Mahabharata: OMG! ऐसे हुआ था महाभारत युद्ध का जन्म

Edited By Updated: 02 Jul, 2024 09:04 AM

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वाणी से पांच पाप होते हैं- व्यंग्यात्मक वाणी जो सुनने वाले को जाकर चुभ जाए, असत्य बोलना, अप्रिय बोलना

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Sins of Speech: वाणी से पांच पाप होते हैं- व्यंग्यात्मक वाणी जो सुनने वाले को जाकर चुभ जाए, असत्य बोलना, अप्रिय बोलना, अहितकर बोलना और व्यर्थ बोलना।

Stories from Mahabharata: पांडवों का राजसूय यज्ञ हुआ। उस जमाने में मय दानव थे, जो एक बड़े वास्तुशिल्पी थे। उन्होंने युधिष्ठिर के लिए सभा भवन का निर्माण किया जो माया सभा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसमें एक विशेष प्रकार का मंडप बनाया गया था कि जहां जल था वहां जमीन दिखती और जहां जमीन थी वहां जल लहराता हुआ दिखता। यह बात सबको ज्ञात नहीं थी। वहां दुर्योधन आया तो देखा कि जल लहरा रहा है परंतु वहां थी जमीन, उसने अपने कपड़े ऊपर उठा लिए कि कहीं भीग न जाएं।

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कुछ लोग मुस्कुरा दिए। कुछ और आगे बढ़े तो वहां जल था परंतु समतल जमीन प्रतीत हो रही थी। वहां वह सीधा आगे बढ़ा तो उनके सारे कपड़े भीग गए।

यह देखकर भीमसेन और द्रौपदी दोनों हंस पड़े और कह दिया कि आखिर है न अंधे का ही पुत्र। उनकी यह बात दुर्योधन को तीर की तरह चुभ गई।

धर्मराज ने टोका, ‘‘क्या कहते हो ?’’ परंतु जुबान से तो बात निकल ही गई। अपशब्द कह दिए और कहते हैं हम अपनी बात वापस लेते हैं। वाणी वापस लेने की चीज नहीं है। पांडवों के सभा भवन के वैभव को देखकर दुर्योधन उनसे पहले ही ईर्ष्या करने लगा था और वहां हुए अपमान के बाद तो उसने ठान लिया कि या तो पांडव रहेंगे या हम। कहते हैं कि इस भावना ने ही महाभारत युद्ध को जन्म दिया। ऐसी वाणी न बोलें जो दूसरे को चुभ जाए।

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हमेशा सत्य बोलें। सत्य केवल शब्द नहीं होते। सत्य भाव होता है। एक होता है ‘शब्द जाल’।

महाभारत में भीम ने अश्वत्थामा नामक हाथी को मार दिया फिर जाकर युधिष्ठिर से बोले कि आप कह दीजिए कि अश्वत्थामा मारा गया तब द्रोण के हाथ से हथियार गिर पड़ेंगे और उसी अवस्था में उन्हें मार सकता हूं।

धर्मराज असमंजस में पड़ गए लेकिन अंतत: किसी प्रकार मान गए। उन्होंने कह दिया ‘अश्वत्थामा हतो नरो व कुन्जरो’ यानी अश्वत्थामा मारा गया आदमी या हाथी नहीं पता। बाद में हाथी बोले, तब तक श्री कृष्ण ने शंख बजा दिया और वह शब्द सुनाई नहीं दिया।

अश्वत्थामा मारा गया- यह छल हो गया। शब्द छल से अगर हम किसी को वही शब्द कह देते हैं और हमारे मन में समझाने की बात कोई दूसरी रहती है तो वह भी झूठ है।

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सच बोलें और सच भी मधुर शब्दों में कहें। लोग गर्व से कहते हैं कि मैं सच बोलता हूं, चाहे किसी को अच्छी लगे या खरी लगे परंतु कोई उनसे वैसे ही बोले तब।

ऊपर से मीठा बोलना ही नहीं, हृदय भी मधुर हो और जुबान भी मधुर हो। मीठी बोली का अर्थ है जिसमें हित की भावना भरी हो।

 

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