Govardhan Puja Katha: गोवर्धन पूजा पर जरूर पढ़ें ये पावन कथा, तभी होगा व्रत पूर्ण

Edited By Updated: 22 Oct, 2025 07:54 AM

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Govardhan Puja Katha: गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्रदेव का अहंकार तोड़ने और ब्रजवासियों की रक्षा करने की कथा स्मरण की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब इंद्रदेव ने क्रोधित होकर मूसलाधार वर्षा...

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Govardhan Puja Katha: गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्रदेव का अहंकार तोड़ने और ब्रजवासियों की रक्षा करने की कथा स्मरण की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब इंद्रदेव ने क्रोधित होकर मूसलाधार वर्षा शुरू की, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी ब्रजवासियों की रक्षा की। इसी कारण इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा, पूजा विधि, महत्व और इसके पीछे का गूढ़ रहस्य।  

पौराणिक मान्यता के अनुसार एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं, पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रात: काल से ही पूजन की सामग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं, तभी श्री कृष्ण ने यशोदा जी से पूछा "मईया, ये आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं, इस पर मैया यशोदा ने कहा कि पुत्र सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं ,तब कान्हा ने कहा कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं ?

इस पर माता यशोदा उन्हें बताते हुए कहती हैं इंद्रदेव वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है। तब कान्हा ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फूल-फल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से ही प्राप्त होती हैं।

इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे, इस बात को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर प्रलय दायक मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, जिससे चारों ओर त्राहि-त्राहि होने लगी सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे।

तब ब्रजवासी कहने लगे कि ये सब कृष्णा की बात मानने के कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा इसके बाद भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया, तब सभी ब्रजवासी ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से से क्षमा याचना की इसी के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की परंपरा आरंभ हुई।


 

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