कल रोहिणी व्रत: जानें क्या है रोहिणी व्रत की विधि व महत्व

Edited By Updated: 20 Sep, 2019 04:22 PM

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हिंदू धर्म में कई ऐसे व्रत व उपवासों का वर्णन है जो पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। ठीक उसी तरह जैन समुदाय में भी ऐसे कुछ व्रत आदि कि जिक्र मिलता है जो महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु की कामना करते हुए रखा जाता है।

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हिंदू धर्म में कई ऐसे व्रत व उपवासों का वर्णन है जो पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। ठीक उसी तरह जैन समुदाय में भी ऐसे कुछ व्रत आदि कि जिक्र मिलता है जो महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु की कामना करते हुए रखा जाता है। इस बार जैन समुदाय का ये मुख्य रोहिणी व्रत 21 सितंबर को पड़ रहा है। बताया जाता है इस व्रत में रोहिणी नक्षण का मुख्य स्थान रहता है। बता दें इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा का विधान रहता है। इसके साथ ही कहा जाता है 3, 5 और 7 सालों तक इस व्त को करने के बाद इसका उद्यापन किया जाता है। इस साल का अगला रोहिणी व्रत अक्टूबर की 18 को पड़ रहा है। 
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जैन धर्म की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यह व्रत रोहिणी नक्षत्र वाले दिन पड़ता है। अत: जिस दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, यह व्रत उस ही दिन किया जाता है। मान्यता है जो भी व्यक्ति रोहिणी व्रत का श्रद्धापूर्वक पालन करते हैं उसको सभी प्रकार के दुखों एवं दरिद्रता से मुक्ति मिल जाती है। बता दें कि इस व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर यानि मार्गशीर्ष नक्षत्र में किया जाता है।

क्या है रोहिणी व्रत का महत्व-
जेस कि हमने आपको बताया कि रोहिणी व्रत जैन समुदाय की महिलाओं के लिए अधिक महत्व रखता है। इस व्रत का संबंध रोहिणी देवी से है। मान्यता है व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए इस दिन पूरे विधि-विधान से देवी रोहिणी की पूजा करनी आवश्यक होती है। न केवल महिलाएं बल्कि पुरुष भी अपनी स्वेच्छा से इस व्रत को रख सकते हैं। इस दिन जैन धर्म के लोग भगवान वासुपूज्य की भी आराधना करने का विधान हैं। पंती की लंबी आयु के साथ-साथ इस व्रत को करने से घर में धन-धान्‍य और सुखों में वृद्धि होती है। साथ ही भक्त भगवान से अपने अपराधों की क्षमायाचना कर मुक्‍त हो जाते हैं।
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व्रत की पूजन विधि-
व्रत वाले दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत्त जाएं। फिर घर में भगवान वासुपूज्य की पंचरत्न से निर्मित प्रतिमा की स्‍थापना करें और भगवान की पूजा करें। ध्यान रहे इनकी आराधना में दो वस्‍त्रों, फूल, फल और नैवेध्य का भोग ज़रूर शामिल हों। इसके अलावा अपनी यथाशक्ति के अनुसार गरीबों में दान ज़रूर करें।
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