Edited By Prachi Sharma,Updated: 03 Feb, 2024 10:58 AM
एक राजा को अपने दरबार के किसी जिम्मेदार पद के लिए योग्य और विश्वसनीय व्यक्ति की तलाश थी। उसने अपने आसपास के युवकों को परखना
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Inspirational Context: एक राजा को अपने दरबार के किसी जिम्मेदार पद के लिए योग्य और विश्वसनीय व्यक्ति की तलाश थी। उसने अपने आसपास के युवकों को परखना शुरू किया लेकिन वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया तभी एक महात्मा का पदार्पण हुआ, जो इसी तरह कभी-कभी अतिथि बनकर आया करते थे।
युवा राजा ने वयोवृद्ध संन्यासी के समक्ष अपने मन की बात प्रकट की, “मैं तय नहीं कर पा रहा हूं। अनेक लोगों पर मैंने विचार किया। अब मेरी दृष्टि में दो हैं। इन्हीं दोनों में से एक को रखना चाहता हूं।”
संन्यासी ने पूछा, ‘‘कौन हैं ये दोनों ?’’
राजा ने उत्तर दिया, ‘‘एक तो राज परिवार से ही संबंधित हैं पर दूसरा बाहर का है। उसका पिता पहले हमारा सेवक हुआ करता था, उसका देहांत हो गया है। उसका यह बेटा पढ़ा-लिखा तथा सुयोग्य है।’’
संन्यासी ने पुन: पूछा और राज परिवार से संबंधित युवक कैसा है ?’’
राजा बोला, ‘‘उसकी योग्यता मामूली है।’’
संन्यासी ने फिर सवाल किया, ‘‘आपका मन किसके पक्ष में है ?’’
राजा ने कहा, ‘‘मेरे मन में द्वंद्व है, स्वामी जी। राज परिवार का रिश्तेदार कम योग्य होने पर भी अपना है और दूसरा योग्य होने के बावजूद पराया है।’’
संन्यासी ने समाधान करते हुए कहा, ‘‘राजन रोग शरीर में उपजता है तो वह भी अपना ही होता है पर उसका उपचार जंगलों और पहाड़ों पर उगने वाली जड़ी -बूटियों से किया जाता है। ये चीजें अपनी नहीं होकर भी हितकर होती हैं।’’
यह सुनते ही राजा की आंखों के आगे से धुंध छंट गई। उसने निरपेक्ष होकर सही आदमी को चुन लिया।