Maa Chintpurni Mela: सावन मेलों में पढ़ें, माता श्री चिन्तपूर्णी का इतिहास

Edited By Updated: 25 Jul, 2025 11:11 AM

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Maa Chintpurni Mela: कहा जाता है कि माईदास नामक दुर्गा माता के एक श्रदालु भक्त ने श्री चिन्तपूर्णी धाम की खोज की थी। दन्त कथा के अनुसार भक्त माईदास जी के पिता पटियाला में रहते थे। माईदास के पिता जी बड़े तेजस्वी व दुर्गा माता के परम भक्त थे। इनके तीन...

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ऊना (अमित शर्मा): कहा जाता है कि माईदास नामक दुर्गा माता के एक श्रदालु भक्त ने श्री चिन्तपूर्णी धाम की खोज की थी। दन्त कथा के अनुसार भक्त माईदास जी के पिता पटियाला में रहते थे। माईदास के पिता जी बड़े तेजस्वी व दुर्गा माता के परम भक्त थे। इनके तीन लड़के थे देवीदास, दुर्गादास व माईदास। माईदास सबसे छोटा लड़का था। उस समय मुसलमानों का अत्याचार जोरो पर था। माईदास के पिता जी मुसलमानों के अत्याचारों से बहुत दुखी थे। वह पटियाला के अठूर नामी जगह को छोड़ कर रपोह नामक स्थान जो कि रियासत अम्ब जिला ऊना में हैं आ बसे। माईदास जी अपने पिता जी की तरह ही दुर्गा माता के बड़े भक्त थे ओर  भगवती पूजा में अटल विश्वास रखते थे। उन का अधिकांश समय दुर्गा पूजा व भजन-कीर्तन में व्यतीत हो जाता था। जिस कारण वह घर के काम काज में अपने बड़े भाइयों का हाथ नहीं बंटा पाते। जिस कारण बड़े भाई माईदास से नाराज रहते थे परन्तु माईदास के पिता जी, माईदास की भक्ति व दुर्गा पूजा से बड़े सन्तुष्ट थे।

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माईदास जी की शादी पिता के होते हुए ही हो गई थी, कुछ समय के बाद माईदास जी के पिता जी का देहांत हो गया। उसके बाद भाईयो ने माईदास को अलग कर दिया गया। माईदास जी को अलग होकर कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा परन्तु गरीबी में भी माईदास ने अपनी दुर्गा भक्ति में कोई भी कमी नहीं आने दी व माता जी पर पूरा भरोसा रखा।

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एक दिन माईदास जी अपने ससुराल जा रहे थे। चलते-चलते रास्ते में वट वृक्ष के नीचे थकावट के कारण आराम करने बैठ गए। जिस वट वृक्ष के नीचे माईदास जी आराम करने के लिए बैठे। आज वहां भगवती का मंदिर है। उस समय वहां घना जंगल था। इस जगह का नाम छपरोह था, जिसे आज कल चिन्तपूर्णी के नाम से जाना जाता है। माईदास वट वृक्ष के पास आराम करने के लिए लेट गए। कुछ देर बाद थकावट के कारण उनकी आंख लग गईं। माईदास जी स्वप्न अवस्था में क्या देखते हैं कि एक छोटी आयु की कन्या जिसके चेहरे पर बड़ा प्रकाश व तेज प्रतीत होता है, दिखाई देती हैं और माईदास के कानों में आवाज सुनाई देती है माईदास तुम यहां पर रह कर मेरी सेवा करो। इसी से तुम्हारा भला होगा। इतने में माईदास जी की आंख खुल गई, चारों तरफ देखा तो कुछ दिखाई नहीं दिया।

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माईदास जी उठकर अपने ससुराल की तरफ चल दिए। जब वापिस अपने घर की तरफ़ चले तो वट वृक्ष तक का रास्ता तो आसानी से कट गया। जब वे वट वृक्ष के आगे जाते तो कुछ भी दिखाई नहीं देता। उसके बाद माईदास जी वहीं वट वृक्ष के पास बैठ गए व सोचने लगे कि वह स्वपन कहीं माता जी का चमत्कार तो नहीं था। माईदास जी ने मां भगवती से प्रार्थना करी, "भगवती मां! मुझ सेवक को दर्शन देकर कृतार्थ करें।"

माईदास की प्रार्थना सुनकर भगवती मां कन्या रूप में प्रकट हुई। कन्या का तेज देखकर माईदास ने पहचानने में देर न कि वह कन्या के चरणों में गिर पड़े। ये वही कन्या थी, जो माईदास को स्वपन में दिखाई दी थी। माईदास ने मां भगवती से प्रार्थना की, " हे भगवती मां! मैं मन्दबुद्धि जीव हूं, मुझ सेवक पर दया कर के आज्ञा दीजिए कि मैं आपकी क्या सेवा करूं ताकि मेरा जीवन सफल हो सके।"

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कन्या रूपी मां भगवती बोली, " हे वत्स! मैं इस वट वृक्ष के नीचे चिरकाल से विराजमान हूं। लोग मुसलमानों और राक्षसों के अत्याचारों के बढ़ने से इस स्थान की महानता को भूल गए हैं। अब मैं इस वट वृक्ष के नीचे पिंडी रूप में नजर आऊंगी। तुम दोनों समय मेरी पूजा व भजन किया करना। मैं छिन्नमस्तिका के नाम से पुकारी जाती हूं। यहां आने वाले भक्त जनों की चिंता मुक्त करने के कारण चिन्तपूर्णी के नाम से भी भक्त स्मरण करेंगे।"

माईदास जी ने कहां मां भगवती, " मैं अनपढ़-निर्बल इस भयानक जंगल मे जहां दिन में भी डर लगता हैं व रात को किस तरह रहूंगा, न तो यहां पीने का पानी है, न ही आप का स्थान बना है, न ही यहां कोई जीव-जन्तु है। जिसके सहारे मैं अपना जीवन व्यतीत कर सकूं।"

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 मां भगवती ने कहां, " मैं तुम्हें अभय दान देती हूं। अब इस जंगल में कोई डर न होगा ॐ एम ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे: मंत्र द्वारा मेरी पूजा किया करना। यह स्थान वैसे भी चारों महरुद्रों के मध्य है। इस सीमा के अंदर तुम बिना डर के रहो। नीचे जा कर जिस पत्थर को उखाड़ोगे तो वहां पर जल निकल आएगा। जिस से पानी की समस्या हल हो जाएगी। मेरी पूजा का अधिकार तुम को ओर तुम्हारे वंश को होगा। जिन भक्तों की चिंता मैं दूर करुंगी वे मंदिर भी बनवा देंगे, जो चढ़ावा चढ़ेगा। उसका अधिकार तुम को ओर तुम्हारे परिवार को होगा। इससे तुम्हारा गुजारा हो जाएगा। किसी बात से घबराना नहीं परन्तु मेरी पूजा में स्वच्छ सामग्री का इस्तेमाल करना। फिर कभी इस रूप में दर्शन न हो सकेगा। मैं पिंडी रूप में अब आप के यहां रहूंगी। यदि कोई बात करने की जरूरत हुआ करेगी तो मैं किसी कन्या पर रोशनी डाल कर कहलवा दिया करुंगी। भूमि पर सोये हुए सेवक की रक्षा मैं स्वंय करुंगी।"

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ऐसा कह कर माता भगवती जी पिंडी रूप में लोप हो गई। माता जी के कहे अनुसार माईदास ने नीचे जा कर एक पत्थर उखाड़ा, वहां से पानी निकल आया। माईदास की खुशी का ठिकाना न रहा। वह पत्थर मन्दिर में आज भी रखा हुआ है, माईदास ने रहने के लिए उस पानी वाली जगह के पास अपनी कुटिया बना ली व प्रतिदिन नियम पूर्वक भगवती जी की पावन पिंडी का पूजन शुरू कर दिया।

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आज तक भक्त माईदास जी के वंशज ही माता चिंतपूर्णी की पूजा करते आ रहे हैं। माईदास जी के दो पुत्र थे कुल्लू ओर बिल्लू, ये दोनों भी अपने पिता व दादा की भांति मां भगवती के उपासक थे। कहा जाता है कि बिल्लू जी ने अपने प्राण समाधिस्थ हो कर त्याग दिए थे। कुल्लू जी का वंश अब तक चल रहा है। जिसकी शाखाएं बारी के अनुसार प्रतिदिन मां भगवती चिन्तपूर्णी की पूजा-अर्चना करती हैं। धीरे धीरे श्रद्धालुओं की चिंता दूर होने पर यहां छोटा सा मन्दिर स्थापित हो गया। फिर माता जी के कुछ चमत्कार होने पर भक्तों द्वारा बड़ा मंदिर बनवाया गया। यात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती रही। आज उसी स्थान पर माता श्री चिंतपूर्णी जी का विशाल व भव्य मंदिर बन गया है। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दरबार पहुंचते हैं व माता श्री चिन्तपूर्णी जी की पावन पिंडी के दर्शन करते हैं।

यह स्थान जहां पर माता श्री चिन्तपूर्णी जी का मंदिर है। रियासत अम्ब व डाडा सीबा की सीमा पर था। जिसके कारण दोनों रियासत के राजाओं में आपस में झगड़ा हो गया। दोनों राजा इस स्थान पर अपना-अपना अधिकार बताने लगे। अन्त में  इस बात पर सहमति हुई दुर्गा जी के नाम पर दो बकरे छोड़े जाएंगे। एक महाराज अम्ब व दूसरा महाराज डाडा सीबा का जो बकरा पहले कांप जाएगा। यह स्थान उसकी रियासत में होगा। इस तरह यह स्थान अम्ब रियासत में निश्चित हुआ।

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