बढ़ जाती है तो फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, स्पेन, और ब्रिटेन में इसका क्रेज अचानक बढ़ गया। इन देशों में बुल्गारियाई दही की मांग बढ़ने लगी।

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रिवायती तौर पर बुल्गारिया में दही घरों में जमाया जाता था। इसे मिट्टी के मटकों में ही जमाया जाता था, जैसे भारत में होता है। इन मटकों को बुल्गारिया में रुकाटका कहते हैं लेकिन मांग पूरी करने के लिए जैसे-जैसे तकनीक का इस्तेमाल होने लगा, रवायती स्वाद भी जाता रहा।  बुल्गारिया के घुमक्कड़ लोग पूरे साल मौसम के मुताबिक कई तरह के दूध से दही तैयार करते थे, कभी भेड़ के दूध से, कभी गाय के दूध से, तो कभी भैंस के दूध से लेकिन आज दही अधिकतर भैंस के दूध से तैयार होता है।

Traditional yogurt making पारंपरिक दही बनाने का काम
साल 1949 तक भी बुल्गारिया के बहुत से घरों में पारंपरिक तरीकों से दही बनाने का काम जारी था लेकिन जब बुल्गारिया के दही की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मांग बढ़ गई तो सरकार ने डेयरी उद्योग का राष्ट्रीयकरण कर लिया। बुल्गारिया की सरकार चाहती थी कि उसकी पहचान सोवियत संघ के दूसरे सहयोगी देशों से जुदा रहे और उसे यह पहचान दिला सकता था वहां पारंपरिक तरीकों से तैयार किया जाने वाला दही। इस मकसद के लिए बुल्गारिया के अलग-अलग इलाकों में जाकर घरेलू दही के सैंपल लिए जाते थे। फिर उन पर नए तजुर्बे करके ज्यादा जायकेदार दही तैयार किया जाता था।

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Making curd is an art दही बनाना एक कला
आज भी बुल्गारिया की सरकारी क पनी एलबी बुल्गेरिकम जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अपने सहयोगी देशों को बुल्गारियाई दही का कारोबार करने का लाइसेंस देती है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि बुल्गारिया के दही में जो जीवाणु हैं, वे सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं और किसी भी एशियाई देश में उस जीवाणु की मदद से दही तैयार नहीं हो सकता इसलिए हर साल इन बैक्टीरिया की खेप बुल्गारिया से कोरिया और जापान भेजी जाती है।

1989 में जब बुल्गारिया में क युनिस्ट शासन का खात्मा हुआ तो बुल्गारिया में दही का कारोबार धीमा पड़ गया। पहले के दौर में पारंपरिक दही तैयार करने वाली डेयरियों की संख्या भी काफी कम हो गई थी। हालांकि अब स्थानीय उत्पादक अपने पारंपरिक कारोबार को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी ही एक क पनी है हरमोनिका, जो ऑर्गेनिक दही बनाकर निर्यात करती है। बुल्गारिया में दही की बहुत किस्में नहीं पाई जाती लेकिन जायका कई किस्म का मिल सकता है। यहां तक कि अगर एक ही परिवार की दो महिलाएं दही तैयार करती हैं तो दोनों के तैयार किए दही का स्वाद अलग होगा। दही बनाना यहां के लोगों के लिए एक कला है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती है।   

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