Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jun, 2017 10:44 AM
यह उस समय की बात है जब विख्यात बंगला लेखक एवं महान कहानीकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने लेखन की शुरूआत की थी। अक्सर उनकी रचनाएं लौटा दी जाती थीं। छपने पर भी पारिश्रमिक अन्य लेखकों से कम मिलता था।
यह उस समय की बात है जब विख्यात बंगला लेखक एवं महान कहानीकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने लेखन की शुरूआत की थी। अक्सर उनकी रचनाएं लौटा दी जाती थीं। छपने पर भी पारिश्रमिक अन्य लेखकों से कम मिलता था। एक बार उन्होंने अपनी ‘स्वामी’ शीर्षक रचना उस समय की चर्चित पत्रिका ‘नारायणा’ में प्रकाशनार्थ भेजी। पत्रिका के सम्पादकों को यह रचना इतनी पसंद आई कि अगले ही अंक में वह पत्रिका की कवर स्टोरी के रूप में छाप दी गई। उस समय ‘नारायणा’ में प्रकाशित एक कहानी या लेख का पारिश्रमिक कम से कम 50 रुपए हुआ करता था लेकिन कई बार इससे ज्यादा पारिश्रमिक भी दिया जाता था। इसका निर्णय रचना का स्तर और लेखक की प्रतिष्ठा को देखकर संपादकगण करते थे लेकिन शरतचंद्र की इस रचना के बारे में संपादक मंडल कोई निर्णय नहीं ले सका।
उनकी दृष्टि में यह रचना अमूल्य थी। तय हुआ कि इसका फैसला शरतचंद्र स्वयं करें। 2 दिनों के बाद उनके पास पत्रिका के कार्यालय से एक कर्मचारी आया और उन्हें प्रधान सम्पादक की एक चिट्ठी सौंपी। चिट्ठी में लिखा था कि पत्र के साथ हस्ताक्षरित ब्लैंक चैक आपको भेज रहा हूं। इस महान लेखक की इस महान रचना के लिए मुझे बड़ी से बड़ी रकम लिखने में भी संकोच हो रहा है। कृपा करके खाली चैक में स्वयं ही अपना पारिश्रमिक डाल लें। मैं आपका आभारी रहूंगा।
शरतचंद्र ने राशि की जगह केवल 75 रुपए भरकर प्रधान संपादक को पत्र लिखा, ‘‘मान्यवर आपने मुझे जो सम्मान दिया है उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। आपका यह पत्र मेरे लिए बेशकीमती है। यही मेरा सम्मान है।’’
उनका पत्र पढ़कर संपादकगण बेहद प्रभावित हुए। महान लेखक की गरिमा ने उन्हें नतमस्तक कर दिया था।