Edited By Sarita Thapa,Updated: 07 Sep, 2025 02:00 PM

Khudiram Bose story: 11 अगस्त, 1908 को महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस को फांसी दी जानी थी। उस समय उनकी उम्र 18 वर्ष थी। 10 अगस्त की रात को उनके पास जेलर पहुंचा। जेलर को खुदीराम से बड़ा स्नेह हो गया था।
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Khudiram Bose story: 11 अगस्त, 1908 को महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस को फांसी दी जानी थी। उस समय उनकी उम्र 18 वर्ष थी। 10 अगस्त की रात को उनके पास जेलर पहुंचा। जेलर को खुदीराम से बड़ा स्नेह हो गया था। वह अपने साथ 4 आम लेकर उनके पास पहुंचा और बोला, “खुदीराम ये आम मैं तुम्हारे लिए लाया हूं। तुम इन्हें चूस लो। मेरा एक छोटा-सा उपहार स्वीकार करो। मुझे बड़ा संतोष होगा।”

खुदीराम ने जेलर से वे आम लेकर अपनी कोठरी में रख लिए और कहा, “थोड़ी देर बाद मैं अवश्य इन आमों को चूस लूंगा।”
सुबह जेलर फांसी के लिए खुदीराम को लेने पहुंचा वह पहले से ही तैयार थे। जेलर ने देखा कि उसके द्वारा दिए गए आम वैसे के वैसे रखे हुए हैं। उसने पूछा, “क्यों खुदीराम। तुमने ये आम चूसे नहीं। तुमने मेरा उपहार स्वीकार क्यों नहीं किया?”
खुदीराम ने बहुत भोलेपन से उत्तर दिया, “अरे जेलर साहब जरा सोचिए सुबह ही जिसको फांसी के फंदे पर झूलना हो, क्या उसे खाना-पीना सुहाएगा?” जेलर ने कहा, “खैर, कोई बात नहीं, मैं ये आम उठा लेता हूं और अब इन्हें तुम्हारा उपहार समझकर मैं चूस लूंगा।”

यह कह कर जेलर ने जैसे ही आमों को उठाना चाहा, वे पिचक गए। खुदीराम जोर से ठहाका मारकर हंसे और काफी देर तक हंसते रहे। दरअसल, उन्होंने उन आमों का रस रात में ही चूस लिया था और उन्हें फुलाकर रख दिया था।
जेलर खुदीराम की मस्ती पर मुग्ध और आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सका। वह सोच रहा था कि कुछ समय बाद मृत्यु जिसको अपना ग्रास बना लेगी, वह हंसते हुए किस प्रकार मृत्यु को चिढ़ा रहा है। जेलर ने कहा, “वास्तव में यह मातृभूमि रत्नगर्भा है और खुदीराम जैसे लोग इस मातृभूमि के रत्न हैं। ऐसे महापुरुष बार-बार हमारी मातृभूमि पर अवतरण लें, ऐसी मंगल कामना है।”
