Edited By Prachi Sharma,Updated: 03 Jan, 2024 08:23 AM
एक साधु किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया। पनघट पर पनिहारिन
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Inspirational Context: एक साधु किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया। पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती थीं।
तो एक ने कहा-आह ! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया। पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है। पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली...उसने तुरंत पत्थर फैंक दिया।
दूसरी बोली-साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई...। अभी रोष नहीं गया, तकिया फैंक दिया।
तब साधु सोचने लगा, अब क्या करें ?
तब तीसरी बोली-बाबा ! यह तो पनघट है, यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे ?
लेकिन चौथी ने बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी-क्षमा करना, लेकिन हमको लगता है, तुमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है, अभी तक वही का वही बने हुए हो। दुनिया पाखंडी कहे तो कहे, तुम जैसे भी हो, हरिनाम लेते रहो।
सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना... आंखें बंद करोगे तो कहेंगे कि...ध्यान का नाटक कर रहा है। चारों ओर देखोगे तो कहेंगे कि...निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि...किया हुआ भोगना ही पड़ता है।
ईश्वर को राजी करना आसान है, लेकिन संसार को राजी करना असंभव है...। दुनिया क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो आप अपने लक्ष्य पर ध्यान नहीं लगा पाओगे। दुनिया का तो काम है व्यंग्य करना, इसलिए अच्छे कर्म करते रहिए, भगवान का नाम लेते रहिए। क्या कहेगी दुनिया ये सोच के अपना आप खराब न करिए।