Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Mar, 2023 08:59 AM

अस्पेंस्की रूस के एक महान विचारक और दार्शनिक थे। शुरूआत में उन्हें अपने ज्ञान पर बहुत घमंड था। उन्हीं दिनों महान विचारक गुरजिएफ की भी दूर-दूर तक ख्याति फैली थी। अस्पेंस्की एक बार गुरजिएफ के पास पहुंचे। उन्होंने उनसे भी धर्म और दर्शन पर बहस करने और...
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Inspirational Story: अस्पेंस्की रूस के एक महान विचारक और दार्शनिक थे। शुरूआत में उन्हें अपने ज्ञान पर बहुत घमंड था। उन्हीं दिनों महान विचारक गुरजिएफ की भी दूर-दूर तक ख्याति फैली थी। अस्पेंस्की एक बार गुरजिएफ के पास पहुंचे। उन्होंने उनसे भी धर्म और दर्शन पर बहस करने और कुछ नया जानने की इच्छा प्रकट की।
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गुरजिएफ पहुंचे हुए संत और दार्शनिक थे। वह उनके मनोभावों को ताड़ गए।
उन्होंने कहा, ‘‘अस्पेंस्की ! मैं अपना और तुम्हारा समय नष्ट नहीं करना चाहता इसलिए तुम्हें एक सादा कागज दे रहा हूं। इसमें तुम जो कुछ जानते हो और जो नहीं जानते हो, दोनों लिख दो क्योंकि जो तुम पहले से जानते हो उस पर चर्चा करना व्यर्थ है। जो तुम नहीं जानते हो, उसी पर चर्चा होगी।’’
बात एकदम सीधी थी लेकिन अस्पेंस्की के लिए अपने ज्ञान और अज्ञानता की स्थिति को व्यक्त करना बड़ा कठिन काम था। वह उलझन में पड़ गए।
उन्होंने गुरजिएफ के चरणों में कोरा कागज रख दिया और कहा, ‘‘महाराज ! मैं कुछ नहीं जानता, अब आप ही कुछ बताओ।
यह सुनकर गुरजिएफ विनम्रता से बोले, ‘‘ठीक है, अब तुम जानने योग्य पहली बात यह जान गए हो कि तुम कुछ नहीं जानते। यह ज्ञान की पहली सीढ़ी है। अब तुम्हें कुछ सिखाया तथा बताया जा सकता है।’’
यह सुनकर अस्पेंस्की को ज्ञान का जितना अभिमान था, सब चकनाचूर हो गया।
