Edited By Prachi Sharma,Updated: 30 Mar, 2024 09:25 AM
प्रतिदिन के झगड़े से परेशान एक आदमी की इच्छा होती थी कि वह आत्महत्या कर ले। एक दिन वह महर्षि रमण के आश्रम में पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाते
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Inspirational Context: प्रतिदिन के झगड़े से परेशान एक आदमी की इच्छा होती थी कि वह आत्महत्या कर ले। एक दिन वह महर्षि रमण के आश्रम में पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाते हुए आत्महत्या के विचार के बारे में भी बता दिया।
महर्षि रमण उस समय खाने के लिए पत्तलें बना रहे थे। पत्तलें बनाने में उनकी इतनी तल्लीनता देख कर उसे लगा कि महर्षि उसकी बातों को ध्यान से सुन नहीं रहे हैं।
अंत में उस व्यक्ति ने महर्षि रमण से पूछ ही लिया, “आप इन पत्तलों को बनाने में इतना परिश्रम कर रहे हैं जबकि सिर्फ एक बार भोजन के बाद ये कूड़े में फेंक दी जाएंगी।”
महर्षि मुस्कुराते हुए बोले, “तुम ठीक कहते हो। पर किसी वस्तु का पूरा उपयोग हो जाने के बाद उसे फेंकना बुरा नहीं। बुरा तो तब कहा जाएगा, जब उसका उपयोग किए बिना ही कोई उसे फेंक दे। तुम तो शिक्षित और समझदार हो, मेरे कहने का अवश्य समझ गए होंगे।”
महर्षि के वचनों को सुनने के बाद उस व्यक्ति को जीवन का महत्व समझ में आ गया और उसने आत्महत्या का विचार सदा-सदा के लिए त्याग दिया।