Dev Uthani Ekadashi: देवउठनी एकादशी पर देवताओं को जाग्रत करते समय इन नियमों को करें Follow

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Nov, 2024 03:38 PM

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Dev Uthani Ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी (जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है) का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के चार माह के निर्वाणकाल (चातुर्मास) के बाद उठने का माना जाता है।

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Dev Uthani Ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी (जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है) का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के चार माह के निर्वाणकाल (चातुर्मास) के बाद उठने का माना जाता है। चातुर्मास में भगवान विष्णु शयन करते हैं और देवउठनी एकादशी पर उनका जागरण होता है। यह दिन विशेष रूप से व्रत, पूजा और धार्मिक अनुष्ठान के लिए होता है और साथ ही साथ वास्तु के नियमों का पालन करके इसे और भी शुभ और फलदायी बनाया जा सकता है।

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वास्तु शास्त्र के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन देवताओं को जाग्रत करते समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए:
पूजा स्थल का चयन (Selection of Prayer Place)
पूजा स्थल को स्वच्छ और वस्त्रों से सुसज्जित होना चाहिए। यह स्थान पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए क्योंकि ये दिशाएं सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं।
पूजा स्थल पर किसी भी प्रकार की गंदगी या अव्यवस्था न हो, ताकि वातावरण में नकारात्मकता का प्रभाव न पड़े।
घर के केंद्र (ब्रह्मस्थान) का उपयोग करना भी शुभ माना जाता है क्योंकि यह स्थान समग्र घर की ऊर्जा का संतुलन बनाए रखता है।

वास्तु अनुसार पूजा की वस्तुएं (Vastu for Puja Items)
व्रत और पूजन सामग्री जैसे दीपक, कपूर, फल, फूल, चंदन, पानी, आदि को साफ-सुथरी जगह पर रखें।
वास्तु के अनुसार दीपक का स्थान उत्तर या पूर्व दिशा में रखा जाना चाहिए, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो।
पूजा में पानी का महत्व है और इसे किसी स्वच्छ पात्र में रखना चाहिए। इसे ताम्र, पीतल या चांदी के बर्तन में रखें, जिससे जल की शुद्धता बनी रहे।

दीपों का प्रज्वलन (Lighting of Lamps)
देवउठनी एकादशी के दिन दीपों का महत्व विशेष रूप से होता है। शुद्ध घी का दीपक घर के प्रत्येक कोने में जलाएं। यह न केवल वास्तु के अनुसार सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, बल्कि घर में शुभता और समृद्धि भी लाता है।

दीपक को पूर्व दिशा की ओर रखें और ध्यान रखें कि दीपक बुझा न हो। एकादशी के दिन जलाए गए दीपक से घर में लक्ष्मी और ब्रह्मा के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।

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प्रभात बेला में पूजा (Morning Time Puja)
देवउठनी एकादशी के दिन प्रभात बेला (सुबह-सुबह सूर्योदय से पूर्व) में पूजा करना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इस समय वातावरण शुद्ध और सकारात्मक रहता है।
पूजा से पहले घर के मुख्य स्थान (विशेषकर पूजा कक्ष) को ध्यान से साफ करें और संगीत, शंख या मृदंग की ध्वनि से वातावरण को शुभ बनाएं।

मंत्रों का उच्चारण (Chanting of Mantras)
पूजा के समय विशेष मंत्रों का उच्चारण करें जैसे "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" या "ॐ श्री विष्णवे नमः"। इन मंत्रों से वास्तु और ऊर्जा का संतुलन बनता है और वातावरण में सकारात्मकता आती है।
इन मंत्रों का उच्चारण उत्तर या पूर्व दिशा की ओर करके करें, ताकि पूजा का प्रभाव अधिक रहे।

व्रत और आहार (Fasting and Diet)
इस दिन उपवासी रहकर व्रत करना उत्तम होता है लेकिन अगर व्रत न कर सकें तो सात्विक आहार का सेवन करें। तला हुआ, मसालेदार या राजसी आहार से बचें। सादा और शाकाहारी भोजन करें।
आहार में पानी का पर्याप्त सेवन करें और न्यूनतम भोजन करें। यह शरीर को हल्का रखेगा और ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगा।

शुद्धता का ध्यान रखें (Maintain Purity)
पूजा से पहले स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। शुद्धता का ध्यान रखने से मन की एकाग्रता बनी रहती है और पूजा का प्रभाव अधिक होता है।
सांझ को गंगा जल या शुद्ध जल से घर के प्रत्येक स्थान को पवित्र करें, ताकि नकारात्मकता का नाश हो और शुभता का आगमन हो।

गंगा जल या पंचामृत का उपयोग (Use of Ganga Water or Panchamrit)
गंगा जल का छिड़काव पूरे घर में करना बहुत शुभ होता है, विशेष रूप से पूजा स्थल और घर के मुख्य स्थान पर। यह न केवल घर की ऊर्जा को शुद्ध करता है, बल्कि समृद्धि और सुख भी लाता है।

पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) का उपयोग पूजा में करें, खासकर भगवान विष्णु या तुलसी के साथ। यह शुभता और आशीर्वाद की प्राप्ति का प्रतीक है।

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तुलसी का पूजन (Worship of Tulsi)
तुलसी के पौधे की पूजा करें और उसकी चारों बातों (पत्तियों, फूलों, तनों और जड़ों) को शुद्ध करें। तुलसी को भगवान विष्णु का प्रिय माना जाता है और उसकी पूजा से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
तुलसी को उत्तर दिशा में रखना उत्तम होता है। यदि घर में तुलसी का पौधा है तो उस पौधे के आसपास साफ-सफाई और पूजा अवश्य करें।

समय का पालन (Adhering to Time)
देवउठनी एकादशी के दिन समय का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। शाम के समय (संध्या वेला) विशेष रूप से दीप जलाने और पूजा करने का महत्व होता है।
व्रत के समय सूर्यास्त से पहले पूजा अवश्य करनी चाहिए और संतान सुख या आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन विशेष ध्यान रखना चाहिए।

देवउठनी एकादशी पर देवताओं को जागृत करते समय वास्तु के इन नियमों का पालन करके आप न केवल पूजा को सफल बना सकते हैं, बल्कि घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। इस दिन किए गए पूजा और अनुष्ठानों से घर में समृद्धि, सुख-शांति और ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
 

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