Dharmik Katha: व्यवहार में नम्रता का होना बहुत जरूरी

Edited By Jyoti,Updated: 14 Aug, 2021 10:37 AM

dharmik katha in hindi

स्वामी दयानंद सरस्वती फर्रूखाबाद में गंगा तट पर रुके हुए थे। तट पर ही उन्होंने एक कुटिया बनाई हुई थी। उस कुटिया से थोड़ी ही दूर पर एक साधु ने भी कुटिया बनाई हुई थी। वह साधु स्वामी जी से बिना किसी

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स्वामी दयानंद सरस्वती फर्रूखाबाद में गंगा तट पर रुके हुए थे। तट पर ही उन्होंने एक कुटिया बनाई हुई थी। उस कुटिया से थोड़ी ही दूर पर एक साधु ने भी कुटिया बनाई हुई थी। वह साधु स्वामी जी से बिना किसी कारण के ही द्वेष रखता।

वह साधु हर रोज बिना किसी कारण के ही स्वामी जी की कुटिया के पास आकर उन्हें गालियां दिया करता था। पर स्वामी जी उनकी किसी भी गाली का प्रत्युत्तर नहीं देते थे जिससे वह साधु थक हारकर वापस अपनी कुटिया में चला जाया करता था।

एक दिन स्वामी जी के किसी शिष्य ने उन्हें फलों से भरा एक टोकरा भेजा। स्वामी जी ने उस टोकरे में से कुछ फल निकाल कर एक पोटली बना दी और अपने शिष्य से बोले जाओ उस साधु को यह फल देकर आओ।

जब उनका शिष्य वह फल लेकर उस साधु के पास पहुंचा और साधु से कहा कि ये फल स्वामी जी ने आपके लिए भेजे हैं, तो वह क्रोध से पागल हो गया और उनके शिष्य से बोला तुमने सुबह-सुबह किस मनहूस का नाम मेरे सामने ले दिया।

यह सुनकर शिष्य वापस स्वामी जी के पास वापस लौट आया। उसने सारी बात स्वामी जी को बता दी। इस पर स्वामी जी ने अपने शिष्य से कहा वापस जाओ और उस साधु से यह कहो कि यह फल इसलिए भिजवाए हैं कि आप जो अमृत वचन इस कुटिया पर आकर देते हो उससे आपकी बहुत सारी ऊर्जा नष्ट हो जाती है। ये फल आपकी ऊर्जा को बनाए रखेंगे जिससे कि मुझे आपके अमृत वचनों से वंचित न होना पड़े।

स्वामी जी के शिष्य ने जब यह संदेश उस साधु को सुनाया तो वह बहुत शृमिंदा हुआ और उस साधु ने स्वामी जी के पास जाकर अपने व्यवहार के लिए उनसे माफी मांगी।

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