वृन्दावन के इन 3 मंदिरों में मनाई जाती है दिन में जन्माष्टमी

Edited By Jyoti,Updated: 16 Aug, 2022 10:59 AM

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मथुरा: पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी रात में मनाने की परंपरा है वहीं राधारानी की नगरी वृन्दावन के तीन मंदिरों में अनूठे तरीके से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दिन में मनाई जाती है जहां सारा दिन वृन्दावन का कोना कोना कृष्ण भक्ति के तरानों से गूंजता रहता है।...

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मथुरा: पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी रात में मनाने की परंपरा है वहीं राधारानी की नगरी वृन्दावन के तीन मंदिरों में अनूठे तरीके से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दिन में मनाई जाती है जहां सारा दिन वृन्दावन का कोना कोना कृष्ण भक्ति के तरानों से गूंजता रहता है। इस बार समूचे ब्रजमंडल में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 19 अगस्त को मनाई जाएगी। सप्त देवालयों में शुचिता एवं पवित्रता के लिए मशहूर राधारमण मंदिर मे मंदिर के सेवायत लाला को दीर्घजीवी होने का आशीर्वाद भी वर्ष में एक बार इसी दिन देते है। मंदिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि मंदिर में दिन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने की परंपरा मंदिर के प्रथम सेवायत और संस्थापक गोपाल भट्ट गोस्वामी ने डाली थी। उनका कहना था कि वास्तव में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी लाला की वर्षगांठ है जो दिन में कभी भी मनाई जा सकती है। उनका यह भी कहना था कि लाला को रात 12 बजे जगाकर जन्माष्टमी मनाना ठीक नही है। उनके द्वारा डाली गई परंपरा का निर्वहन आज भी होता है। सेवायत आचार्य का कहना था कि इस मंदिर में जन्माष्टमी पर ठाकुर का अभिषेक चूंकि 27 मन दूध, दही, शहद, बूरा,घी,औषधियों एवं महाऔषधियों से कई घंटे तक चलता है तथा अभिषेक में चूंकि गाय के दूध का ही प्रयोग किया जाता है इसलिए मंदिर के सेवायत श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से एक पखवारे पहले ही ब्रज के गांवों में जाकर दूध की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं। यह कार्य मंदिर के सेवायत गोस्वामियों द्वारा किया जा रहा है।      
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मंदिर के सेवायत प्रशांत शाह के अनुसार इस मंदिर की सभी परंपराएं राधारमण मंदिर की तरह चलती हैं। तीनो ही मंदिरों में दोपहर तक चलनेवाले अभिषेक के बाद चरणामृत को व्रजवासियों एवं तीर्थयात्रियों में बांटा जाता है । वृन्दावनवासी तो इस चरणामृत को गृहण करने के साथ ही व्रत की परंपरा का निर्वहन करते है। वृन्दावन के ही बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य ज्ञानेन्द्र गोस्वामी ने बताया कि जन्माष्टमी की रात श्रीकृष्ण जन्म के बाद रात दो बजे मंगला आरती के दर्शन लगभग पांच मिनट के लिए होते हैं। इसके बाद प्रात: पांच बजे तक मंदिर खुला रहता है। इस मंदिर में मंगला के दर्शन वर्ष में केवल एक बार ही होते हैं। उनका कहना था कि ऐसा कहा जाता है कि जो करे मंगला कभी न रहे कंगला और इसी कहावत के कारण बांकेबिहारी मन्दिर में मंगला के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ लग जाती है।  
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मथुरा के केशवदेव, भागवत भवन मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, प्राचीन केशवदेव मंदिर, नन्दबाबा मंदिर, दानघाटी मंदिर गोवर्धन, मुकुट मुखारबिन्द मंदिर गोवर्धन में जन्माष्टमी का प्रसाद भक्तों में वितरित किये जाने के कारण इन मंदिरों में प्रसाद का बनना अभी से शुरू हो गया है। उधर मथुरा, गोवर्धन, वृन्दावन का बाजार लड्डू गोपाल की आकर्षक पोशाक से भर गया है तथा इन पोशाकों को खरीदने की होड सी लग गई है। कुल मिलाकर समूचे व्रजमंडल में जन्माष्टमी की तैयारियां जोर शोर से इस प्रकार चल रही हैं जैसे किसी महापर्व के लिए की जाती है। 
 

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