Dev Deepawali: काशी में देवलोक का अहसास करवाती है देव दीपावली

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Nov, 2023 07:54 AM

dev deepawali

वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा की रात गंगा के अर्ध चंद्राकार घाटों की छटा देवलोक का अहसास कराती है। देखने वाले को महसूस होता है कि गंगा तट पर देवलोक की छवि उतर आई है।

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Dev Deepawali 2023: वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा की रात गंगा के अर्ध चंद्राकार घाटों की छटा देवलोक का अहसास कराती है। देखने वाले को महसूस होता है कि गंगा तट पर देवलोक की छवि उतर आई है। काशी की देव दीपावली का यह नजारा अद्भुत होता है। बजते घंटे-घड़ियाल, शंखों की गूंज व हिलोरे लेती आस्था, जिसे देखने के लिए देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु काशी आते हैं।

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lakha mela in kashi काशी में लक्खा मेले की प्राचीन परम्परा है। इसमें एक लाख से अधिक लोग एकत्र होते हैं। नाटी इमली का भरत मिलाप, तुलसी घाट की नाग नथैया, चेतगंज की नक्कटैया और रथयात्रा मेले की शृंखला में यह काशी का पांचवां लक्खा मेला है। इस अवसर पर गंगा के 84 घाटों पर सात किलोमीटर तक शृंखलाबद्ध दीप जलाए जाते हैं। शाम होते ही ये सभी घाट दीपों की रोशनी में नहा उठते हैं और गंगा की धारा में इन दीपों की अलौकिक छटा निखरती है।

शंकराचार्य की प्रेरणा से प्रारंभ होने वाला यह दीपोत्सव पहले केवल पंचगंगा घाट की शोभा हुआ करता था लेकिन धीरे-धीरे काशी के सभी घाटों पर दीपों की शृंखला बढ़ती चली गई और दो दशकों से देव दीपावली ने महापर्व का स्वरूप ले लिया है। इस तरह देव दीपावली सांस्कृतिक राजधानी काशी की खास पहचान बन गई है।

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Ahilyabai Holkar had established Hazara Lighthouse अहिल्याबाई होल्कर ने स्थापित किया था हजारा दीपस्तंभ
काशी की देव दीपावली प्राचीनता और परम्परा का अद्भुत संगम है। इतिहास में इसका जिक्र मिलता है। महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर पत्थरों से बना खूबसूरत हजारा दीपस्तंभ स्थापित किया था।

यह दीपस्तंभ देव दीपावली की परम्परा का साक्षी है। काशी में देव दीपावली की शुरूआत भी यहीं से हुई थी। यह दीपस्तंभ देव दीपावली के दिन 1001 से अधिक दीपों की लौ से जगमगाता है। इस दृश्य को यादों में सहेजने के लिए देश ही नहीं, विदेशों से पर्यटक काशी पहुंचते हैं।

Ashtadhatu idol of Maa Ganga is worship मां गंगा की अष्टधातु की प्रतिमा का होता है दर्शन-पूजन
देव दीपावली के अवसर पर मां गंगा की अष्टधातु की प्रतिमा को गंगा घाट पर विराजमान किया जाता है। मां गंगा की यह प्रतिमा साल में दो बार गंगा दशहरा और देव दीपावली पर ही लोगों के दर्शन-पूजन के लिए स्थापित की जाती है।

इस तरह काशी में कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान की यह परम्परा देव आराधना का महापर्व बन जाती है। काशी की गंगा आरती तो देशभर में प्रसिद्ध है ही, देव दीपावली पर आरती का नजारा और भी अद्भुत होता है।

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Dev Deepawali story देव दीपावली के दिन भगवान शिव ने किया था त्रिपुरासुर का वध
देव दीपावली की पृष्ठभूमि में एक पौराणिक कथा भी है। त्रिपुरासुर राक्षस ने ब्रह्माजी की तपस्या कर वरदान पा लिया था और तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य जमा लिया था।

इसके बाद देवताओं ने भगवान शिव से उसका अंत करने की प्रार्थना की। उन्होंने इसी दिन त्रिपुरासुर का वध किया था। इस खुशी में देवताओं ने दीपावली मनाई, जिसे आगे चलकर देव दीपावली के रूप में मान्यता मिली इसलिए देव दीपावली को ‘त्रिपुरी’ के नाम से भी जाना जाता है।

 

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