श्री राम को ढंढूते हुए यहां पहुंच गए थे अयोध्या वासी

Edited By Jyoti,Updated: 07 May, 2021 05:57 PM

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वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब श्री राम जी 14 साल के वनवास के लिए अयोध्या को छोड़कर चले गए थे तब उनकी भ्राता भरत और शत्रुघ्न अयोध्या में मौजूद नहीं थे।

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वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब श्री राम जी 14 साल के वनवास के लिए अयोध्या को छोड़कर चले गए थे तब उनकी भ्राता भरत और शत्रुघ्न अयोध्या में मौजूद नहीं थे। जब उन्हें अयोध्या में आकर इस बात का पता चला था तो भरत जी ने न केवल राज्य को ठुकराया था बल्कि वह अयोध्या वासियों को अपने साथ लेकर श्री राम को वापस लेने के लिए निकल पड़े थे। आप में से बहुत से लोगों होंगे जो इस बारे में जानते होंगे लेकिन इस दौरान अयोध्या वासियों ने कहां पर रुक कर विश्राम किया था और कहां उन्होंने श्रीराम के न मिलने पर इकट्ठा होकर "डाह" किया था इस बारे में नहीं पता होगा। जी हां बता दे मान्यताओं के अनुसार डा का मतलब अपना गुस्सा प्रकट करना व रुदन करना माना जाता है।

तो आइए आपको बताते हैं उस स्थल के बारे में जहां पर श्री राम को ना ढूंढ पाने के कारण से अयोध्या वासियों ने निराश व इकट्ठा होकर "डाह" किया था। इसके अलावा उस स्थल के बारे में भी जानेंगे जहां श्री राम ने अपने वनवास के दौरान पहली रात्रि को विश्राम किया था।

श्रीराम मंदिर, टाहडीह (सरयू जी) फैजाबाद (उ.प्र.)
टाहडीह की उत्पत्ति ‘डाह’ शब्द से हुई है। अवधी में ‘डाह’ का अर्थ है एकत्रित होकर रूदन करना। लोक मान्यता के अनुसार श्री राम को न ढूंढ पाने के बाद अयोध्यावासियों ने यहां इकट्ठा होकर ‘डाह’ किया था। अब यहां सीता-राम जी एवं लक्ष्मण जी का मंदिर बना हुआ है। (ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/47/1 से 13, मानस 2/85/1 से 2/ 86 दोहा)

तमसा तट, गौरा घाट (तमसा), फैजाबाद (उ.प्र.)
यहां श्री राम ने वनवास की प्रथम रात्रि विश्राम किया था। तमसा का वर्तमान नाम मंडाह एवं मंढाह है तथा स्थल का नाम गौरा घाट है।गौरा  शब्द गौरव का अपभ्रंश है। यह स्थान अयोध्या जी से लगभग 20 कि.मी. दूर है। (ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/46/1 से 17 तथा 28, मानस 2/84 दोहा से 2/84/1, 2, 3 तथा 2/85 दोहा)

वेदश्रुति नदी, अशोक नगर, फैजाबाद (उ.प्र.)
तमसा नदी से आगे चलने पर श्री राम द्वारा अनेक नदियों को पार करने का विवरण मिलता है। इनमें वेदश्रुति नदी भी सम्मिलित है। इसका वर्तमान नाम विसूही है। नदी पार करने के बाद माता जानकी ने जिस स्थान पर माता गिरिजा की विशेष पूजा-अर्चना की, उसकी याद लोक मानस में बनी रही। (ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/49/10)

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