क्या आप ने किए हैं Mysterious मां कूष्मांडा के इस मंदिर के दर्शन?

Edited By Jyoti,Updated: 09 Oct, 2021 06:20 PM

kushmanda temple in kanpur

जैसे कि सब जानते हैं कि शारदीय नवरात्रि का पर्व इस वर्ष 07 अक्टूबर से आरंभ हो चुका है, जिसके आरंभ होते ही माता के भक्त इसे धूम धाम से मनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। कोरोना के चलते लोग काफी

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जैसे कि सब जानते हैं कि शारदीय नवरात्रि का पर्व इस वर्ष 07 अक्टूबर से आरंभ हो चुका है, जिसके आरंभ होते ही माता के भक्त इसे धूम धाम से मनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। कोरोना के चलते लोग काफी देर से सनातन धर्म के तमाम देवी देवताओं की विधि वत आराधना न करने पर मजबूर थे। परंतु फिलहाल जो स्थिति है उसके अनुसार कोरोना के मामलों में बड़ी संख्या में कमी आती दिखाई दे रही है, हालांकि इसमें पूरे तरह से कमी नहीं आई है। परंतु अब भक्तों की श्रद्धा को ध्यान में रखते हुए लगभग मंदिर व प्राचीन धार्मिक स्थलों के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए, जिसके चलते लोग अपने देवी-देवता की विधि वत पूजा करने में सक्षम दिखाई दे रहे हैं। बात करें नवरात्रों को तो इस दौरान लोग अपने घर में माता के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं, अपने घरों में दुर्गा स्तुति आदि का पाठ करते हैं तथा देवी के विभिन्न मंदिरों में जाकर मां का आशीर्वाद पाते हैं। आज नवरात्रि के इस शुभ अवसर पर हम आपको वाले हैं मां के ऐसे ही एक मंदिर के बारे में। चूंकि आज यानि 09 अक्टूबर को तीसरा और चौथा नवरात्रि एक साथ पड़ रहा है, इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे देश में स्थित कूष्मांडा माता मंदिर के बारे में, जिसे एक रहस्यमयी मंदिर माना जाता है। आईए जानते हैं कहां है ये मंदिर- 


कानपुर शहर से लगभग 60 कि.मी दूर घाटमपुर ब्लॉक में मां कुष्मांडा का अद्भुत मंदिर स्थित है। बता दें दुर्गा के नौ रूपों में से एक रूप देवी कुष्मांडा हैं, जो यहां यानि इस प्राचीन मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में विराजमान है। मान्यता है इस मंदिर में पिंड स्वरूप में विराजमान मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता रहता है। ऐसा लोक मत है कि इस जल को पीने वाले जातक को बीमारियां से राहत मिलती है। परंतु खास बात तो ये है कि आज तक इस रहस्य का पता कोई नहीं लगा सका कि आखिर मां की पिंडी से रिसने वाला जल आखिर कहां से आता है। अतः ये मंदिर आज तक सब के लिए अनसुलझा रहस्य बना हुआ है।  


शिव महापुराण के अनुसार, भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष द्वारा उनके पति यानि शिव जी का निरादार किया गया था जिससे रुष्ट होकर उन्होंने उन्हीं के   हवन कुंड में कूदकर खुद को भस्म कर लिया था, जिसके उपरांत भगवान शंकर क्रोधित होकर माता सती के जलते हुए शरीर को उठाकर ब्रह्मांड में विचरने लगे जिस दौरान एक एक करके उनसे शरीर के हिस्से गिरते गए। ऐसा कहा जाता है कि माता सती के चौथा अंश घाटमपुर में गिरा था, जहां वर्तमान समय में माता कूष्मांडा का ये मंदिर स्थित है। 

मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा की पिंडी बहुत प्राचीन है, जिसकी गणना करना भी थोड़ा मुश्किल है। बताया जाता है कि प्राचीन समय में घाटमपुर क्षेत्र कभी घनघोर जंगल था। जहां एक उस समय एक कुढाहा नाम का ग्वाला गाय चराने आया करता था। इस दौरान उसकी गाय मां की पिंडी के पास आ जाती थी और पूरा दूध माता की पिंडी के पास निकाल देती थी, जिस कारण शाम को दूध नहीं देती थी। एक दिन इसका कारण जाने के लिए उसे कुढाहा ने अपनी गाय का पीछा किया और अपनी आंखों से सारा नजारा देखा। जिसके बाद उसने ये बात सभी गांव वालों को बताई। जब गांव ने वहां देखा तो उन्हें यहां माता कूष्मांडा की पिंडी मिली। इस पिंडी से हर समय पानी रिसता था, जिसके मां के भक्त प्रसाद के रूप में ग्रहण करने लगे। मंदिर के पुजारियों का मानना है कि सूर्योदय से पहले नहा धोकर 6 माह तक इस नीर का इस्तेमाल करने से बड़ी से बड़ी बीमारी से राहत मिलती है। 

सबसे खास बात ये है कि इस मंदिर के पास एक तालाब है जो कभी नहीं सूखता, यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि यहां बारिश हो या न हो, इस बात इस मंदिर पर किसी प्रकार का कोई असर नहीं पड़ता। 
 

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