Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Sep, 2023 09:04 AM
संस्कृत में एक श्लोक है- प्रसन्न वदनं ध्यायेत, सर्व विघ्नोप शान्तये, जिसका अर्थ है, 'जब आप शांतिपूर्ण और आनंदमय लोगों को याद करते हैं, तो सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।'
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Gurudev Sri Sri Ravi Shankar: संस्कृत में एक श्लोक है- प्रसन्न वदनं ध्यायेत, सर्व विघ्नोप शान्तये, जिसका अर्थ है, 'जब आप शांतिपूर्ण और आनंदमय लोगों को याद करते हैं, तो सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।'
यही कारण है कि हर पूजा के आरंभ में भगवान गणपति का आह्वान किया जाता है। भगवान गणेश सर्वाधिक प्रसन्नचित्त देवता माने जाते हैं।
आदि शंकराचार्य ने अपने एक श्लोक 'अजम निर्विकल्पम' में भगवान गणेश को अजन्मा, निराकार, गुणहीन, निर्विकल्प, चिदानंद तथा सर्वव्यापी ऊर्जा के रूप में वर्णित किया है, जो हर आनंद के आरंभ में उपस्थित हैं। वे न केवल आनंद में उपस्थित रहते हैं, बल्कि निरानंद में भी उपस्थित हैं।
संत ध्यान करते समय जिसका अनुभव करते हैं, वे वही शून्य स्थान हैं। वे सृष्टि के बीज हैं और ब्रह्मांड के सभी गणों के स्वामी हैं। वे एक सार्वभौमिक चेतना हैं, जिसे ज्ञान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
गणपति जीवन का आधार है इसीलिए ऋषियों ने साधारण लोगों के लिए गणेश चतुर्थी पर एक विशेष अनुष्ठान के आयोजन का सुझाव दिया ताकि वे गणपति के साकार रूप की पूजा के माध्यम से उनके निराकार स्वरूप तक पहुंच सकें।
हम अपने हृदय में निवास करने वाले, सर्वव्यापी भगवान गणेश का पवित्र मंत्रों के साथ एक मूर्ति में आह्वान करते हैं। इस प्रकार मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। गणेश उत्सव समाप्त होने के बाद, हम भगवान से, हमारे हृदय में वापस आने की विनती करते हैं और फिर हम मूर्ति को, प्रेम के प्रतीक, जल में विसर्जित कर देते हैं।
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मूर्ति को ईश्वर के रूप में देखें, न कि केवल एक मूर्ति के रूप में। तब हमारे हृदय में भक्ति खिलती है और हम स्वयं को शुद्ध भक्ति सागर में डुबाने में सक्षम हो पाते हैं।