Edited By Prachi Sharma,Updated: 16 Jan, 2024 07:44 AM
एक राज्य में देव मित्र नाम के राज पुरोहित थे। राजा उनकी हर बात मानते थे। एक दिन पुरोहित के मन में सवाल उठा कि राजा और दूसरे लोग जो मेरा सम्मान
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Inspirational Story: एक राज्य में देव मित्र नाम के राज पुरोहित थे। राजा उनकी हर बात मानते थे। एक दिन पुरोहित के मन में सवाल उठा कि राजा और दूसरे लोग जो मेरा सम्मान करते हैं, उसका कारण क्या है ?
अपने इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई। उन्होंने राजा के खजाने से एक स्वर्ण मुद्रा चुपचाप ले ली, जिसे खजाने के अधिकारी ने देख कर नजरअंदाज कर दिया। राज पुरोहित ने दूसरे दिन भी दो स्वर्ण मुद्राएं उठा लीं। तीसरे दिन राज पुरोहित ने मुट्ठी में स्वर्ण मुद्राएं भर लीं।
इस बार अधिकारी ने उन्हें पकड़कर सैनिकों के हवाले कर दिया। उनका मामला राजा तक पहुंचा। राजा ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि इस अपराध के लिए उन्हें तीन माह की कैद दी जाए।
राज पुरोहित ने राजा से निवेदन किया, ‘‘राजन मैं चोर नहीं हूं। मैं यह जानना चाहता था कि आपके द्वारा मुझे जो सम्मान दिया जाता है, उसका सही अधिकारी कौन है, मेरी योग्यता, ज्ञान या मेरा अच्छा आचरण।
आज सभी लोग समझ गए हैं कि अच्छा आचरण छोड़ते ही मैं दंड का अधिकारी बन गया हूं। सदाचरण और नैतिकता ही मेरे सम्मान का मूल कारण थी।”